यौन शिक्षा :: एक दृष्टिकोण – अनुपमा गर्ग (भाग – 1)

भूमिका -

आज एक कॉलेज सीनियर ने फ़ोन किया। 18 - 19 साल का बच्चा है उनका। जब मैं मास्टर्स के एक्साम्स देने गयी थी, तब ये भी बच्चे को घर छोड़ कर आती थीं प्राइवेट एक्साम्स देने। हम दोनों अलग-अलग सब्जेक्ट्स में थे, और ये शादी के कई सालों बाद दोबारा पढाई शुरू कर रही थीं। पति के साथ रिलेशनशिप बिलकुल उतनी ही टॉक्सिक और अब्यूसिव है, जितनी आम हिंदुस्तानी घरों में होती है। लेकिन बच्चे को इन्होंने बहुत खुले मन से पाला। बच्चा बड़े शहर की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ने जब गया पहली बार, तो इन्होने अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए, उसे सेफ सेक्स, प्रोटेक्शन, वगैरह भी समझाया। बच्चा ने वहां bumble, tinder वगैरह चलाया, और hookup कर के आया।

अभी छुट्टियों में घर लौटा और बाप ने condoms देख लिए बच्चे के सामान में। उधर हमारी सीनियर को बच्चे ने खुले मन से बताया कि वो कैसे अपनी एक सीनियर विजिटिंग स्टूडेंट के साथ मिला डेटिंग ऐप पर, और उसने कैसे इंटिमेसी एक्स्प्लोर की। 'We enjoyed  ourselves mumma without commitments, without baggage, and with safety. Maybe we will do it again'.

मेरी दोस्त के चेहरे पर कुछ भाव आये, कुछ गए। बच्चे ने देखे, और बोला "Sorry mamma, I upset you  " दोस्त ने बच्चे से कहा कि वो अपसेट नहीं हैं लेकिन मुझसे बात करते समय वो चिंतित थीं। उनके शब्द थे - "अनुपमा वो distract हो जायेगा पढ़ाई से। क्या मैंने उसे मेंटली prepare करने में कोई गलती कर दी? मैं डिस्कस किस से करूं ?"

मुझे  लेकिन सिर्फ़ ये एक ही सवाल नहीं दिखा यहाँ। मुझे कई सवाल सुनाई दिए - कहे अनकहे। एक सवाल  - क्या मेरी परवरिश में कमी रह गयी ? क्या मैं अच्छी माँ नहीं हूँ ? क्या मेरा बेटा बिगड़ रहा है ? क्या मेरा बेटा भटक जायेगा ?

खैर मेरी दोस्त और मेरा संवाद अधूरा रह गया, कि कोई आ गया दरवाज़े पर। वैसे भी हम दोनों तो करते ही रहेंगे अपना followup फ़ोन कॉल, लेकिन मेरा दिमाग कई पुराने संवादों की तरफ गया।

बहुत से संवाद हैं जो अलग अलग वक़्त पर, अलग अलग लोगों के साथ किए हैं मैंने, सेक्स, जेंडर, सेक्सुअलिटी के बारे में। और हर संवाद सिरे से शुरू करना पड़ा है। हर संवाद में यही निकल के आता है कि इस बारे में बात करने की ज़रुरत है, लेकिन टैबू है। और जितनी बार बात करो, सवाल फिर वही, तुमको ये ही बात क्यों करना है ? और भी तो इतना कुछ है बात करने के लिए? लिखने के लिए !

दुनिया कहाँ जा रही, और हम अभी गुड टच, बैड टच, कंसेंट में ही उलझे हैं, orgasm पर कब पहुंचेंगे? बात करते हैं तो या तो संस्कृतनिष्ठ हिंदी में जिसका रोज़मर्रा की बोलचाल से कोई लेना देना नहीं, या फिर स्लैंग में, जिसको सुन के ही उबकाई आ जाये। शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, बचपन की गलतियों के बोर्ड पढ़ लीजिये, किसी नए शहर में घुसते ही। ऑटो वाले को बदनाम गलियाँ ज़रूर पता होंगी,  बाकी कुछ पता हो न हो।  यहाँ तक कि एक बार मैं एक जाने माने सेक्सोलॉजिस्ट को इंटरव्यू करने गयी, और उनके चैम्बर के बाहर बैठे हुए मैंने सुना कि वो किसी मरीज़ से कह रहे थे 'तुझे घोड़ा बना दूंगा, चिंता मत कर।'

"मैडम आप लेस्बियन हैं क्या? वरना आप को सेक्सुअलिटी की स्टडी क्यों करनी है? आप डॉक्टर थोड़े ही हैं ? "

मेरा मन किया पूछूँ, "आप तो डॉक्टर हैं न? गे भी नहीं हैं, फिर उस बेचारे भले पेशेंट को घोड़ा क्यों बनाना चाहते थे?" 

मैं बिना इंटरव्यू लिए, शुक्रिया बोल कर चली आयी वहां से, लेकिन मैं आज भी देखती हूँ लोगों को सवालों के साथ घूमते हुए, और कचरा सीखते हुए, एंग्जायटी से डील करते हुए, रिश्तों को दरकते हुए, अनाप शनाप पैसा खर्चते हुए।इसी सब के साथ कई साथियों से परिचर्चा एवं लेखन कार्य के साथ सेक्सुअल अवयेरनेस पर नोट्स की जरूरत महसूस हुई। सेक्सुअल अवेयरनेस परिपक्वता में नज़र आती है, अश्लीलता में नहीं। लेख के आखिर में गूगल फॉर्म भी उपलब्ध है ताकि जो लोग बिना नाम बताए पूछना चाहें, पूछ सकें।

श्रंखला के पहले प्रश्न से हम इसकी शुरुआत करते है

 

प्रश्न - क्या भावनात्मक रूप से एक हुए बिना सेक्स संतुष्टि प्रदान कर सकता है । दूसरे शब्दों में क्या आत्मिक प्रेम स्थापित हुए बिना मात्र शारीरिक स्तर पर किया गया मैथुन मन को तृप्त कर पाता है? यदि शारीरिक स्तर पर किया गया सेक्स और प्रेम में किए गए सेक्स समान रूप से संतुष्टि दायक हैं तो फिर अन्य अनेक लोगों को मैं देखता हूं कि वे किसी के साथ शारीरिक रूप से मैथुन करने के बाद पुनः शीघ्र ही अपनी संतुष्टि किसी अन्य पुरुष या स्त्री में खोजने लगते हैं, ऐसा क्यों है कि शारीरिक क्षुधा शांत होने पर भी मन अतृप्त रहता है?

मैम, मैं इस संदर्भ में बहुत हद तक अनभिज्ञ हूं इसलिए यह प्रश्न अक्सर मेरे सामने आता है । इस संदर्भ में मेरा ग्यान ज्यादातर किताबी ही है, इसलिए प्रश्न में तनिक भ्रम सा दिखाई पड़ सकता है इसलिए क्षमा करें । भैरप्पा बहुत दृढ़ता से सम्भोग और मैथुन (sex) और सम्भोग को अलग अलग परिभाषित करता है।  वात्स्यायन भी इसमें अंतर करता है । जबकि अंग्रेजी में इसके लिए कोई अलग शब्द ही नहीं है । उपरवास से सम्भोग की प्रक्रिया तक स्त्री और पुरुष का पहुंचना क्या वस्तुतः मैथुन ही है और अगर ऐसा है तो परिणाम में सामान्यतः अंतर क्यों दिखाई देता है । क्यों एक पुरुष सुखी दामपत्य जीते हुए भी अपनी तृप्ति महसूस नहीं कर पाता और क्यों किसी को एक सामान्य चुम्बन भी तृप्ति का बोध करा देता है ?

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इसका कोई सीधा जवाब नहीं है। सेक्स व्यक्तिगत होता है। कई लोग हैं, जिन्हें बिना बौद्धिक उत्तेजना के बगैर किया सेक्स संतुष्टि नहीं देता। ऐसे लोगों को Sapiosexual कहा जाता है। दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें प्रेम में ही उत्तेजना, और प्रेमी के साथ किए सेक्स से ही आनंद की प्राप्ति होती है। ऐसे लोगों को Demisexual कहा जाता है।

वहीं Asexual लोग भी हैं, जिन्हें सेक्सुअल उत्तेजना नहीं होती। उन्हें लोगों से प्रेम होता है, वे लोगों से शारीरिक, भावनात्मक सम्बन्ध बना सकते हैं, वे लोगों के गले लग सकते हैं, उन्हें बाहों में भी भर सकते हैं, उन्हें रोमांटिक स्पर्श की इच्छा भी हो सकती है, लेकिन सेक्स या जिसे आप मैथुन या सम्भोग कह रहे हैं, उसकी इच्छा नहीं होती।

ठीक इसी तरह ऐसे लोग भी हैं, जो सेक्स को सिर्फ शारीरिक आवश्यकता की तरह देखते हैं, उसे पूरा भी करते हैं, और उन्हें इसके लिए emotions या commitment या spiritual सम्बन्ध की आवश्यकता नहीं होती। इसका व्यक्ति के जेंडर से कोई सम्बन्ध नहीं है। महिलाएं या पुरुष कोई भी ऐसा हो सकता है।

सेक्स को सिर्फ शारीरिक आवश्यकता की तरह देखने वाले लोग इसे पूरा भी करें, ये यह कोई जरूरी नहीं है। इसका मतलब ये भी नहीं, कि वे अपने सेक्सुअल साथी / साथियों के प्रति सम्मान नहीं रखते। ये भी जरूरी नहीं, कि बहुत से लोग ये समझते भी हों कि सेक्स उनके लिए मात्रा एक शारीरिक आवश्यकता है। विशेष तौर पर इसलिए क्योंकि सेक्स के बारे में हमारी समझ अधिकतर कंडीशनिंग, सामाजिक और नैतिक मूल्यों, दंड विधान आदि से विकसित होती है।

कई समाजों में (जैसे हमारे अपने समाज को ही उदाहरण के तौर पर देखें, या जैसे और भी बहुत से साउथ एशियाई देशों में सेक्स को ले कर बहुत कुंठा है), सेक्स की बात करने या, सेक्स की इच्छा दर्शाने पर, या सेक्स कर लेने पर भी, लोगों की सामाजिक, नैतिक प्रताड़ना की जाती है। ऐसे में लोग अक्सर ये दिखाने की कोशिश करते हैं, कि उन्हें अपने साथी से प्रेम भी है। ऐसे समाज में अक्सर, सेक्स की बातें, सेक्स की प्रक्रिया, और सेक्स का अनुभव, सभी बहुत ढोंग और कुंठाओं से भर जाता है।

वहीँ दूसरी ओर, जिन समाजों में सेक्सुअलिटी का सम्यक अध्ययन किया जा रहा है वहां सेक्सुअलिटी के बारे में नए तथ्य सामने आ रहे हैं। जहाँ अपनी सेक्सुअल डिजायर बताने पर पाबन्दी नहीं है, जहाँ सेक्सुअल भिन्नता के लिए दंड का प्रावधान नहीं है, वहां लोग ठीक से और सवालों के साथ, इस सवाल का भी जवाब दे पा रहे हैं। ये एक अलग बात है, कि धीरे-धीरे वक़्त बदल रहा है, और जैसे जैसे समाज में लोगों के अनुभव बदलेंगे, वैसे ही धीरे-धीरे शायद समाज की सेक्स, संतुष्टि, और आनंद को ले कर अवधारणाएं भी।

मेरे व्यक्तिगत अनुभव में, हमने सदियों से इस बारे में बात ही न कर के इस विषय को बेवजह ज़रुरत से ज़्यादा उलझन भरा बना दिया है। सेक्स अनुभव और संवाद का विषय ज़्यादा है, अध्ययन का कम। इसलिए हमारे प्रश्न यदि इस बात पर ज़्यादा ध्यान दें कि हम स्वयं, और अपने साथी को कैसे आनंद पहुंचा सकते हैं, तो हम पाएंगे कि हमारे सम्बन्ध कहीं बेहतर होंगे, बजाय इसके कि कामसूत्र में कितनी मुद्राएं हैं, या भैरप्पा सम्भोग व मैथुन के लिए अलग अलग terms use करते हैं या नहीं।

वैसे सन्दर्भ में बताती चलूँ, कि अंग्रेज़ी में सेक्स शब्द को बहुत आराम से इस्तेमाल किया जाता है, मैथुन के लिए शब्द 'coitus' है, लेकिन वहां लोगों से ये उम्मीदें नहीं की जातीं कि वे जब तक शुद्ध भाषा में बात न कर सकें, तब तक उनके प्रश्न, उनके उत्तर, या उनके अनुभवजन्य विचार मान्य नहीं होंगे।

खैर विषय से इतर गए बिना, मूल प्रश्न पर लौटते हुए - सेक्स एक व्यक्तिगत अनुभव है, इसलिए कुछ लोगों को भावनात्मक रिश्ते के बिना संतुष्टि नहीं मिलती, कुछ लोगों को मिलती है। हाँ सहमति ज़रूरी है। भारतीय विधि के प्रावधान के अनुसार सहमति देने का विषय अपने आप में काफी विशद है, इसलिए वो किसी और दिन।

डिस्क्लेमर - मेरे लेख में हम सेक्स और सेक्सुअलिटी के सम्बन्ध में बात इसलिए कर रहे हैं ताकि की जाती है कि पूर्वाग्रहों, कुंठाओं से बाहर आ कर, इस विषय पर संवाद स्थापित किया जा सके, और एक स्वस्थ समाज का विकास किया जा सके। यहाँ किसी की भावनाएं भड़काने, किसी को चोट पहुँचाने, या किसी को क्या करना चाहिए ये बताने का प्रयास हरगिज़ नहीं किया जाता। ऐसे ही, कृपया ये प्रयास मेरे साथ न करें। प्रश्न पूछना चाहें, तो गूगल फॉर्म संलग्न है, वहां पूछ सकते हैं। 

Google Form Link - https://forms.gle/9h6SKgQcuyzq1tQy6

About Author

Anupama Garg

Anupama is an ever-evolving person, deeply interested in human behavior, specially human sexuality. She has vastly researched alternative sexual lifestyles and has also written a series of non-fiction books on the subject with a pseudonym.

She believes in transforming the outlook towards sexuality by structured, quality conversations, one at a time. Apart from this space, she works as a content specialist and researcher, writes poetry and sings for passion.

Instagram: @anupama.garg.25

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