महलों का घर
Mukesh Kumar Sinha देखी है मैंनेऊँची चहारदीवारियों के बीच बड़े गेट के पीछे छिपा बिन खिड़कियों का घर चहारदीवारी में छिपके सांस थामेंबिना हिले डुले आहिस्ते से अपने टांगों परटिका हुआ घर इंटरकॉम औरस्क्रीन वाले फोन के साथधुंधले पड़े गेट पे लगेडोर आईज से पूरा पता लेकर बताता है सन्तरीकोई आया है।फिर भी, ऐसे घरों मेंबना रहता है डर बिन बच्चों के खिलखिलाहट के भीहवाओं के सहारे झूलते झूले उनींदी सी खोयी रहती है किसी अनजाने के आने के उम्मीद मेंजबकि शेर… Continue reading