Vivek Umrao "सामाजिक यायावर"
मुख्य संपादक, संस्थापक - ग्राउंड रिपोर्ट इंडिया
कैनबरा, आस्ट्रेलिया
जाहिर है कि लाक-डाउन का निर्णय लिया गया क्योंकि सरकार को यह मालूम होगा ही कि कोरोना फैल रहा है और नियंत्रण के बाहर हो रहा है। कम टेस्टिंग करने के कारण व टेस्टिंग के संसाधन न होने के कारण, कोरोना से प्रभावित लोगों की संख्या कागजी आकड़ों में भले ही बहुत कम हो लेकिन वास्तविक संख्या बहुत अधिक होगी। संक्रमण लगातार फैल रहा होगा।
इतना तो तय है कि यदि क्रमश़ः बढ़ने की बजाय इतनी हड़बड़ी में पूरे देश का लाक-डाउन का निर्णय लिया गया है, तो जाहिर है कि सरकार के पास गोपनीय जानकारियां होंगी ही कि भारत में कोरोना तेजी से फैल रहा है और स्थिति बहुत भयंकर होने वाली है। सरकार का तीन सप्ताह का लाक-डाउन करने का निर्णय का स्वागत है। निश्चित तौर पर वर्तमान परिस्थितियों में इतनी हड़बड़ी में किया गया लाक-डाउन ही अंतिम विकल्प बचता है।
आप लोगों का, आप लोगों के परिवारों का, आप लोगों के रिश्तेदारों का तथा सामाजिक शुभचिंतक होने के नाते मैं कुछ तथ्य रखना चाह रहा हूं, निवेदन है कि पूरा लेख पढ़ें। यह आपकी अपनी ईमानदारी, समझ व दृष्टि पर छोड़ता हूं कि आप किस रूप में लेते हैं। गंभीर चर्चा करेंगे तो अच्छा लगेगा।
यदि आपको सोचना समझना नहीं आता हो केवल गाली गलौच ही करना आता हो या आप चुनावी राजनीति व राजनैतिक पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर कुछ देख सुन ही नहीं पाते हैं तो गाली गलौच भी करना चाहें तो कर सकते हैं। आप अपने वास्तविक चरित्र के अनुसार ढोंग की जरूरत महसूस किए बिना व्यवहार कर सकते हैं।
एक बात तो बिलकुल ही स्पष्ट है कि देश में कोरोना से संक्रमित लोगों की लगातार अनियंत्रित रूप से बढ़ती संख्या के कारण ही पूरे देश को लाक-डाउन किया गया। अन्यथा कोई कारण हो ही नहीं सकता कि हड़बड़ी में बिना तैयारी के, बिना लोगों को विश्वास में लिए हुए पूरे देश को इस तरह लाक-डाउन कर दिया जाए।
मेरे कई मित्र मुझसे आज भी कुतर्क देते हुए बहस कर रहे थे कि देश में कोरोना नियंत्रित है और संक्रमित लोगों की संख्या न के बराबर है। जबकि मेरा कहना था कि जब टेस्टिंग नहीं हो रही है तो कैसे मालूम कि कितने लोग संक्रमित हैं या नहीं। जिसे हम संक्रमित नहीं मानते होंगे, वह भी संक्रमण फैला रहा होगा। संक्रमण की श्रंखला तेज गति से चल रही होगी।
लाक-डाउन की घोषणा से यह तो साफ हो गया कि मेरा अंदाजा बिलकुल सही था कि देश में कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है, नियंत्रण से बाहर जा रहा है। आम आदमी को भले ही जानकारी न हो, लेकिन सरकार के पास गोपनीय सूचनाएं होंगी। इसीलिए लाक-डाउन जो कि अंतिम विकल्प होता है, उसका प्रयोग करना बचता है।
अब सवाल यह है कि लाक डाउन कोरोना के संक्रमण की फैलने की गति को कम करता है या कोरोना को नष्ट करता है।
अभी तक दुनिया के देशों में हुए प्रयोगों के आधार पर यही निकल कर आता है कि लाक डाउन कोरोना का संक्रमण फैलने की गति कम करने में सहयोगी होता है बशर्ते कोरोना से संक्रमित लोगों की छटनी ठीक से की गई हो। यह जानने के लिए टेस्टिंग सबसे जरूरी तत्व होता है। यदि छटनी ठीक से नहीं हुई है और लोग अजागरूक हैं, वैज्ञानिक तथ्यों से अपरिचित हैं तो लाक डाउन संक्रमण की गति कम करने में सहयोगी की भूमिका निभा पाने में सफल नहीं हो पाता है।
जो लोग कोरोना से संक्रमित हैं, या जिन लोगों के अंदर कोरोना पहुंच चुका है और आगे आने वाले दिनों में लक्षण दीखने वाले हैं या जिन लोगों में कोरोना होगा लेकिन लक्षण नहीं दीखेगे तब भी ये लोगों को संक्रमित करते रहेंगे। यदि अधिक से अधिक इन लोगों की टेस्टिंग करके आइसोलेट नहीं किया जाता, तो लाक-डाउन प्रभावी नहीं रह सकता।
चूंकि संक्रमित लोगों लोगों को उनके परिवार वालों या मकान मालिकों या मित्रों या रिश्तेदारों के साथ ही रहना होगा। तो लाक डाउन के बावजूद संक्रमण की चेन-प्रक्रिया चलती रहेगी। इस चेन-प्रक्रिया का एक बड़ा प्रतिशत तो लाक-डाउन की अवधि खतम होने के समय संक्रमण की शुरुआत में होगा, जो लाक डाउन की अवधि के बाद देश के लोगों को फिर से संक्रमित करना शुरू कर देगा।
इटली में जब गांव-गांव में हर एक आदमी की टेस्टिंग करके संक्रमित लोगों को एक समूह में रखा गया और गैर संक्रमित लोगों को बिलकुल अलग रखा गया, तब स्थितियां नियंत्रण में आनी शुरू हुईं।
लाक डाउन तभी बेहतर प्रभावी हो सकता है जब संक्रमित लोगों की छटनी की जाए।
भारत में सोशल डिस्टेंसिंग करना/करवाना बहुत बड़ी समस्या है
हड़बड़ी में हुए लाक-डाउन से देश के करोड़ों लोगों को तैयारी करने का अवसर नहीं मिल पाया होगा। तो वे लोग दो चार दिनों या कुछ बाद में किसी न किसी तीन तिकड़म से अपने लिए आवश्यक वस्तुओं का इंतजाम करना चाहेंगे। देश की हर गली मोहल्ले, हर घर की सेवा तो देश की पुलिस नहीं ही कर सकती है।
शहरों की हर गली कूचे में लोगों को आपस में मिलने जुलने से कैसे रोका जाएगा जब लोगों को पता ही नहीं कोरोना क्या है, गंभीरता से परिचित ही नहीं। क्योंकि कोरोना के खतरों के प्रति लोगों को जागरूक ही नहीं किया गया। सोशल मीडिया में जिन लोगों ने जागरूक करने का प्रयास किया गया तो उनको पूर्वाग्रहों के कारण हतोत्साहित किया गया, गाली गलौच की गई, तिरस्कार किया गया।
व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी में नए-नए नुस्खे बताए गए, सड़कछाप विज्ञान लेखकों की रद्दी किताबों के पन्नों में कोरोना का इलाज खोज कर बताया गया। बहुत लोगों को तो यह लगता है कि हूटर बजा कर, गौमूत्र पीकर, थाली बजाकर, छतों पर लगने वाली टीन की चादरों को लाठी से पीटकर शोर मचाने से कोरोना दुम दबाकर भाग जाता है।
ऐसे अजागरूक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण हीन लोगों से यह अपेक्षा कैसे की जा सकती है कि वे लोग चोरी छिपे तीन-तिकड़म से आपस में नहीं मिलेंगे जुलेंगे और सोशल डिस्टेंस मेंटेन रखेंगे, हाइजीन रहेंगे।
भारत के लाखों गांवों में लाक-डाउन का क्या मतलब रहेगा? वहां लोगों को एक दूसरे से मिलने से कैसे रोका जाएगा? कस्बों में कैसे रोका जाएगा? यदि इन इलाकों में दो चार कोरोना संक्रमित लोग पहुंच गए होंगे तो क्या होगा।
देश के पास न तो इतनी पुलिस है, न ही इतनी सेना कि हर गली कूचे पर नजर रख सके। मान लीजिए कि नजर रख भी ले तो क्या लोगों को गोली मारी जाएगी, केवल इस बात पर कि वे एक दूसरे से मिल रहे थे।
सब लोग तो जमाखोर नहीं हैं, तो देश के ऐसे करोड़ों लोग जो जमाखोर नहीं हैं, जो रोज कुआं खोदते हैं, रोज पानी पीते हैं, जो रोज 100 ग्राम तेल खरीद कर खाना पकाते हैं, वे तीन सप्ताह तक अपने खाने पीने का इंतजाम कैसे करेंगे।
ऐसा भी तो नहीं है कि हर दुकानदार के पास तीन सप्ताह की जरूरतों का स्टाक हो ही। बहुत दुकानदार साप्ताहिक खरीदारी करते हैं। देश के हर आदमी को तो बड़े-बड़े माल उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे लोग एक दूसरे से मिलने व समस्याओं को हल करने का जोड़तोड़ लगाएंगे ही।
यह काल्पनिक व फिजूल बात है कि इन सबकी परवाह जिला प्रशासन या पुलिस करेगी। कोरोना लोगों को बीमार करता है, न कि नौकरशाही को रातोंरात जिम्मेदार, जवाबदेह, लोकतांत्रिक मूल्यों का धनी व संवेदनशील बनाता है।
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ऐसा तो है नहीं कि कोरोना तीन सप्ताह में अपने आप नष्ट हो जाता हो। ऊपर से जब संक्रमित लोगों की टेस्टिंग करके छटनी ही नहीं की गई, ऊपर से संक्रमित लोग गैर-संक्रमित के साथ ही रहेंगे, तो संक्रमण फैलता ही रहेगा।
यदि लाक डाउन न होता तो, कई विकल्पों पर विचार विमर्श हो सकता था। लेकिन चूंकि लाक डाउन हो चुका है, तो सरकार को चाहिए कि वह घोषणा करे कि हो सकता है कि लाक डाउन लंबे समय तक भी चल सकता है।
सरकार को ईमानदारी से यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि लाक डाउन कोरोना के संक्रमण फैलने की गति को धीमा करने के लिए है। लाक डाउन कोरोना को नष्ट नहीं करता है, यह कोरोना का इलाज नहीं है, न ही नष्ट करने का नुस्खा है।
वरना भारत के लोग तो ऐसे हैं कि यदि देश का पीएम धन्यवाद ज्ञापन करने का कोई नुस्खा बताता है तो लोग उसको कोरोना को नष्ट करने का नुस्खा खुद ही मानकर वेदों व विज्ञान के नए-नए व अजीबो-गरीब नियम व सिद्धांत बता कर विश्लेषित करने लगते हैं। और लोगों की नासमझी की परिणति एक दिन के जनता कर्फ्यू से तीन सप्ताह के लाक डाउन में हो जाती है।
Vivek Umrao Glendenning "Samajik Yayavar"
- The Founder and the Chief Editor, the Ground Report India group
- World Peace Ambassador
- The Author, Books
After mechanical engineering graduation and research work in renewable energy systems, he preferred to work voluntarily without a salary with exploited and marginalised communities in very backward areas, rather than taking a job for money.
Getting a PhD scholarship in a European university for a student in India could be a lifetime dream for the people of third world countries, but he preferred to go to work with marginalised communities rather than to accept PhD scholarship by a European university.
To understand ground realities and non-manipulated primary information, he did many thousands kilometres foot-marches covering thousands of villages. By these intense foot marches, mass meetings and community talks, he had face-to-face dialogues with around one million people before the age of forty years.
He has been exploring, understanding and implementing the ideas of social-economy, participatory local governance, education, citizen-media, ground-journalism, rural-journalism, freedom of expression, bureaucratic accountability, tribal development, village development, reliefs & rehabilitation, village revival and other.
In India, he founded or co-founded or strongly supported various social organisations, educational and health institutes, cottage industries, marketing systems and community-universities for education, social economy, health, environment, social environment, renewable-energy, groundwater, river-rejuvenation, social justice and sustainability.
He got married to an Australian hydrology-scientist around fifteen years ago, but stayed in India for more than a decade to work for exploited and marginalised communities. Before marriage, they mutually agreed that until the ongoing works need their physical presence in India, they will not have a baby. That is why they did not make any effort to have a baby for eleven years after the marriage.
Many hundred thousand of people of marginalised communities of backward areas of India love and regard him, also have accepted him as their family. He left all these social-achievements and prestige for living as a forgotten person to become the full-time father for his son. Even before leaving India, he donated everything except some of his clothes, mobile and laptop.
Now he lives in Canberra with his son and wife. He voluntarily writes for Indian journals and social media on social issues. Also, he supports ground activists in India as a counsellor who work for the social solution. He is also associated with some international organisations who work for peace and sustainability.
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For Ground Report India editions, Vivek had been organising national or semi-national tours for exploring ground realities covering 5000 to 15000 kilometres in one or two months to establish Ground Report India, a constructive ground journalism platform with social accountability.
He has written a book “मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” on various social issues, development community practices, water, agriculture, his ground works & efforts and conditioning of thoughts & mind. Reviewers say it is a practical book which answers “What” “Why” “How” practically for the development and social solution in India.
Situation is worst than Indians have assumed.
लोग, प्रशासन, सरकार, चिकित्सा प्रशासन किसी को अंदाजा ही नहीं है। समझ ही नहीं पा रहे हैं कि क्या करें, क्या न करें। इसलिए विकसित देश जो कर रहे हैं, उनकी जैसी भी उल्टी सीधी नकल हो पाती है, वही कर रहे हैं। अपने देश के चरित्र के आधार पर कोई सोच, समझ, योजना, रणनीति है ही नहीं।
मूल समस्या यही है कि लॉकडाउन घोषित तो हो गया है लेकिन जाँच की सुविधाएं ज्यादातर जगहों टर तो उपलब्ध ही नहीं हैं, जहाँ हैं वहाँ भी जरूरत के मुताबिक नहीं हैं। प्राईवेट लैब्स को साढ़े चार हजार रुपये तक में जाँच करने के लिये नियुक्त करना समझ से बाहर की बात है। जाँच किट मुफ्त उपलब्ध करवा देते उन्हें, और हिदायत देते कि मरीज से आपको कुछ नहीं लेना है। खैर।
लेख में जो लिखा है वो बिल्कुल सही है और एक भयावह भविष्य की ओर इशारा कर रहा है। लॉकडाउन होगा और इक्कीस दिन में कई मरीज सामने आयेंगे जिनको आईसोलेट किया जायेगा, लेकिन ऐसे लोग भी लाखों में हो सकते हैं जो संक्रमित हैं लेकिन कोई लक्षण नहीं हैं उनमें, तो उनको आईसोलेट नहीं किया जा सकेगा चूँकि जाँच तो हो ही नहीं रही। ये लोग संक्रमण फैलाते रहेंगे। फिर लॉकडाउन खुलने की बारी आ जायेगी। अब जिसे संक्रमण ही आज से बीसवें दिन में होगा वो तो लॉकडाउन खुलने के बाद बहुत तेजी से और लोगों को संक्रमित करेगा। और ऐसे लोग लाखों हो सकते हैं। नतीजा ये हो सकता है कि लॉकडाउन की अवधि में नये केसों की संख्या कम होते होते शून्य तक पहुँच जाये पर लॉकडाउन खुलते ही पहले धीरे – धीरे और फिर द्रुत गति से बढ़ना शुरू कर दे। परिणामस्वरूप सरकार फिर लॉकडाउन लागू कर देगी। क्योंकि संसाधन तो तब भी नहीं होंगे।
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ी चुनौती मेहनतकश ग़रीब जनता को भूख से मरने से बचाने की होगी, कोरोना से नहीं। हालांकि कुछ मौखिक घोषणाएं हुईं तो हैं लेकिन एक तो वो घोषणाएं ही हैं, बड़े शहरों में रिक्शा चलाने वालों की गिनती तक तो है नहीं सरकार के पास, उनको डीबीटी के माध्यम से पैसा कैसे भेजेगी।
और दूसरे लोग भी हैं, छोटे दुकानदार हैं, ढाबेवाले, चाय – पकौड़े और गोलगप्पे के ठेले/ खोमचेवाले हैं। यहाँतककि भिखारियों को भी दो वक्त की रोटी बन्द हो चुकी है। इनका जल्द कोई पुख्ता इन्तजाम नहीं किया गया तो कोरोना का तो पता नहीं, जनता में त्राहिमाम जरूर मच सकता है।
सरकार के सामने बहुत बड़ी चुनौती है। उम्मीद करते हैं कि कुछ इन्तजाम किये होंगे। हालांकि प्रधानमन्त्री ने कुछ बताया तो है नहीं।
मेरा लेख लिखना सफल हो गया, आपकी कमेेंट पढ़कर मुझे महसूस हुआ। धन्यवाद
आपसे पूरी तरह सहमत हूँ विवेक भाई ,कल आपसे इसी विषय पर चर्चा हुई भी थी आपकी एक पोस्ट पर ,आज आपने विस्तार दिया ,धन्यवाद ! हमारी मज़बूरी ये है की ज्यादा से ज्यादा जांच हो ये बात सरकार को कौन समझाये ?
लोग तो बेबात भारत को विश्वनेता बनाने पर तुले हैं। लोगों को यह चिंता नहीं है कि टेस्टिंग नहीं हो रही इसलिए केसेस की संख्या कम है, उनको यह गर्व है कि संख्या कम है तो देश विश्वनेता हुआ जा रहा है। अजीब कुंठित मानसिकता है।
पूरे उत्तर प्रदेश में कोरोना जांच के लिए केवल दो लैब है, ऐसे में इतनी बड़ी जनसख्या को केवल दो लैब से कैसे जांच पाएंगे जैसा की लॉक डाउन हो चूका है वो भी पूरे तीन सप्ताह के लिए मुझे लगता है की कोरोना से ज्यादा बड़ी समस्या भूख की होने वाली है देश में , सरकार ने यह निर्णय किस आधार पर लिया मैं कुछ नहीं कह सकता हूँ लेकिन कहीं न कहीं बहुत बड़ी समस्या आने वाली है जिसको केवल सरकार जल्दी बजी में कुछ भी करके ख़त्म करना चाह रही है सरकार को बहुत ही गंभीर होकर निचले अस्तर पर जाकर प्लानिंग करनी पड़ेगी तभी कुछ संभव हो पायेगा खैर अब देखिये सब कैसे होगा
मेरा अंदाजा है कि लाकडाउन लंबा चलेगा
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