विस्तृत

Dheeraj Kumar जो था स्वयं विस्तृतज्यादा विस्तार पाता हुआविस्तारित हो चला….. स्वयं के भीतर गहरे चलने की मार्ग की खोज कामार्ग प्रशस्त होता गया यद्यपि किविस्तार का मार्ग सेया, विस्तारित होने का चलने सेप्रत्यक्ष या परोक्ष कोई भी संबंध जोड़ना मुश्किल थातो भी….एक अदृश्य और अबूझ बंधन सेमजबूती से बंधे हुए थे वे गहरे भीतर की हरेक यात्रा काठहराव का बिन्दुसमय के तीर की दिशा मेबहता ही चला गया…… बहते जाने के क्रम मेमष्तिष्क या स्पेस… Continue reading

अंधेरा

Dhiraj Kumar अंधेरा …..अत्यंत उदार और लचीला होता हैप्रकाश को अपने सीने सेआर पार जाने देने मेकोई तकलीफ नही होती उसेवो न तो प्रकाश को पथ भ्रष्ट करता हैऔर न ही दूषित…… अंधेरा एक गहन चिन्तक की तरहअपने धुन मे मगन रहता हैवो अचल है ,शाश्वत है ,निराकार है….उसे कोई फर्क नही पड़ता किप्रकाश उसके बारे मे क्या सोचता हैया उसके के साथ क्या सलूक करने वाला है अलबत्ता…..प्रकाश हमेशा खुराफाती होता हैअंधेरे का… Continue reading

स्पेस

Dhiraj Kumar वहाँ कुछ भी नही होना थाऐसा कुछ मानना भी थाऔर वहाँ कुछ था भी नहीऐसा मान भी लिया गया वहाँ मगर बहुत कुछ थाइतना ज्यादा कि पृथ्वी जैसी चीज का निशान ढूंढनानामुमकिन ! वहाँ स्पेस था,टाइम था डार्क मैटर था ,डार्क एनर्जी था ….और भी न जाने क्या क्या था …. तज्जुब कि….जो स्पेस-टाइम का चार विमाओं वाला फेब्रिक निरंतर फैल रहा था …… और तो और…..यह जो स्पेस-टाइम से बुना हुआजो फैब्रिक था उसमे ब्लैक होलों… Continue reading

सोच

[themify_hr color=”red”] अनिश्चितता इस कदर व्याप्त हो कि ठीक ठीक कुछ भी कहना ठीक नही हो तो संभावना या प्रायिकता इस बात कि सबसे ज्यादा होती है कि किसी ज्ञात बिन्दु पर या किसी ज्ञात समय पर यदि वो ‘हाँ’ है तो तक्षण दुसरे बिन्दु या समय पर वो ‘ ना’ हो जाता है ऐसा ही कुछ कुछ यादों मे बसा हुआ ‘ सोच ‘ के साथ होता है यादों… Continue reading

जरूरी हो गया है

[themify_hr color=”red”] वो एक है अरे नही ! वो दो है नही नही वो अनेक है नही रे वो कण कण मे है वो एकमात्र है नही वो तो अंतिम है वो अनंत है,अपरंपार है वो सच्चा सत्य है नही वो सच्चा शिव है नही वो तो सच्चा सुन्दर है वो ऐसा है ,वो वैसा है वो फलाना है ,वो ढिमकाना है उसने यह किया,उसने वो किया वो यह करता… Continue reading

गिरना

धीरज गिरने की सीमा या तो सुनियोजित होती है या पूरी तरह अनियोजित तीसरा विकल्प तो उपरोक्त का निर्विकल्प ही होता है…. जब गिरने की सीमा अनियोजित होता है बहुधा ताड़ से ही गिरते है और किसी मनचाहे खजूर पर आकर अटक ही जाते है जब सुनियोजित ढंग से गिरना शुरू करते है भारशून्यता के साथ गिरते है और तब धरती भी गिरते हुए को रोक नही पाती या यूं… Continue reading

हाथी के दांत…

धीरज हाथी के दांत… खाने के अलग और दिखाने के लिए अलग होते है पर यह ….. सही नही है जनाब ! ये जो बाहर वाले चमकीले और नुकीले दांत होते है,वो डराने के लिए और जो…. भीतर वाले चौडे एवं काले दांत होते है न….. भोजन के देखकर गुपचुप गुपचुप मुस्कराने के लिए होते है सच तो यह है कि…. हाथी के असली दांत उसके पेट मे होता है… Continue reading