Ramesh Chand Sharma
सावधान जनता समझ रही है
स्वदेशी के गीत गाते थे,
स्वदेशी नाम से ललचाते थे,
स्वदेशी आन्दोलन चलाते थे,
सड़कों पर नजर आते थे,
अफवाह, झूठ खूब फैलाते है,
अब क्या कर रहे हो भाई।।
बिना बुलाए आते थे,
झूठा संवाद चलाते थे,
झूठी कसमें खाते थे,
नारे खूब लगाते थे,
सत्ता के लिए छटपटाते थे,
सत्ता कैसे भी पाते है।।
जनता को मूर्ख बनाते है,
ढोंग खूब रचाते है,
वादे नहीं निभाते है,
जुमले उन्हें बताते है,
अपने को भगत कहलाते है,
अब चेहरा सामने आया है।।
सत्ता जब से हाथ आई,
स्वदेशी की खत्म लडाई,
भूले कसमें थी जो खाई,
औढली अब नई रजाई,
रंगीन सियार की कहानी याद आई,
अब सत्ता का मजा उड़ाते है।।
जान गए सब भाई बहना,
पहनें बैठे सत्ता का गहना,
मौज मस्ती में सीखा जीना,
अब स्वदेशी की बात नहीं कहना,
जनता को है अब दुःख सहना,
इनके हाथ लगी मोटी मलाई है।।
ढूढ़ लिया अब नया काम,
पडौसी का काम तमाम,
छात्रों पर बंदूकें तान,
अर्बन नक्सली बदनाम,
हाथ लगा दंड भेद साम दाम,
नफरत, हिंसा फैलाते है।।
हाथ लगे अब नए भेद,
काट रहे आम जनता के खेत,
गंगा मैया की बेच रहे रेत,
सन्यासियों के दिए गले रेत,
काम एक नहीं करते नेक,
भ्रम भयंकर फैलाते है।।
अपने ही लोगों को बांटे,
दुनिया के करें सैर सपाटे,
मजदूर किसान का गला काटे,
जनता खाए मुंह पर चांटे,
धनपतियों के पैर चाटे,
अपने भर रहे गोदाम।।
खत्म हो गई क्या मंहगाई,
रुपए की क्या दशा बनाई,
जीएसटी नोटबंदी एफडीआई,
जेबें भर कर करी कमाई,
लोग कह रहे राम दुहाई,
इनको जरा नहीं शर्म आई,
ऐसा राम राज्य लाये है।।
एक योगी बन गया लाला,
एक बने प्रदेश के आला,
गौ माता ढूढे ग्वाला,
मांस निर्यात में बना देश आला,
दबके कर रहे धंधा काला,
खूब डकारी काली कमाई है।।
भय भेद भूख नफरत बढ़ाई,
भूल गए अपनी लडाई,
अमेरिका से सवारी बुलाई,
कोरोना की बारी आई,
दूसरों के सिर मंढी बुराई,
शिक्षा ऐसी पाई है।।
आँखों में पड़ गए जाले,
जनता के मुंह में छाले,
दुश्मन हमने कैसे पाले,
जीने के पड़ गए लाले,
इनसे देश संभले ना संभाले,
घोप दिए छाती में भाले,
सत्यानाश किया भारी है।।
कम्पनी बेचीं, कारखाने बेचे,
रेल बेचीं प्लेटफार्म बेचे,
कोयले की खान बेची,
अपनी शान आन बेची,
फायदे वाली दुकान बेची,
अब आगे किसकी बारी,
अक्ल गई इनकी मारी,
बचने की खुद करो तैयारीII
आभार धन्यवाद शुक्रिया।
रमेश चंद शर्मा
Ramesh Chand Sharma