भैंस/गाय/बकरी का ग्रामीण-अर्थव्यवस्था से संबंध और उत्तर प्रदेश/बिहार जैसे भैंस/गाय/बकरी परिवेश वाले राज्य

सामाजिक यायावर

मेरे दादा (पिता के पिता) जी का देहांत नवंबर 1984 में सड़क दुर्घटना के कारण हुआ था लगभग 85 वर्ष के रहे होंगें। चूंकि मेरे माता-पिता उनके साथ गांव में नहीं रहते थे सो मेरे पिता के हिस्से में आईं हुयीं भैंसें, बकरियां, गाय और बैल आदि को मेरे दादा जी नें पिता जी के हिस्से की जमीन में काम करनें वाले अपनें पारंपरिक मजदूर परिवार को दे दिया था। 

दादा जी के देहांत के बाद जब जानवरों को लौटानें की बात आयी तो मेरे पिता जी बोले कि हमें नहीं चाहिये जो पिताजी नें अस्थायी रूप से आपको दिया वह उनकी ओर से स्थायी-दान मान लीजिये। 

मैं छोटा था किंतु इस घटना से मेरे मन में एक बात बैठ गई कि भैंस आदि जानवर शायद बेकार होते हैं और फिजूल का सिरदर्द भी होते हैं। चूंकि शहरी परिवेश में पला-बढ़ा इसलिये गोबर गंदी चीज होती है आदि बातें शहरीकरण वाली कथित-शुचिता नें बैठा दी।  मुझे लगता है कि ऐसे ही बहुत बालकों/किशोरों के मन में धारणायें बनतीं होगीं। 

जब बड़ा हुआ और समाज को समझनें के लिये स्वाध्याय व समाज के लोगों के द्वारा किये जा रहे आर्थिक विकास/स्वावलंबन आदि के जमीनी प्रयासों को देखना व समझना शुरु किया, तो जो बात सबसे पहले मेरी समझ में आयी वह यह कि भैंस, गाय और बकरी भारत के ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नींव है। 

मैंने देखा कि कैसे महिलायें अपनी मरी हुयी बकरी को अपनी गोद में लेकर दहाड़ें मारकर रोतीं हैं। बिहार की भीषण बाढ़ों और आग से नष्ट होते गावों में मैंने देखा कि ग्रामीण कैसे अपनी जान की बाजी लगाकर अपनें जानवरों की रक्षा करता है। 

समय के साथ मैंने समझा कि वास्तव में भैंस/गाय/बकरी आदि भारत के करोड़ों ग्रामीण परिवारों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। यदि ये जानवर न हों तो करोड़ों भूमिहीन परिवारों को खाना/कपड़ा और झोपड़ी तक नसीब नहीं हो। 

उदाहरण-

  • मेरे एक बहुत ही अच्छे व विश्वसनीय मित्र हैं। बहुत बड़े चिकित्सक हैं प्रतिदिन कई सौ मरीजों को देखते होगें, अपनी पैथोलोजी है, अपना क्लीनिक है और यह सब उनके पास देश के जानेमानें मेट्रो-शहर में है। उनकी आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। उनके एक सगे भाई एक Indian Institute of Technology (IIT) के उप-निदेशक भी रह चुके हैं और एक सगे साले-भाई Airtel Company के वाइस-प्रेसीडेंट।  उनके परिवार से बहुत लोग All India Institute of Medical Sciences (AIIMS) से स्नातक/परा-स्नातक की पढ़ाई पढ़े हैं।मैंने उनसे एक बार कहा कि आजकल गांवों में गायों की डेयरीज खुलवा रहा हूं, ताकि ग्रामीणों की आर्थिक व्यवस्था आगे बढ़े। मित्र बोले कि एक गाय/भैंस मेरी ओर से और मुझे 10,000 (दस हजार) रुपये निकाल कर दिये। मैंने कहा कि यह क्या है, वे बोले कि इसे आप एक गाय या भैंस कुछ भी समझ लीजिये। मैं ठहाका मारकर हंसा, मैंने कहा कि एक अच्छी गाय या भैंस 70,000-80,000 की कीमत से शुरु होती है और कई लाख रुपये तक जाती है। मैंने उनसे कहा कि जब आप कभी गांवों जाते होगें तो जो भैंसे आपको ऐसे ही जमीन में बैठी हुयी दिखतीं हैं उनमें से बहुतों की कीमत 1 लाख रुपये से अधिक की भी हो सकती है।  

    मेरे मित्र अचंभित हुये और बोले कि मुझे बिलकुल पता नहीं था कि गाय और भैंस इतनी महंगी आती है। मैंने उनको बताया कि 10 हजार में तो अच्छी बकरी मिलती है। 

  • मेरे एक मित्र हैं लखनऊ में अपनें कामकाज से 1 लाख रुपिया महीना के लगभग आज से लगभग 10 साल पहिले कमाते थे। आजकल गांवों में रहते हैं और शानदार शुद्ध हवा लेते हुये मस्ती से रहते हैं। उननें और उनकी पत्नी नें तीन गाय-भैंसे पाल रखी हैं। बच्चों को भरपूर दूध-मलाई खिलानें और मुझे जैसे मित्रों को शुद्ध खोये के पेड़े खिलाते रहनें के बावजूद महीनें का 25,000-30,000 केवल दूध से कमाते हैं वह भी गांव में। जानवरों के गोबर का प्रयोग खेती में खाद में करते हैं और कभी कभी शरीर में चुपड़ कर स्नान भी कर लेते हैं। हमनें उनसे पूंछा कि इतना पढ़नें लिखनें के बाद गांव में रहते हैं, भैंसों की सेवा करते हैं … अजीब नहीं लगता है। 

    इन मित्र का कहना है कि आजकल के लाखों B.Tech/M.Tech/MBA लड़के/लड़कियां दिन में 15-15 घंटे काम करके जितना कमाते हैं उससे अधिक मैं अपनीं कुछ गायों/भैसों और खेती से कमा लेता हूं और बढ़िया शुद्ध हवा लेता हूं और शारीरिक/मानसिक रूप से स्वस्थ भी रहता हूं।

    रही सेवा करनें की बात तो ये जानवर जीवन हैं और मेरे अपनें परिवार का हिस्सा हैं मेरे प्रति वफादार हैं। जबकि शहरी चकाचौंध के लिये कंपनीज से शोषण कराते हुये शारीरिकमानसिक बीमार जिंदगी जीनें वाले लोगों को तो यह तक नहीं पता होता कि आज जिस नौकरी में हैं उसमें कल होंगें भी या नहीं या किसकी सेवा कर रहे हैं। वे नौकर हैं और मैं मालिक हूं।
     

मैं उत्तर प्रदेश व बिहार की ऐसी हजारों महिलाओं से मिल चुका हूं जो कि केवल गाय/भैंस की सेवाटहल करके दसियों हजार महीनें की आय करतीं हैं जबकि अंगूठा-छाप हैं। 

मैं तो कहता हूं िक पहले असली भारत को समझ लीजिये फिर उसकी बात कीजिये। नहीं तो आप अपनीं मूर्खता में उनका उपहास उड़ातें रहेंगें जिनके जीवन की तुलना में खुद आपका जीवन ही उपहास है। 

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