नया राष्ट्रगान

Rajneesh SachanFounder, MadhyaMargEditor, Ground Report India (Hindi) अपने अतीत की महानता के मिथ्या गर्व में डूबा एक देश थाकिसी दूसरी आकाशगंगा मेंकिसी और ग्रह परकिसी और प्रजाति के लोगों का उनकी भाषा से हिंदी में भावानुवाद किया जाए तो कुछ यूँ होगा कि-वे खुद को विश्व गुरु मानते थे ख़ैरउनकी भाषा में उनका भी हमारी तरह एक राष्ट्रगान थाजैसे हमारा अपना ‘जन गण मन’उनका संविधान थासंसद थी समूचे लोकतंत्र जैसी कोई व्यवस्था थी तो… Continue reading

उद्योगपतियों की नौटंकी, मानव विकास सूचकांक और हमारा वाला विकास — Rajneesh Sachan

Rajneesh SachanFounder, MadhyaMargEditor, Ground Report India (Hindi) लोगों की जिस सोच, इच्छा, उम्मीद और मांग के साथ भाजपा सत्ता में आई थी, भाजपा सरकार वही कर रही है। लोगों ने भाजपा को वोट न तो नौकरियों के लिए दिया था, न जीवन स्तर बेहतर करने के लिए दिया था, और न ही भारत को कोई आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए दिया था। हमने भाजपा को वोट दिया था देश को विश्वगुरु बनाने… Continue reading

आत्म मुग्ध, सामंती भारतीय समाज और कश्मीर — Rajneesh Sachan

Rajneesh SachanFounder, MadhyaMargEditor, Ground Report India (Hindi) जब हम मानव (human) के बारे में बात करते हैं तब हमारी सोच में मानव के अतिरिक्त धरती पर बसने वाले अन्य जीवनों के हित कितने शामिल होते हैं इससे हमारी मानवता तय होती है। जब हम अपने देश के बारे में बात करते हैं तब धरती पर बसे अन्य तमाम देशों के हित और उनमे बसने वाले तमाम लोगों के हित हमारी सोच का… Continue reading

समाज, देश, सामूहिक स्वामित्व की परिकल्पना और हम — Rajneesh Sachan

Rajneesh SachanFounder, MadhyaMargEditor, Ground Report India (Hindi) जिन दो किसानों के खेत एक दूसरे से लगे हुए होते हैं उन दोनों किसानों के खेतों के बीच में एक मेढ़ होती है, जो दोनों के लिए साझी होती है,और वह पतला सा ज़मीन का टुकड़ा दोनों का साझा होता है । कुछ अपवाद मामलों को छोड़कर अधिकतर किसान खेत जोतते समय हर बार थोड़ी थोड़ी मेढ़ खुरचते जाते हैं। एक समय ऐसा… Continue reading

दुनिया का सबसे बड़ा भारतीय संविधान, जीडीपी, भ्रष्टाचार और हमारा समाज — Rajneesh Sachan

Rajneesh SachanFounder, MadhyaMargEditor, Ground Report India (Hindi) समाज दो तरह के नियमों से चलता है एक लिखित नियम और दूसरे अलिखित नियम। दुनिया में अलिखित नियम पहले आए और लिखित नियम (संविधान के रूप में या किन्ही अन्य रूप में) बहुत बाद में आए। किसी भी समाज की सामूहिक चेतना, विवेक,संवेदनशीलता,लोकतांत्रिक सोच आदि को जांचने के कई पैमाने होंगे लेकिन लिखित और अलिखित कानूनों के बीच का अनुपात और उनका प्रकार मेरी… Continue reading

मेरी कितनी दुनियाएँ हैं

Rajneesh [themify_hr color=”red”] मेरी कितनी दुनियाएँ हैं मैं कितनी ज़िंदगियाँ जीता हूँ एक साथ और कितने किरदारों में ख़ुद को समेटने की कोशिश करता हूँ मैं नहीं जानता ठीक-ठीक तो नहीं जानता या जानना नहीं चाहता पर कुछ के बारे में निश्चित तौर पर बता सकता हूँ कमरे के अन्दर और बाहर अलग हूँ मैं और यह बात दुनिया के हर कमरे पर लागू होती है सड़क के इस पार… Continue reading