Ma Jivan Shaifaly[divider style=’right’]
यह मेरे जीवन की
सबसे अश्लील और ‘अंतिम’ कविता है
जब मैं अपने स्थूल भगोष्ठों पर
तुम्हारी चेतना के सूक्ष्म स्पर्श को
अनुभव करते हुए
ब्रह्माण्डीय प्रेम के
चरम बिन्दु को छू रही हूँ
जहाँ दो देहो के मिले बिना
आत्म मिलन की संतुष्टि की गाथा
लिखी जाएगी
कामसूत्र के
अदृश्य ताम्रपत्रों में
और उकेरी जाएगी
खजुराहो मंदिर के गर्भ गृह में
जहाँ तक कभी उस मंदिर की दीवारों की कला
भी नहीं पहुँच पाई

Shaifaly Nayak
क्योंकि अब हम कला की देहरी को भी
पार कर चुके हैं
भंग कर चुके हैं
साहित्य की सीमा को भी
अध्यात्म तो हमारी लापरवाही की फूंक भर है..
क्योंकि मेरे कानों के पीछे
तुम्हारी एक प्रेम भरी सांस की कल्पना में ही
मेरी मुक्ति की पूरी गाथा लिखी जा चुकी है
संभोग का चिन्तन बंधन है और कृत्य का आत्मिक अनुभव आन्नद और मुक्ति।आन्नद के इस अन्यतम क्षण का भोक्ता ही लिख सकता है ऐसी अश्लील कविता ।अद्भुत और अप्रतिम पंक्तियाँ ।
आपने शानदार कविता की रचना की है।
आपकी और भी कविताएं पड़ने की इच्छा होना ही कविता की श्रेष्ठता को साबित करता है।