किसानों की आत्मनिर्भरता को खत्म करते दिशा निर्देश एवं नीतियां

​Prem Singh​​​​​ सन सत्तर के दशक तक अर्थात हरित क्रांति के पूर्व तक बुंदेल खंड के गावों मे खेतों (उत्पादन एवं उत्पादकता ) एवं किसानों की हालत बताने वाली पीढ़ी आज भी जीवित है। मार (black cotton soil) जमीनों मे 8से 10 कुंतल प्रति एकड़ बिर्रा,तिफरा,10 से 12 कु.प्रति एकड़ चना या मसूर,इसी प्रकार रांकड़ या पंडुवा खेतों मे खरीफ की फसलें ली जाती थीं,जिससे 10 से 12 कु. प्रति… Continue reading

किसान संकट के बीज

Prem Singh बुंदेल खण्ड में ग्रीन रेवलूशन, गाँव से बाहर शहरों में पढ़े नव शिक्षित वर्ग के साथ १९७५ के आस पास ही गाँव में प्रवेश कर पाया इसके पहले नहीं। वही शिक्षित वर्ग जिसे गाँव वालों ने बड़े हसरत और प्यार से बाहर पढ़ने के लिए भेजा था, लौट आने के बाद भी बड़ा सम्मान करते थे।(मेरे गाँव में सबसे पहले जो सज्जन इलाहबाद विस्वविद्यालय पढ़ने गए थे १९६५… Continue reading

किसान

[themify_hr color=”red”] जी हाँ किसान जीन्स पहनता है, चश्मा लगाता है, मोटरसाइकिल भी चलाता है, बैल गाड़ी, ट्रैक्टर सहित सभी गाड़ियाँ चलाता है। दारू भी पीता है, ख़ूब नाचता, गाता भी है। किसान मजबूरीवश मज़दूर भी हो सकता है, रिक्शा, ताँगा भी चलाता मिल सकता है। इस देश का किसान बिना ज़मीन का भी होता है और सैकड़ों बीघे का भी हो सकता है; साथ में जो मंत्री, विधायक बनकर… Continue reading

किसानो को आख़िर चाहिये क्या?

[themify_hr color=”red”] किसानो को चाहिये खाद, बीज, पानी, ऊर्जा और विचार में आत्मनिर्भरता, जो 1970 के पूर्व थी। शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय में समानता। क्योंकि किसान इनके बिना रह नही पता। और सरकार ने इन्हें धन कमाने का ज़रिया बना रखा है। समृद्धि आधारित ऐसा क्रशि का मॉडल जो लाभ हानि से मुक्त उभय त्रप्ती दायक हो। अर्थात पर्यावरण असंतुलन कारी एवं समाज को तोड़ने वाला न हो। उत्पादकों (किसानो)… Continue reading