जाणे मेरा जीवड़ा — Vijendra Diwach

Vijendra Diwach मैं बेटीइस धरती पर आई,मेरी मां मुझे इस संसार में लेकर आई,लेकिन मेरी मां नारी होकर भी मुझे नहीं समझ पायी,मेरे लड़की रूप में पैदा होने परनारी ने ही रो-रोकर आंखें सुजाई।कहते हो मिश्र की सभ्यता में नारी का सम्मान था,राजा की कुर्सी के उत्तराधिकार पर बेटी का हक था,लेकिन बताओभाई की बहन से शादी,यहां यह कौनसा मेल था?यह तो सब पुरुषों काबहन के हाथों से सत्ता पाने… Continue reading

गाँव – स्मृतियों की पोटली — Mukesh Kumar Sinha

Mukesh Kumar Sinha पहुंचा हूँ गाँव अपने….जाने कितनी भूली बिसरी सुधियों की पोटली सहेजता..अब ज़रा सा आगे ही रुकेगी बस और, दूर दिखाई दे रहा है वो ढलान चौक कहते थे सब ग्रामवासीकूद के बस से उतरा और निगाहें खोजने लगीं वो खपरैल जिसमें चलता था “चित्रगुप्त पुस्तकालय” कहाँ गया वो .? कहाँ गयी वो लाईब्रेरी जिसने हमें मानवता का पहला पाठ पढ़ाया हमें मानव से इंसान बनाया थाबचपन के ढेरों अजब-गजब पलखुशियां-दर्द-शोक, हार-जीतसहेजा था इसके खंभे की… Continue reading

बदली — Hukum Singh Rajput

​हुकुम सिंह राजपूत ​रहती हू———घर नही!भागती हू——-डर नही!उड़ती हू—— –पर नही!देती हू ——- कर नही!आदि से हू —–अमर नही!नारी हू ———–नर नही!बिन मेरे गुजर बसर नही!इस पहेली का अर्थ है ​बदली​आइये बदली पर प्रकाश डाले:नित्य कहॉ से आती बदली,नित्य कहॉ जाती है बदली!अपना रङ्ग जमाती बदली,सबको नाच नचाती है बदली!झटपट रङ्ग बदल देती बदली,सफेद से लाल काली हो जाती है बदली!तुरन्त आकाश से हट जाती बदली,कभी आकाश पर छाई रहती है… Continue reading

हमारी दुनिया — Anand Kumar

​Anand Kumar ​ये कविता एक प्रयास है असमानता के दुनिया भर के कुछ उदाहरणों को साथ लेते हुए। इसे पढ़े तब कल्पना करें की कोई अश्वेत या दलित या महिला कुछ कहना चाह रहे हैं या जिन्होंने भी समानता के लिए कुछ किया या सोचा,  उनकी सोच कैसी रही होगी, बदले की और किस तरह के बदले की। कविता के तकनीकी पहलुओं में गड़बडियो के लिए माफ़ी चाहता हूँ, पहला प्रयास… Continue reading

भंगण मां — Vijendra Diwach

Vijendra Diwach मैं एक औरत हूँमेरी जाति मुझे भंगी बतायी गयी है,घर वालों ने बचपन से ही मुझेहाथों में झाड़ू पकड़ाई है,मेरी कमर में आभूषण केरूप में झाड़ू ही सजायी है।कोई मौसम नहीं देखते हैंबस निकल पड़ते हैं,कथित विद्वान चौक-रास्ते तो साफ करवाते हैं,लेकिन अपनी सामन्ती सोच पर कभी झाड़ू नहीं मारते हैं।गलियारे बुहारने पर मिल जाती हैकुछ रोटियां और थोड़ा अनाज,कभी कोई बुलाकर पड़ोसियों कोदेता है पुराने कपड़ो का… Continue reading