Dr Vijayanand
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारतीय संस्कृति एवं साहित्य संस्थान,
केंद्रीय विद्यापीठ मार्ग, प्रतिष्ठानपुर,
प्रयागराज
जब करुणा से बोझिल सूरज,
उन्नत शिखरों पर चढ़ जाता।
निर्दोषों की आंहों, लाशों में,
चंदा भी जब न अड़ पाता।।
भू पर अधर्म की अति होती,
तब राम अवतरण लेते हैं।
सीतायें तब जन्मा करती,
जब पाप घड़ो में भरते हैं।।
जब पर्णकुटियों की सीताएं,
सोने का लालच करती।
तब तब रावण आ जाता है,
सीताएं तभी हरी जाती।।
फिर रावण- राम युद्ध होता,
राम कथा बन जाती है।
पर कौंचवध की करुणा से,
ही कविता बन पाती है।।
रामायण और महाभारत,
साकेत और उर्वशी कथा।
यामा और हल्दीघाटी,
नई कविता की नई छटा।।
करुणा की आंहें आंखों में,
आंखों से अश्रु उमड़ता हो,
जन्मा करती तब ही कविता,
जब शिवा समर में लड़ता हो।।
शब्दों की धार लिए नदियां,
जब सागर में मिल जाती हैं।
तब महाकाव्य बन जाते हैं,
कविताएं रास रचाती हैं।।
कविता ही सीमाओं पर जब,
सैनिक मन में लहराती है।
तब निर्मम आतंकी जन को,
गोली से मार गिराती है।।
कविता की अपनी अकथ कथा,
इधर उधर कविता कविता।
करुणा से क्रोध जन्म लेता,
ढ़लता चंदा, सविता कविता।।
ऐसे जन्मा करती कविता,
वैसे जन्मा करती कविता।
कविता भी बन जाती कविता,
कविता कविता कविता कविता।।
कविता से जोश उमड़ता है,
भर जाता बाहु बाहु में बल।
भारत माता की रक्षा हित,
तन का लोहू करता कल कल।।
मकरंद बना करती कविता,
जय हिंद बना करती निर्भय।
वंदे मातरम, हुआ करती,
कविता! भारत माता की जय।।