Dr Surendra Bisht
भारतीय परंपरा में उपलब्ध सबसे प्राचीन सप्तर्षि संवत है जो 6777 ईसा पूर्व (6777 BCE) से प्रारंभ होता है। इसकी जानकारी पुराणों में उपलब्ध है और पंडित चंद्रकांत बाली जी का निष्कर्ष है कि इसे यूनानी इतिहासकारों ने भी लिखकर सुरक्षित किया है। उन्नीसवीं सदी (1883) में ‘बुक ऑफ इंडियन इराज’ के लेखक कंनिंगघम ने भी इस 6777 ईसा पूर्व से प्रारंभ होने वाले सप्तर्षि संवत को अपनी पुस्तक में स्थान दिया है।
जब से चंद्रकांत बाली जी के लेखों में मैंने सप्तर्षि संवत के विषय में पढ़ना शुरू किया तो मेरे मन में एक प्रश्न अनेक बार उठा – सप्तर्षि संवत 6777 ईसा पूर्व इसी वर्ष से क्यों प्रारम्भ किया गया ? इसका उत्तर ढूंढने का मैंने प्रयत्न किया पर मुझे कोई उत्तर नहीं मिला। वह 6770 ईसा पूर्व से भी शुरू किया जा सकता था, या 7800 ईसा पूर्व से शुरू किया जा सकता था या 6600 ईसा पूर्व से भी शुरू किया जा सकता था ? ऐसे अनेक प्रश्न मन में आये। 6777 ईसा पूर्व में ऐसी कौन सी घटना हुई कि उसी वर्ष से सप्तर्षि संवत प्रारम्भ हुआ ?
इस प्रश्न का कुछ उत्तर मुझे पंडित बाली जी के ही एक अन्य लेख में मिलता प्रतीत हो रहा था। पर कल जब मैंने श्री ब्लॉगपोस्ट (bharatbhumika.blogspot) पर भारत के प्राचीन इतिहास पर लेख पढ़ा तो मुझे लगा कि वर्षों से जो निष्कर्ष मैं निकालने की कोशिश कर रहा था, वह उसके अधिक नजदीक पहुंचते हुए दिखने लगा। इस पर कुछ विचार करते हैं।
पंडित भगवत दत्त जी ने ‘भारतवर्ष का बृहद इतिहास’ में सैकड़ों प्रमाणों को एकत्र किया है। उसी में है मेगस्थनीज की इंडिका के प्रमाण। उन प्रमाणों के आधार पर पंडित चंद्रकांत बाली जी ने एक लेख लिखा – ‘यूनानी इतिहासकारों के भारतीय कालसन्दर्भ’। इसमें 3-4 संदर्भ हैं, पर जो अधिक सुस्पष्ट है उसे देखते हैं।
“From the time of Father Bacchus to Alexander the Great, their Kings are reckoned at 154 whose reigns extend over 6451 years and three months.” (Pliny)
अर्थात फादर बैकस से सिकंदर महान तक भारतीयों के अनुसार उनके 154 राजा हो गए हैं और उनके राज्यकाल को 6451 वर्ष और 3 महीने बीत चुके हैं।
इस पर बाली जी पंडित भगवत दत्त जी का वाक्य भी साथ में लिखते हैं – ‘ यह वर्ष संख्या मेगस्थनीज ने भारत के राजवृत्तों से ली । इसमें थोड़ी सी भूल हो सकती है अधिक नहीं।’ साथ में बाली जी अपनी बात जोड़ते हैं – ‘हम बड़ी दृढ़ता से घोषित करते हैं कि यूनानी इतिहासकारों के भारतीय काल संदर्भ सर्वथा आप्त हैं।’ अगर सिकंदर महान के समय भारत में 154 वां राजा प्रतिष्ठित था तो प्रथम राजा कौन था ? स्वाभाविक है वैवस्वत मनु प्रथम राजा थे। पर इसका विवेचन बाली जी के लेखों में नहीं मिल रहा था । पर बाली जी ने यह जरूर लिखा है कि 6451 वर्ष अवश्य सप्तर्षि संवत के हैं।
इसी बीच कल ही मैंने एक ब्लॉगपोस्ट पढ़ी – भारतभूमिका। उसमें फिर यूनानी इतिहासकारों का उपरोक्त काल संदर्भ दिया है। साथ में इस लेख में यह भी लिखा है कि अगर गुप्त राजा चंद्रगुप्त से पीछे गिनते हैं तो बीच के काल में हुए विदेशी राजाओं को छोड़ दें तो चंद्रगुप्त से वैवस्वत मनु तक 154 राजा बैठते हैं। जिनमें दशरथ पुत्र राम 65 वें हैं और महाभारत में भाग लेने वाले इक्ष्वाकु वंश के बृहदबल 98 वें राजा हैं। अतः मेरे मन में जो समाधान था कि 154 राजाओं में पहले राजा वैवस्वत मनु थे, उसे एक अन्य विद्वान ने भी स्वीकार किया है।
उपरोक्त बातों के कारण मैं सप्तर्षि संवत के विषय में मन में उठने वाले सवालों के समाधान के नजदीक पहुंच गया। यूनानी इतिहासकार लिखते हैं 154 राजा हो गए और उनका काल 6451 वर्ष और 3 महीने हो गया है। हम सब जानते हैं मेगस्थनीज 3 री शताब्दी ईसा पूर्व में भारत आया था। अगर उपरोक्त दो विद्वानों का कहना 100% सही है कि ये 6451 वर्ष सप्तर्षि संवत के हैं और प्रथम राजा वैवस्वत मनु थे तो इन दो तथ्यों से क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं ?
पहला निष्कर्ष तो हम यह निकाल सकते हैं कि मेगस्थनीज किस वर्ष में उपरोक्त लेख लिखा होगा ? 6777 ईसा पूर्व में से 6451 वर्ष घटाते हैं तो 326 ईसा पूर्व निकलता है, जो इतिहासकारों के अनुसार सटीक है क्योंकि मेगस्थनीज 321 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त के राज्याभिषेक का भी उल्लेख करता है।
हमारे लिए दूसरा निष्कर्ष महत्वपूर्ण है जिसे मैं सबके सम्मुख रखना चाहता हूँ। यूनानी इतिहासकारों का 320-30 ईसा पूर्व में लिखना कि भारत के 154 राजाओं का अबतक 6451 वर्ष कार्यकाल हुआ है और उसी के साथ भारतीय परंपरा में 6777 ईसा पूर्व में सप्तर्षि संवत का प्रारंभ होना, इन दोनों तथ्यों को जोड़कर देखते हैं, तो उससे हम एक निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि 6777 ईसा पूर्व से प्रारंभ सप्तर्षि संवत इसलिए प्रारम्भ हुआ क्योंकि उस वर्ष वैवस्वत मनु का राज्याभिषेक हुआ था। अर्थात सप्तर्षि संवत का प्रारंभ और भारत में राज्यव्यवस्था का प्रारंभ आपस मे जुड़े हुए तथ्य हैं।
6777 ईसा पूर्व से सप्तर्षि संवत प्रारम्भ हुआ क्योंकि उसी वर्ष में वैवस्वत मनु का राज्याभिषेक हुआ था, और इसीलिए 6770 या 6800 या 6600 आदि से सप्तर्षि संवत का प्रारंभ नहीं हुआ। अगर यह निष्कर्ष कि 6777 ईसा पूर्व से प्रारंभ सप्तर्षि संवत का प्रारंभ वैवस्वत मनु के राज्याभिषेक वर्ष से प्रारंभ हुआ है, तो शायद यह निष्कर्ष भारतीय इतिहास की अनेक समस्याओं और गुत्थियों को सुलझाने में सहयोगी हो जाएगा।
अब एक प्रश्न है कि उपरोक्त वैवस्वत मनु कौन हैं ? प्राचीन ग्रंथों में अनेक मनु वर्णित हैं। पहले वे मनु हैं जो सृष्टि के आदि में ब्रह्मा के मानसपुत्र लिखे गए हैं। फिर सात मन्वंतर के प्रारंभ में एक एक मनु लिखे गए हैं। फिर जलप्रलय के समय सृष्टि के बीज बचाने वाले मनु भी ग्रंथों में वर्णित है। इन सबसे भिन्न एक मनु और हैं जिनका वर्णन रामायण, महाभारत, कौटिल्य अर्थशास्त्र में आदि राजा के रूप में है। महाभारत में इस विषय को विस्तार से लिखा है। आप सभी जानते हैं कि महाभारत में लिखा है कि आदि युग में -‘ न कोई राजा था, न राज्य था, न कोई दंड देने वाला था और न ही कोई दंड पाने वाला, सभी धर्म के अनुसार परस्पर की रक्षा करते थे।’ पर बाद जनसंख्या बढ़ी, लोगों में संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ी, इसलिए अनाचार भी बढ़ने लगे। ऋषियों ने इन अधर्म जन्य अराजकता पर विचार किया और राज्य संस्था के गठन का निर्णय किया। उन ऋषियों ने अपने में से ही महर्षि मनु को अपना पहला राजा नियुक्त किया। उसी राजा के पुत्र थे इक्षवाकु और पुत्री थी इला। इक्षवाकु से आगे इक्ष्वाकु वंश चला जिसे सूर्यवंश भी कहते हैं। और इला का पुरुरवा से ऎल वंश चला, जिसे चंद्रवंश भी कहते हैं। महाभारत में जिस मनु को पहला राजा बनाने का साक्ष्य उपलब्ध है, वे ही हमारे 154 राजाओं में प्रथम राजा वैवस्वत मनु हैं।
हमने अपनी बात संक्षेप में रखा दी है। बाकी भविष्य की गोद में।