दुःख – अपर्णा अनेकवर्णा
Aparna Anekvarna १. दुःख में अवश्य मर जाती होंगी औसत से अधिक कोशिकाएं झुलस जाता होगा रक्त भी तनिक ठहरता होगा जीवन-स्पंदन हठात सब औचक की ठेस से सन्न उस पार निकलने को बेचैन फिर ऊब जाता होगा मन बंधे-बंधाये से आक्रोश भी बाँध-बाँध कर बाग़ी मंसूबे अंततः ढह जाता होगा निश्चय ही कुछ ऐसा होता होगा जब दुःख आता होगा २.दुःख में चुपचाप एक सदी बीत जाती है भीतर बाहर बस एक निश्वास मात्र सो भी ‘नाटकीय’ हो जाने से आँखें चुराते अपने घटते… Continue reading