स्त्री का शरीर व शरीर के अंग भड़काऊ नहीं होते, स्तन व योनि जैसे यौनांग भी नहीं

सामाजिक यायावर शुचिता के नाम पर, संस्कार के नाम पर, संस्कृति के नाम पर, शालीनता के नाम पर, सौंदर्य के नाम पर स्त्रियों के पहनावे आदि पर सवाल खड़े करना बहुत अधिक आम बात है। यहां तक कि बलात्कार, छेड़खानी व बदतमीजी आदि का ठीकरा भी स्त्री के पहनावे पर ही फोड़ दिया जाता है। बकवास, कुतर्क, मानसिक विकृति, वैचारिक विकृति व बेहूदगी के आवेश/आवेग में कहा कुछ भी जाए… Continue reading

दिल्ली जिंदा लाशों का मरता हुआ जहरीला शहर है

सामाजिक यायावर लगभग 11 वर्ष पूर्व सन् 2005 की बात है। मैं दिल्ली के बसंतकुंज इलाके में एक वैज्ञानिक मित्र के यहां अतिथि था। पास के बाजार में गया हुआ था। वहीं एक व्यापारी के यहां अचानक ही चर्चा शुरू हो गई, चर्चा को मोड़कर मैं पानी पर ले आया। मेरे अतिरिक्त चार-पांच लोग थे, सभी अमीर व पढ़े लिखे, करोड़ों का कारोबार करने वाले लोग।   इन सबका कहना… Continue reading

वर्तमान भारत में जाति का अंत करना ही असली समाजवाद

सामाजिक यायावर मेरे पिता के एक ब्राह्मण मित्र ने चमार जाति की लड़की से शादी की। पति पत्नी दोनो लड़ते झगड़ते व प्रेम करते हुए संतानों को पालते पोषते एक दूसरे के साथ आर्थिक विपन्नता के बावजूद जीवन जीते आ रहे हैं। मुझे कभी महसूस ही नहीं हुआ कि उनमें से एक ब्राह्मण व एक चमार है, जबकि मैं लगभग एक वर्ष तक उन्हीं की गाय का दूध उनके घर से… Continue reading

देव भूमि उत्तराखण्ड में नववर्ष चैत्र नवरात्र साधना

सर्वदलीय गौरक्षा मंच सर्वदलीय गौरक्षा मंच के राष्ट्रिय अध्यक्ष ठाकुर जयपाल सिंह ”नयाल सनातनी” ने आज प्रेस विज्ञप्ति में बताया की देव भूमि उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिल्ले में पहली बार भव्य राम लीला, कृष्ण लीला का मंचन वृन्दावन के रासलीला मण्डली द्वारा 8 अप्रेल चैत्र नवरात्र प्रतिपदा से 16 अप्रेल 2016 महा दश्मी तक होगा। जिसमे ब्रह्मचारी संत श्री ज्ञानानन्द जी महाराज व्यास पीठ पर विराजमान होकर भगवती माता एवं… Continue reading

आशय कि मैं भी लीक पर पाया गया

पढ़ते पढ़ते ही मैंने पाया कि मेरे प्रिय कई लेखक वगैरह अपने समकालीन दूसरे लेखकों-समीक्षकों-इतर साहित्यिकों को लेकर एक पूर्वग्रह-आक्रामक भाव में भी रहते हैं. कई बार वे मुखर उन्हें कोसते पीटते भी नजर आते हैं. मैंने पाया कि यह लक्षण मुझमें भी है. आशय कि मैं भी लीक पर पाया गया. 1. समीक्षाओं आलोचनाओं से नहीं न ही अफवाहों से उस झूठ से भी नहीं जो तुम्हारे चेहरे को… Continue reading

क्या सच में ही भारतीय समाज में कर्म को महान मान कर जिया जाता है ….

सामाजिक यायावर जब मैं बालक था तब मुझे रटाया गया कि कर्म ही पूजा है, कर्म ही प्रधान है, कर्म ही ईश्वर है। खूब किस्से कहानियां सुनाए गए, नैतिक शिक्षा में रटाया गया। जब स्वतंत्र चिंतन शुरू किया तो पाया कि भारतीय सामाजिक ढांचे में कर्म का तो कोई महत्व ही नही है, उल्टा कर्म तिरस्कारित है। सबसे महत्वपूर्ण तो जाति है। जो जाति जितना अधिक कर्मशील है वह उतना… Continue reading

बच्चे को स्वावलंबिता पैदा होने के दिन से सिखाई जाती है

              मैं सोफे पर पसरा पड़ा हुआ था, कहीं जाने का मन नहीं था, कुछ देर आराम करने का मन था। जोनाथन जो मेरी साली साहिबा के पुत्र हैं मेरे पास मेरा एक चप्पल लेकर आए फिर दूसरा लेकर आए। फिर मेरी उंगली पकड़ते हैं और बच्चों के खेलने के लिए बने पार्क में चलने के लिए खींचते हैं। एक डेढ़ वर्ष का शिशु… Continue reading

जाति-व्यवस्था और राजनीति

“मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” साभार- सामाजिक यायावर की किताब (पृष्ठ संख्या 260-261) www.books.groundreportindia.org हमें एक बात समझने का प्रयास करना होगा कि भारत में लोकतंत्र ठीक से स्थापित हो पाता, इसके पहले ही लोकतंत्र को भारत के लोगों ने ही उपेक्षित करना प्रारंभ कर दिया। शोषक जातियों ने राजतंत्र व कबीलातंत्र खत्म होते ही आजादी के बाद भरपेट मलाई खाने में खुद को व्यस्त किया और भ्रष्टाचार की… Continue reading

जाति-व्यवस्था ने शोषक व शोषित दोनों ही वर्गों की जातियों को जड़ता व कुंठा के विद्रूप स्तर तक पहुंचाया है

सामाजिक यायावर सैकड़ों सालों तक शोषक जातियों ने अपना अधिकांश जीवन/मानसिक/सामाजिक ऊर्जा समाज के बहुसंख्य को अघोषित दास बनाए रखने में लगाया।  इससे पूरा समाज जड़ हो गया। शोषक जातियाँ भी और शोषित जातियाँ भीं। यदि मानवीयता व सामाजिकता के व्यापक संदर्भों में सूक्ष्मता से देखा जाए तो जाति-व्यवस्था ने शोषक व शोषित दोनों ही वर्गों की जातियों को जड़ता व कुंठा के विद्रूप स्तर तक पहुंचाया है। किंतु शोषक… Continue reading

रोहित वेमुला को मेरी श्रद्धांजलि – आखिर कितनी मौतों के बाद हम सामाजिक संवेदनशील व ईमानदार होगें

सामाजिक यायावर तब तक हम जाति के घिनौनेपन से नहीं लड़ सकते हैं और परंपरा में अगली पीढ़ियों के बच्चों की हत्याओं या आत्महत्याओं द्वारा समाज की विभूतियों को खोते रहेंगें। शाब्दिक, तात्कालिक व क्षणिक भावुकता से कुछ देर के लिए अपने बच्चों की हत्याओं व आत्महत्याओं पर आंसू बहा देने भर से कोई समाधान नहीं होने वाला। वास्तव में जाति-व्यवस्था ही हमारे समाज की जड़ता, कुंठा, भ्रष्टाचार, भीड़तंत्र, सामाजिक दासत्व व… Continue reading