विस्तृत
Dheeraj Kumar जो था स्वयं विस्तृतज्यादा विस्तार पाता हुआविस्तारित हो चला….. स्वयं के भीतर गहरे चलने की मार्ग की खोज कामार्ग प्रशस्त होता गया यद्यपि किविस्तार का मार्ग सेया, विस्तारित होने का चलने सेप्रत्यक्ष या परोक्ष कोई भी संबंध जोड़ना मुश्किल थातो भी….एक अदृश्य और अबूझ बंधन सेमजबूती से बंधे हुए थे वे गहरे भीतर की हरेक यात्रा काठहराव का बिन्दुसमय के तीर की दिशा मेबहता ही चला गया…… बहते जाने के क्रम मेमष्तिष्क या स्पेस… Continue reading