यौन शिक्षा :: एक दृष्टिकोण – अनुपमा गर्ग (भाग – 4)

लोग अपने सिबलिंग्स के साथ सेक्स के सपने क्यों देखते हैं।मैं 40 वर्षीय तलाकशुदा महिला हूँ, तलाक के बाद कभी पति तो कभी भाई के साथ सेक्स के सपने दिखते, भाई के साथ जब भी देखती तो सुबह उठकर बेहद शर्मिंदगी सी होती है। जबकि भाई के साथ मेरे रिश्ते बिल्कुल नॉर्मल, मतलब जैसे सामान्य भाई बहन होते हैं, वैसे ही हैं। जो सपने में दिखता वह होशोहवास में जिंदगी… Continue reading

यौन शिक्षा :: एक दृष्टिकोण – अनुपमा गर्ग (भाग – 3)

यौन कुंठित लोगों की पहचान कैसे की जा सकती है? एक लाइन में उत्तर देना हो तो कहूँगी, लगभग हम सभी किसी न किसी हद तक यौन कुंठित हैं। देख लीजिये सभी को, कुछ हद तक खुद को भी शीशे में। पहली बात ये कि किसी के माथे पर नहीं लिखा होता कि वे यौन कुंठित हैं।दूसरी बात कुंठा क्या है? फ़्रस्ट्रेशन या कुंठा का मतलब है, जब कोई इच्छा… Continue reading

यौन शिक्षा :: एक दृष्टिकोण – अनुपमा गर्ग (भाग – 2)

सेक्सुअल रिश्ते में खोखलापन क्यों ? प्रश्न – मैंने और एक लड़के ने आपसी सहमती से शारीरिक संबंध बनाए। कुछ महीनों से हमारा ये रिलेशन, जोकि सिर्फ शारिरिक संतुष्टि के लिए है, सही चल रहा है। हम एक दूसरे के साथ काफी कम्फर्ट महसूस करते हैं। पर मेरी दुविधा ये है कि मैं जब भी उस से मिलकर आती हुं, बहुत खालीपन महसूस करती हुं। मैंने जीवन के उस मोड़ पर… Continue reading

यौन शिक्षा :: एक दृष्टिकोण – अनुपमा गर्ग (भाग – 1)

भूमिका – आज एक कॉलेज सीनियर ने फ़ोन किया। 18 – 19 साल का बच्चा है उनका। जब मैं मास्टर्स के एक्साम्स देने गयी थी, तब ये भी बच्चे को घर छोड़ कर आती थीं प्राइवेट एक्साम्स देने। हम दोनों अलग-अलग सब्जेक्ट्स में थे, और ये शादी के कई सालों बाद दोबारा पढाई शुरू कर रही थीं। पति के साथ रिलेशनशिप बिलकुल उतनी ही टॉक्सिक और अब्यूसिव है, जितनी आम… Continue reading

प्रेमी देर रात घर लौटते हैं

Rajneesh SachanFounder, MadhyaMargEditor, Ground Report India (Hindi) वे ऐसे नहीं चलते जैसे हत्या के लिए नौकरी पर रखे गए सैनिक चलते हैं वे ऐसे नहीं चलते जैसे पहलू खान के पीछे चलते गौ-रक्षक वे ऐसे नहीं चलते जैसे अँधेरा होने पर चलती हैं लड़कियाँ वे ऐसे नहीं चलते जैसे चलता है दक्खिन टोले का कोई इंसान उत्तर दिशा की तरफ़ वे ऐसे नहीं चलते जैसे हत्यारे चलते हैं भभूत लपेटे नंग-धड़ंग वे ऐसे नहीं चलते जैसे… Continue reading

क्वीन विक्टोरिया को भी सर्दी लगती है

राजेश्वर वशिष्ठ सुनेत्रा,आज सुबह क्वीन विक्टोरिया ने कहा-आसमान में कोई खिड़की खुली छूट गई होगीबहुत ठंड रही रात भरइतने कपड़े पहन कर भी मुझेठिठुरना पड़ा कोलकाता मेंइस अपने ही इतने अद्भुत घर में!सूरज ने धीरे से दस्तक दीहरे पत्तों को चूमा औरविक्टोरिया की गोद में पसर गयारानी साहिबा नेनज़र उठा कर नहीं देखा उसेवह नाराज़ थीं।1901 की जनवरी ही थीजब मैंने विदा ली इस दुनिया सेठंड से ठिठुर रहा था… Continue reading

मानवाधिकार का वर्तमान संदर्भ और पुलिस-प्रशासन की भूमिका —— Ashok Kumar Verma

Ashok Kumar Verma IPS (Rtd)WriterMA (Philosophy), Allahabad University पुलिस द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के प्रकरण आजकल प्रायः रोज़ ही देखने, सुनने और पढ़ने को मिलते रहते हैं। जनसामान्य के साथ पुलिस के दुर्व्यवहार, मारपीट, उत्पीड़न, यातना  आदि के प्रकरण समाचार-पत्रों की अक्सर सुर्खियाँ बनते रहते हैं। मारपीट और यातना के कुछ प्रकरणों में पीड़ित की मृत्यु तक हो जाती है। मृत्युवाले प्रकरणों में कुछ दिन अख़बार और मीडिया में चर्चा होता… Continue reading

जेनयू जैसे संस्थान कैसे सामंती मानसिकता, अवतारवाद के आवरण में नेतृत्व के नाम पर समाज को पीछे धकेलते है।

Nishant Rana​Director and Sub-Editor, ​Ground Report India (Hindi) जेएनयू विरोध के नाम पर मुख्यत: हमें जो सुनाई दिखाई पड़ता है वह यह है कि जेएनयू में लड़के लड़कियां सेक्स कर लेते है, कंडोम का प्रयोग किया जाता है, किसी खास राजनैतिक विचारधारा को ज्यादा सपोर्ट करते है, देश विरोधी गतिविधियां होती है आदि आदि बातों को आगे बढाते हुए करते है।ऐसा करने वाले अधिकतर लोग जो हमें दिखाई पड़ते है वह… Continue reading

नया राष्ट्रगान

Rajneesh SachanFounder, MadhyaMargEditor, Ground Report India (Hindi) अपने अतीत की महानता के मिथ्या गर्व में डूबा एक देश थाकिसी दूसरी आकाशगंगा मेंकिसी और ग्रह परकिसी और प्रजाति के लोगों का उनकी भाषा से हिंदी में भावानुवाद किया जाए तो कुछ यूँ होगा कि-वे खुद को विश्व गुरु मानते थे ख़ैरउनकी भाषा में उनका भी हमारी तरह एक राष्ट्रगान थाजैसे हमारा अपना ‘जन गण मन’उनका संविधान थासंसद थी समूचे लोकतंत्र जैसी कोई व्यवस्था थी तो… Continue reading

मानसिक बलात्कार

Nishant Rana​Director and Sub-Editor, ​Ground Report India (Hindi) बच्चें को पैदा होने के दिन से भारतीय समाज में बच्चों के साथ उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करना शुरू कर देता है जाता है।जब बच्चे के किसी कार्य से माता-पिता शिक्षक आदि को यदि जरा भी तकलीफ या जरा भी जिम्मेदारी बढ़ी महसूस होती है केवल तब ही बच्चे से पूर्ण व्यक्ति होने के अंदाज में डांटा फटकारा जाता है। अन्यथा हर… Continue reading