फ़िल्म समीक्षा: “आर्टीकल 15” — Sanjay Jothe

Sanjay Jothe आर्टिकल 15 एक अच्छी फिल्म है, सभी मित्रों को जरुर देखनी चाहिए. इसमें कई खूबियाँ और कई कमियाँ है. यहाँ जब मैं इसे अच्छी फिल्म कह रहा हूँ तो इसका यही अर्थ है कि यह बहुत सारी दिशाओं में विचार करने को विवश करती है. कोई भी फिल्म या रचना एक आयाम में ही अपने निर्णयों को री-इन्फोर्स करती है तो वह अच्छी रचना या फिल्म नहीं कही जा… Continue reading

भारतीय बाबाओं की अवसरवादिता एवं धूर्त्तता

Sanjay Shramanjothe भारतीय इतिहास या संस्कृति के किसी भी मुद्दे पर बात करिए, एक बात भयानक रूप से चौंकाती है. सामान्य ढंग के भक्त और कम शिक्षित लोगों में जानकारी का अभाव होता है, इसलिए उनकी बातें बस प्रचलित नारों की प्रतिध्वनी भर होती है. खैर ये बात कम पीड़ित करती है. ज्यादा दुःख होता है रजनीश भक्तों से, इसमें श्री श्री और जग्गी वासुदेव के शिष्य भी जोड़े का… Continue reading

विज्ञान से संस्कृति देवी और इतिहास बाबू के प्रश्न – भाग 1

Sanjay Shramanjothe एक दिन पश्चिम का विज्ञान भारत घूमने आया. भारत के ज्ञानपुर में आते ही उसने भारत की “संस्कृति देवी” और भारत के “इतिहास बाबू” को कुश आसन पर पद्मासन में बैठे गहन धार्मिक (गधा) विमर्श करते हुए देखा. ये दोनों जुड़वा भाई बहन थे. थोड़ी देर उसने उनकी बातें सुनने की कोशिश की लेकिन संस्कृत भाषा के सूत्रों और मन्त्रों से भरी बातचीत वो समझ न सका. तब संस्कृति… Continue reading

तथाकथित ईश्वर की सरंचना – ज्ञान विज्ञान और सभ्यता के दुश्मनों का सीधा, धीमा और जहरीला प्रवाह –Sanjay Jothe

Sanjay Shramanjothe भारत की सँस्कृति में ‘उर्ध्वमूल अश्वत्थ’ की धारणा है, जो कहती है कि जगत परमात्मा का पतन है, इसलिए जागतिक ज्ञान भी ईश्वरीय ज्ञान का पतन है, ईश्वरीय ज्ञान सब कुछ है. अब ईश्वरीय ज्ञान इतना हवा हवाई और सब्जेक्टिव है कि उसे किसी भी दिशा में किसी भी तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है. इतिहास बताता है कि धर्म-धूर्तों ने उसे कैसे इस्तेमाल किया है. उनके पास… Continue reading

गौतम बुद्ध और विपस्सना सिखाने वाले वेदांती –Sanjay Jothe

Sanjay Jothe गौतम बुद्ध की परम्परा, उनके धर्म और संस्कृति को नष्ट करने के लिए बहुत गहराई से चाल चली गयी थी. पिछली सदी में डॉ. अंबेडकर सहित आज के इंडोलोजिस्ट्स भी यह बात सिद्ध कर चुके हैं कि एक धीमा और बहुत बारीक षड्यंत्र ब्राह्मणों के द्वारा फैलाया गया. श्रमण बौद्ध परम्परा जो कि इस शरीर और मन सहित इन दोनों के सम्मिलित परिणाम – व्यक्तित्व को अस्थाई मानती… Continue reading

विज्ञान के टॉपर बच्चे और बारिश के लिए हवन करता देश –Sanjay Jothe

Sanjay Jothe पिछले साल की बात है, एक मित्र के घर बारहवीं क्लास में टॉप किये एक बच्चे से बात हो रही थी. वो अपना कुत्ता लेकर उसके साथ खेल रहा था, अचानक उसका पैर एक किताब पर लगा और उसने “किताब के पैर छुए” कान भी पकड़े. खेलते हुए उसका पैर कुत्ते को भी लगा, उसने फिर कुत्ते के प्रति भी क्षमा व्यक्त की, मैंने पूछा कि ये क्यों?… Continue reading

भारत की एकमात्र समस्या – भारत का अध्यात्म –Sanjay Jothe

Sanjay Jothe भारत का अध्यात्म असल में एक पागलखाना है, एक ख़ास तरह का आधुनिक षड्यंत्र है जिसके सहारे पुराने शोषक धर्म और सामाजिक संरचना को नई ताकत और जिन्दगी दी जाती है. कई लोगों ने भारत में सामाजिक क्रान्ति की संभावना के नष्ट होते रहने के संबंध में जो विश्लेषण दिया है वो कहता है कि भारत का धर्म इसके लिए जिम्मेदार है. निश्चित ही भारत का धर्म प्रतिक्रान्ति का… Continue reading

बहुजन नायकों और ब्राह्मणवादी गुरुओं का भेद –Sanjay Jothe

Sanjay Jotheगौतम बुद्ध को पता चल चुका था कि उनकी मृत्यु तय हो चुकी है. एक गरीब लोहार के घर जहरीला भोजन खाने से उनके शरीर में जहर फैलने लगा था. गौतम बुद्ध जहर को अपने शरीर में फैलता हुआ अनुभव कर रहे थे. उन्होंने तुरंत घोषणा करवाइ कि वे अब विलीन होने वाले हैं और यह गरीब लोहार भाग्यशाली है कि इसके घर अंतिम भोजन करके मैं विलीन हो… Continue reading

ओशो रजनीश और भारत के बहुजनों का भविष्य –Sanjay Jothe

Sanjay Jotheओशो रजनीश पर जो नयी डॉक्युमेंट्री आई है उसे गौर से देखिये. शीला एक नादान किशोरी की तरह रजनीश से मिलती है. शीला के पिता रजनीश से प्रभावित हैं. शीला को उनके पिता कहते हैं कि ये व्यक्ति अगर लंबा जी सका तो ये दुसरा बुद्ध साबित होगा. हर किशोरी लड़की की तरह शीला भी अपने पिता के इन बाबाजी के प्रति समर्पण से स्वयं भी प्रभावित होती हैं. कुछ… Continue reading

“भारत की घृणा आधारित संस्कृति” –Sanjay Jothe

Sanjay Jothe एक अफ़गान मित्र जो कि वरिष्ठ एन्थ्रोपोलोजिस्ट (मानव-विज्ञानी/समाजशास्त्री) हैं और जो राजनीतिक शरणार्थी की तरह यूरोप में रह रही हैं शाम होते ही कसरत करने लगीं, दौड़ने लगीं, वे अकेली नहीं थीं उनके साथ स्थानीय यूरोपीय लड़कियां और दो अमेरिकी अधेड़ प्रोफेसर भी कसरत कर रहे थे. होटल से लगे मैदान में वे हँसते मुस्कुराते हुए वर्जिश कर रहे थे. ये सब अगले दिन से शुरू होने वाली… Continue reading