Vivek “Samajik Yayavar”
Founder and Vice Chancellor,
Gokul Social University
शराब क्रांति जनांदोलन की बिहार राज्य में व्यापकता
- 20 लाख से अधिक लोगों से पूरे बिहार राज्य के हजारों गावों में विभिन्न माध्यमों से शराब के नशे की लत से नुकसान पर सीधा संवाद व चर्चा किया गया।
- 10 लाख लगभग महिलाओं का पूरे बिहार राज्य के हजारों गावों में सक्रिय सहयोग रहा।
- 35 जिलों के 5000 गांवों में गोकुल सेना आंदोलन लेकर पहुंची।
- 35 जिलों के 5000 गावों में 5000 जनसभाएं गोकुल सेना ने लोगों से सीधा संवाद व जागरूकता के लिए किया गया।
- 9 जिलों में 500 गावों में लगभग 800 किलोमीटर की अलख यात्रा लोगों से संवाद व जागरूकता के लिए किया गया।
- आंदोलन में स्थानीय स्तर पर छोटे-बड़े सामाजिक संस्थाएं व संगठन औपचारिक व अनौपचारिक रूप से समय-समय पर जुड़ते रहे।
प्रस्तावना:
20 नवंबर 2015 को नितीश कुमार जी बिहार के पांचवी बार मुख्यमंत्री बने। 26 नवंबर 2015 को उन्होंने घोषणा की, कि अप्रैल 2016 से बिहार में शराब बंद हो जाएगी। 5 अप्रैल 2016 को नितीश कुमार जी ने पूरे बिहार में आधिकारिक तौर पर पूर्णरूप से शराब बंदी लागू कर दी।
24 नवंबर 2005 से आजतक लगातार नितीश कुमार जी की पार्टी जनतादल (यूनाइटेड) की सरकार बिहार राज्य में रही है, वर्तमान सरकार का कार्यकाल नवंबर 2020 तक है। 20 मई 2014 से 22 फरवरी 2015 के समय, जब जनतादल (यूनाइटेड) के ही जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री रहे, को यदि छोड़ दिया जाए तो 24 नवंबर 2005 से आजतक नितीश कुमार जी लगातार बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं, नवंबर 2020 तक रहने की संभावना भी है।
यह वही नितीश कुमार जी थे, यह वही जनतादल (यूनाइटेड) की सरकार थी, जिन्होंने बिहार में पंचायत स्तर तक शराब के ठेके खुलवाए और शराब से सरकारी आय को कई सौ करोड़ रुपए से कई हजार करोड़ रुपए सालाना पहुंचाया।
लगातार 10 वर्षों तक शराब बिक्री को प्रोत्साहित करने वाले नितीश कुमार जी को नवंबर 2015 में पांचवी बार मुख्यमंत्री बनते ही अचानक ऐसा क्या हुआ कि शराब-बंदी लागू करनी पड़ी।
दरअसल यह न तो अचानक हुआ और न ही यह नितीश कुमार जी की अपनी मौलिक सोच के कारण हुआ। यह निर्णय पूरे बिहार राज्य में निचले स्तर पर व्यापक हो रहे जनांदोलन की देन है। यह आलेख शराब-बंदी की आवश्यकता व शराब क्रांति के जनांदोलन के बारे में चर्चा करता है।
शराब-बंदी की आवश्यकता क्यों:
बहुत लोग जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है या जिनको शराब पीने की लत है। उनको शराब बंदी पसंद नहीं, इसलिए शराब बंदी के विरोध में या माखौल उड़ाने के लिए या आलोचना करने के लिए अपनी शाब्दिक व तार्किक कौशल का प्रयोग करते हुए अपनी बात रखते हैं। दुख इस बात का होता है कि अपनी व्यक्तिगत लत, पसंद या अहंकार के कारण ऐसे लोग अपनी मानसिक ऊर्जा, अपना तार्किक व संवाद कौशल्य का प्रयोग वृहद सामाजिक हित के विरोध में प्रयोग करते हैं।
- बच्चों को भोजन न देकर, बच्चों को कपड़े न देकर, बच्चों को शिक्षा न देकर, रुपयों को शराब में बर्बाद करके जीवन नशे में धुत होकर जीना क्योंकर उचित हो सकता है!
- शराब पीकर नशे में धुत होकर पत्नी व बच्चों के साथ मारपीट करना क्योंकर उचित हो सकता है!
- पत्नी यदि अपने बच्चों को पालने के लिए मजदूरी करे तो उसकी कमाई को झीन झपट कर शराब पीना क्योंकर उचित हो सकता है!
- पिता की शराब की लत के कारण बच्चों को बाल्यवस्था में या किशोर होते ही मजदूरी करने पर बाध्य होना क्योंकर उचित हो सकता है!
बिहार में लाखों लोग तो ऐसे हैं जो परंपरागत रूप से दूसरे के खेतों से चूहे खोदकर निकाल कर खाने को मजबूर हैं, इनकी जाति का नाम ही मुसहर दिया गया। फिर भी कहीं कुछ मजदूरी करके या सरकारी नीतियों इत्यादि किसी जुगाड़ से जो थोड़े बहुत रुपए उनको कहीं से मिलते भी हैं वे उन रुपयों को शराब के नशे में उड़ा देते हैं।
लाखों परिवारों के पास अपनी जमीन नहीं, घर नहीं, लेकिन पिता अपनी हाड़तोड़ मेहनत से कमाई गई मजदूरी को पंचायतों में सहजता से उपलब्ध शराब के ठेकों में जाकर शराब के नशे में धुत होने में उड़ा देता है। पैसे न होने पर या तो उधार लेता है या शोषण करवाता है या चोरी करता है या अपराधों में भागीदार बनता है या पत्नी बच्चों को बेचने तक का काम कर डालता है।
ऐसे वातावरण व परिस्थितियों में बड़े होने वाले बच्चे स्वयं भी नशे का शिकार हो जाते हैं, अपनी माताओं, बहनों, पत्नियों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, अपराध करते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी यही परंपरा में चलता रहता है।
क्या ऐसा वातावरण या ऐसी परिस्थितियां या ऐसी परिणिति किसी समाज के लिए उचित हैं! नहीं बिलकुल नहीं! सरकार प्रत्येक व्यक्ति को शराब न पीने के लिए बाध्य नहीं कर सकती है, लेकिन शराब की उपलब्धता तो नियंत्रित कर सकती है, शराब के ठेकों की स्थापना तो बंद कर सकती है, शराब बेचने को गैरकानूनी बना सकती है! यही करवा पाना ही शराब जनांदोलन का उद्देश्य रहा।
शराब क्रांति:
आज से कुछ वर्ष पूर्व बिहार के औरंगाबाद जिले से “गोकुल सामाजिक विश्वविद्यालय” की सामाजिक आंदोलनकारी ईकाई “गोकुल-सेना” द्वारा शुरू किया गया पंचायतों से शराब के ठेकों को हटवाने का आंदोलन बढ़ते-बढ़ते राज्य स्तर तक पहुंचा, चतुर राजनेता नितीश कुमार जी शराब-बंदी लागू करके श्रेय स्वयं ले गए।
जीत की शुरुआत एक पंचायत में शराब का ठेक बंद करवाने से शुरू होकर पूरे राज्य में शराब बंदी तक पहुंची। लेकिन इसके लिए बहुत अधिक मेहनत, संघर्ष व व्यवहारिक रणनीतियों का अथक निवेश करना पड़ा।
गोकुल सेना ने बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले के एक प्रखंड से आंदोलन शुरू किया जो व्यवहारिक रणनीतियों व लगातार जनसंवाद के कारण व्यापक होता चला गया।
गोकुल सेना ने बिहार के 35 जिलों व झारखंड के 5 जिलों, दोनों राज्यों के कुल 40 जिलों में लाखों लोगों से संवाद किया, हजारों जनसभाएं की, पदयात्राएं की, अलख यात्राएं की, रथयात्राएं निकालीं। लाखों महिलाओं को शराब क्रांति आंदोलन से जोड़ा।
बिहार राज्य के संदर्भ में शराब क्रांति आंदोलन की कुछ जानकारियां, जिनसे आंदोलन की सघनता व स्तर का अनुमान किया जा सकता है-
- बिहार राज्य के 35 जिले।
- बिहार राज्य के 35 जिलों के 5000 गांवों में गोकुल सेना आंदोलन लेकर पहुंची।
- बिहार राज्य के 35 जिलों के 5000 गावों में 5000 सभाएं गोकुल सेना ने लोगों से सीधा संवाद व जागरूकता के लिए किया।
- बिहार राज्य के 9 जिलों में 500 गावों में लगभग 800 किलोमीटर की अलख यात्रा लोगों से संवाद व जागरूकता के लिए किया।
- शराब क्रांति आंदोलन में गोकुल सेना ने 20 लाख से अधिक लोगों से विभिन्न माध्यमों से संवाद व चर्चा किया व शराब के नशे की लत से नुकसान पर अपनी बात रखी।
- इस आंदोलन में बिहार राज्य के हजारों गांवों की लगभग 10 लाख महिलाओं का सहयोग रहा।
- इस आंदोलन में स्थानीय स्तर पर छोटे-बड़े सामाजिक संस्थाएं व संगठन औपचारिक व अनौपचारिक रूप से समय-समय पर जुड़ते रहे।
गोकुल सामाजिक विश्वविद्यालय की आंदोलनकारी ईकाई गोकुल सेना द्वारा इस आंदोलन का नेतृत्व किया गया। पूरे आंदोलन में लगभग एक करोड़ रुपए का कुल खर्च हुआ होगा, एक एक पैसे का भार आम समाज के लोगों ने वहन किया। एक दमड़ी भी देशी विदेशी, सरकारी गैरसरकारी किसी भी प्रकार की फंडिंग संस्था से नहीं लिया गया।
चलते-चलते:
बहुत लोग कहते हैं कि बिहार में शराब बंदी सफल नहीं है। भारत के सरकारी तंत्र व तंत्र में बैठे अधिकतर लोगों का व्यवहारिक चरित्र इतना भ्रष्ट, सामंती अहंकार, असंवेदनशील व अकल्याणकारी है कि किसी भी जनांदोलन का माखौल उड़ाना, हतोत्साहित करना, नीतियों को लागू करने में तिरस्कार इत्यादि करना सामान्य मानसिकता है।
भले ही शराब-बंदी नितीश कुमार जी की अपनी मौलिक सोच नहीं थी, उन्होंने चतुर राजनेता होने के कारण एक सामाजिक मुद्दे पर निर्णय लिया। लेकिन कम से कम उन्होंने एक बहुत अच्छा निर्णय तो लिया, निर्णय ठीक से लागू हो पाए इसलिए कठोर नियम तो बनाए। एक मुख्यमंत्री के तौर पर वे जो कर सकते थे उन्होंने किया। सरकारी ढांचे, व्यापारी वर्ग, शराब पियक्कड़ वर्ग इत्यादि सभी खांचों में प्रत्येक पर नियंत्रण कर पाना किसी भी व्यक्ति की क्षमता नहीं हो सकती है।
हो सकता हो कि चोरी से शराब की उपलब्धता हो। लेकिन उपलब्धता उतनी सहज नहीं होगी जितनी हर पंचायत, कस्बे, बाजार व शहर में जगह-जगह शराब की दुकानें होने से होती है। शराब बंदी से शराब की सहज उपलब्धता में बहुत अधिक नियंत्रण होता है।
इतनी व्यवहारिक ऋणात्मकताओं के बावजूद बिहार में शराब बंदी से निःसंदेह शोषित व गरीब वर्ग के लाखों परिवारों को बहुत लाभ मिल रहा है। कम से कम आने वाली पीढ़ी में शराब के नशे में धुत होने की लत तो बहुत ही अधिक नियंत्रित हो रही है।
इसलिए बेहतर कि सामाजिकता के लिए, अगली पीढ़ी के लिए, शोषितों व गरीबों के लिए महिलाओं के लिए, बच्चों के लिए शराब बंदी के साथ सक्रिय रूप में खड़ा हुआ जाए।
अखबारों में खबरें
गोकुल सामाजिक विश्वविद्यालय के संजय सज्जन सिंह का शराब के विरोध में मुख्यमंत्री नितीश कुमार को पत्र