Vijendra Diwach
मैं बेटी
इस धरती पर आई,
मेरी मां मुझे इस संसार में लेकर आई,
लेकिन मेरी मां नारी होकर भी मुझे नहीं समझ पायी,
मेरे लड़की रूप में पैदा होने पर
नारी ने ही रो-रोकर आंखें सुजाई।
कहते हो मिश्र की सभ्यता में नारी का सम्मान था,
राजा की कुर्सी के उत्तराधिकार पर बेटी का हक था,
लेकिन बताओ
भाई की बहन से शादी,
यहां यह कौनसा मेल था?
यह तो सब पुरुषों का
बहन के हाथों से सत्ता पाने का खेल था,
कहते हैं मैं पहले आदमी द्वारा पूजी जाती थी,
लेकिन इस आदमी ने कैसे मुझे पूजा
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
रामराज्य के राम ने मुझे
सीता के रूप में अपवित्र कहकर वन में भेजा,
तथाकथित महान विद्वानों की सभा में
मुझे द्रोपदी के रूप में लूटा।
सबने देखा
धृतराष्ट्र की अंधी जैसी आंखो ने भी देखा,
दोनों ही जगह पर
मेरा ही दमन करने की साजिशें रची गयी,
लेकिन अपने को बड़े-बड़े गुरु-धर्मगुरु
और महान कहने वालों की जुबान ना खुली,
क्योंकि सबको सत्ता के साथ सुख भोगना था,
मुझे किस-किस कृष्ण के आगे हाथ फैलाना पड़ा,
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
मध्यकाल में मुझे मीरा के रूप में सताया है,
यहां भी मैं रजिया के रूप में शासिका बनी तो
मुल्ला-मौलवियों ने स्त्री होने की वजह से,
मैं शासिका नहीं बन सकती ऐसा फरमान फ़रमाया है,
मैं नहीं हटी तो पुरुष मानसिकता ने
सत्ता की शक्ति के लिये,
मुझे मार के हटाया है।
अपने को खुदा के बन्दे कहने वालों ने
तीन तलाक कहकर ठुकराया है,
बुर्के में ढका है मुझे,
मेरे स्वतंत्र विचारों को दफनाया है,
सबने मिलकर मुझे
जिंदा ही सती के रूप में जलाया है,
अपनी इज्जत के लिये
मैंने आग में अपना जौहर कराया है।
आधुनिक युग वालों ने तो
और भी बर्बर जुल्म ढायें हैं,
मुझे लूटने के लिये
पशुता से भी क्रूर तरीके अपनायें है,
हर युग में मुझे ही दैहिक अग्निपरीक्षा से क्यों गुजरना पड़ा,
कैसे मैंने खुद का वजूद बचाया
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
कुछ समय पहले ही
जब मैं जन्म लेती थी,
एक मां-बाप के घर हम नौ-नौ बहनें पैदा हो जाती,
लेकिन मां-बाप को कुल चलाने के लिये बेटे की चाहत होती,
कैसे ऐसे माहौल में हम बहनें बिना प्यार के जी पाती,
कितना रोता मेरा हीवड़ा
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
कुछ समय पहले ही
कुछ मां-बाप मुझे जन्मते ही
जिंदा ही कलश में रखकर किसी नदी में बहा देते,
या फिर गड्डा खोदकर जिंदा ही दबा देते,
कितना मेरा जी ता तड़पाया,
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
कितना मेरा जी था तड़पाया,
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
आज भी मुझे
जब लोगों को पता चले कि गर्भ में बेटी है,
सब मिलकर मार देते हैं,
जन्मते ही किसी नाले में
या फिर कहीं झाड़ियों में फेंक देते हैं,
धरती पर आने से पहले कसूर क्या था मेरा,
यही ना कि मैं लड़की थी,
नहीं था पेट में लड़का,
क्या मैंने सहा
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
कभी लगता है
अब स्थिति कुछ ठीक है,
लेकिन जब जाती हूं स्कूल-कॉलेजों में,
हर गली,हर कोने पर कई आंखों ने मेरे शरीर को ताड़ा,
कई नामर्दों की पुरुष मानसिकता ने अपनी गन्दी नजरों से
मेरी शारीरिक बनावट का एक्सरे खींच डाला,
मुझे लगा कैसा
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
मेरे पहनावे पर सवाल खड़े किये जाते हैं,
पर अपनी सोच के कभी निरीक्षण नहीं किये जाते हैं,
कपड़ों पर सवाल उठाने वाले
मन्दिर-मस्जिदों में दो-दो साल की मासूमों से
रेप के जुर्म में पकड़े जाते हैं,
अरे आदमी तेरी सोच गन्दी है
और ढीला है तेरे मनरूपी पायजामे का नाड़ा,
मैं एक मासूम बच्ची थी,
क्या मेरे पर बीती
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
सब कहते हैं तुम लड़की हो,
कमजोर हो,
अपने साथ में बदमाशों के लिये मिर्च स्प्रे रखो,
आठ-दस वर्ष की मासूम यह सब क्या जाने कि
कौन बदमाश है,
कौन है शैतान,
अब तो बाप भी गोद में लेता है
तो लगता है
आ गया फिर कोई हैवान,
आदमी तेरी आत्मा और दिमाग में है सब सड़ा-सड़ा,
बचपन मेरा कैसे खोया,
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
मेरे पैदा होते ही
तैयारी शुरू कर देते हैं मेरी शादी की,
बालविवाह करके मेरा,
घड़ी तय कर देते हैं मेरी बर्बादी की,
मजबूरी में बचपन में दुल्हन बनना पड़ा,
मेरे बालमन पर क्या असर पड़ा
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
मेरी शादी घर के बड़े ही तय करते हैं,
ना मुझसे मेरे मन की पूछते हैं
यदि शक्ल मेरी अच्छी नहीं तो वरमाला में देखते ही,
मेरे जीवनसाथी बनने वाले ने मुंह मुझसे मोड़ा,
यदि उसने दबाव में शादी कर भी ली तो
प्रेम वाला नाता हमेशा के लिये तोड़ा,
सब मेरे फिजिकली शरीर और सूरत देखते हैं,
ना किसी ने मेरे गुण देखे,
ना कोई मेरी सीरत देखते हैं,
अरे ओ जीवनसाथी बनने वाले मर्द,
मैंने भी तो बिना सोचे समझे तेरे संग अपना रिश्ता जोड़ा,
अपना आंगन,अपने परिचितों को छोड़कर
तुम जैसे अजनबी का हाथ पकड़ा,
ओ मर्द?तुमने ना मेरी रूह देखी,
क्या बीता मुझ पर
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
नारी शक्ति की पूजा करते हो,
लेकिन घर में 'कन्या ना आ जाये'
ऐसे मन्त्र पढ़कर कन्या से
पीछा छुड़ाने की जुगत लगाते हो,
मनुष्य होकर क्यों खुद को पशु बनाते हो,
पशु भी जेंडर भेदभाव तो नहीं करते हैं,
तुम मनुष्य होने का ढोंग करके
प्रकृति को छलाने की कोशिश करते हो,
मां-पत्नी तो चाहते हो,
लेकिन बेटी को गर्भ में ही मारते हो,
अरे आदमी!मर गया है तेरी इंसानियत का कीड़ा,
आगे मुझे बढ़ना है,
रुकना अब मुझे जंचता नहीं,
मुझे बढने नहीं देते हो आगे
तभी तुमने राह में मेरी डाला है रोड़ा,
इससे कितनी हुई मुझे पीड़ा,
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
अरे नर मेरे जिन दो अंगों के पीछे तु है पड़ा,
उनमें से एक से मैंने तुझे जन्म दिया,
दूसरे से मैंने तुम्हें दूध पिलाकर यह जीवन दिया,
फिर भी तु मेरी आत्मा की परवाह किये बगैर,
मुझे भोग्या बनाने के पीछे है पड़ा,
तु यह सब बहुत गलत करता है,
क्यों तुमने अपने इस अंतर्मन को नहीं झिंझोड़ा,
मेरी आत्मा कैसे रोती है,
ये तो जाणे मेरा जीवड़ा।
आओ मुझे सम्मान दो,
सच्ची नियत से साथ दो,
अपनी गन्दी नजरों को उतार दो,
इंसानियत वाला दिल बना लो,
मेरे मां-बाबा आप दहेज के पैसों से
मुझे पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ा होने दो,
परिवार में जेंडर भेदभाव मिटा दो,
मेरी एक बहन कल्पना चावला की तरह
मेरे सपनों के पंखों को एक नई उड़ान दो।
अब मैं नारी अपने लक्ष्य खुद बनाऊंगी,
टक्कर तो तब भी दी थी शास्त्रार्थों में
याज्ञवल्क्य जैसे ज्ञानियों को गार्गी के रूप में,
जब हारने लगे मेरे आगे तो
धमकियां दी की मैं चुप हो जाऊं,
नहीं तो मेरा सिर तोड़ दिया जायेगा,
अब सच के लिये चुप नहीं रहूंगी,
सच्चाई और मानवता की आवाज बनूंगी,
मेरे ऊपर लगाये गए प्रतिबन्धों के ऊपर से रास्ता नया बनाऊंगी,
नारी हूं,नर-नारी को साथ लेकर चलूंगी,
बार-बार गिरकर,उठकर फिर चलूंगी।
अब यह नारी आगे बढेगी,
खुद को मनुष्य मानकर परतन्त्रता की जंजीरें तोड़ेगी,
अरे आदमी देख लेना इतनी ऊचाइयों पर पहुंच जाऊंगी,
मेरे कद के बराबर आने के लिये
आरक्षण जैसी व्यवस्था याद आएगी।
मेरी राह में लगा देना पहरा कितना भी कड़ा,
आदमी को मनुष्य के स्तर पर पहुंचाकर खुश होगा मेरा हीवड़ा,
औरत हूं ना
प्रकृति का दु:ख कैसे ना जाणे मेरा जीवड़ा।।
नारी की पीड़ा और उनके मन को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया है।धन्यवाद भाईजी।
ये अधिकांश भारतीय महिलाओं की व्यथा है!!
लेकिन शहर की पढ़ी लिखी महिलाओं और लड़कियों पर भ्रूण हत्या और बलात्कार को छोड़कर अन्य बहुत सी बातें लागू नही होती!!
वे स्वतंत्र हैं, आजादख़याल हैं!!!
पढ़ने के लिये धन्यवाद संजय जी। भ्रूण हत्या और बलात्कार कम जघन्य अपराध नहीं हैं।
धन्यवाद रामप्रसाद भाई
Bahut badiya mere bhai
धन्यवाद रणवीर भैया।
bahut hi shaandar abhivyakti bhai shaandaar par kya hum sirf kavitao or fb post tak hi simit nhi rh gye or hamne apni zimmedaari ko yhi tak simit nhi kar liya h yeh bhi jane mera jivda
धन्यवाद निशान्त।हमें बिल्कुल सोशल मीडिया तक ही सीमित नहीं होना चाहिए।लेकिन वैचारिक चिन्तन होते रहना चाहिए।
क्या खूब लिखा है भाई
धन्यवाद
क्या खूब लिखा है भाई
बहुत ही शानदार लिखा है भाई आपने
धन्यवाद
As always Very detailed and insightful.
धन्यवाद अखिलेश भैया
धन्यवाद अखिलेश भैया।
Adhbhut vichar nari saman k liye.
धन्यवाद हेमंत भाई
नारी के मन की आंतरिक पीड़ा को बहुत ही सुंदर शब्दों से लिखे है
नारी के दर्द को बहुत ही अच्छे शब्दों में लिखे है , नारी के मन की बातो को सही से संजोए है
धन्यवाद
Bahut shandar
धन्यवाद विनोद भाई
अच्छी कविता है, शुभकामनाएं
धन्यवाद मुकेश जी।
पैर की उंगलियों में फंसे बिछुए से लेकर माथे के साथ बंधे बोरले तक
गुलामी के प्रतीकों में खुशी से जकडी हुई लंहगे के डिजाइनों मेंउलझी हुई, ब्यूटी पार्लर में जाकर कैलेंडर में छपी हुई हीरोइन जैसी दिखने को तत्पर इस कविता की पीड़ा को क्या समझेगी
शायर इन पर गजल लिखते हैं कब समझेगी ये सरला चंद्र मुखी
धन्यवाद।
Women were lured into all the jewellery and beautiful clothes to be kept as enchanted slaves.
धन्यवाद सुखविंदर जी
वक़्त बदल रहा है , लोग समझ रहे हैं , मां बाप भाई सब को सतर्क रह के पालन पोषण करना होगा बालिका का की वो सहज रहे इस समाज में , वो मन का चाहा कर पाए । हम सब को मिल कर ही पंख देने होंगे अपनी बच्चियों को
धन्यवाद जी
नारी को जानना, समझना और फिर ठीक ठीक उसी प्रकार लिख देना बहुत कठिन कार्य है। हम सिर्फ प्रयास कर सकते हैं। आपने श्रेष्ठ प्रयास किया है। साधुवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद अमिताभ जगदीश जी
धन्यवाद अमिताभ जगदीश जी।
मन को छूने वाली कविता है
Bahut achhe vichar
Mind blowing
In a very beautiful words, through the poem you have expressed the illusion spread towards women in the society and the internal pain of the mind of the woman by saying it well.
Today, there is a strong need to change the attitude towards women in the present times.
You have written very well
It is a touching poem.
Congratulations.
शुक्रिया विकास भाई।
मार्मिक अभिव्यक्ति
अजय जी धन्यवाद आपका।
बहुत बहुत धन्यवाद अजय जी।
इस कविता के बारे मे जितना कहे उतना कम है
धन्यवाद राज
वर्तमान परिदृश्य का एक सुंदर चित्रण।
नारी की महत्वता को आपने पहचाना।
गौरीशंकर भाई को बहुत बहुत धन्यवाद।
शानदार
धन्यवाद दादा।
Nice thinking bhai
धन्यवाद हन्नि भाई
nari shakti par ache vichar bhai ji
धन्यवाद
Bahut hi ache vichar hai bhai aapke
धन्यवाद सुनील
बहुत ही शानदार भाई। आपकी लेखनी कमाल है।यूँही लिखते रहे
धन्यवाद सचिन भैया आपका।
बहुत ही सुंदर शब्दों में कविता के माध्यम से समाज में महिलाओं के प्रति फैले हुए कुकृत्य का एवं नारी की आंतरिक मन की पीड़ा को अच्छे से शब्दबद्ध किया है।
हर बार की तरह बहुत खूब भाई ,,,एकदम ज़मीनी लिखते हो आप । बाकी वो आरक्षण वाली लाइन पे कभी फ़ोन करके बात करेंगे। एक बार फिर बहुत ख़ूब।
धन्यवाद आनन्द भाई
ऐतिहासिक और पौराणिक घटनाओं से लेकर वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों से उद्दरणो को लेकर उनका बहुत बढ़िया उपयोग किया आपने नारी के मन की फांस को व्यक्त करने के लिए।
एक संवेदी मन ही ऐसी वेदना और संवेदना व्यक्त कर सकता है।
स्त्रियों के प्रति कालजयी अन्याय को बखूबी आवाज देती आपकी रचना में एक सहज प्रवाह है जो पढ़ने वाले को बांधे रखता है अंत तक और स्तब्ध छोड़ देता है।
बहुत खूब मेरे भाई।
बहुत बहुत शुक्रिया दादा।आप का आशीर्वाद बना रहे।
Wah Bhai kya kavita h
शुक्रिया बबलू
Nice thinking
shandar vichar
भाई बहुत ही सुंदर।माला में पिरोकर पूरी बात समझा दी।
सुंदर विचार, ऐसे ही लिखते रहें… जीवन में गहरे उतरते रहें..
संजीव जी दादा आपका बहुत बहुत धन्यवाद
सुंदर प्रयास…
अंतहीन प्रश्न ! विचारणीय विडम्बना !
काश हमारे पास जीवड़े के ज्वलंत प्रश्नों का कोई भी उत्तर होता ! काश हम कभी भी दुसरे दर्जे पर रहने पर मज़बूर इस जीवड़े के लिए कोई ईमानदाराना प्रयास कर पाए होते !
कोई युग हो , कोई काल हो , कोई भी परिस्थिति हो , नारी को दूसरे पायदान पर समेटने के हमारे प्रयास ही कारगर हुए हैं।
कड़वे सवालों की सुन्दर प्रस्तुति के लिए रचनाकार को बधाई !
आमिर मलिक जी आपने समय दिया आपका बहुत बहुत आभार।