दलित चेतना
आलोक नंदन वेदों-शास्त्रों के खिलाफ विषवमन करके मुटाती है दलित चेतना मनुस्मृति को मुंह में डालकर पघुराती है दलित चेतना अपने पूर्वजों के खिलाफ वर्णवादी व्यवहार पर कसमसाती है दलित चेतना एकलव्य के कटे हुये अंगूठे में अपना अक्स निहारती तर्कों का फन फैलाकर कभी राम पर कभी कृष्ण पर फुंफकारती है दलित चेतना। बाबा साहेब के कंधों पर सवार हो संविधान में जगह पाती है फिर भी प्रतिशोध की… Continue reading