हुकुम सिंह राजपूत
रहती हू---------घर नही!
भागती हू-------डर नही!
उड़ती हू------ --पर नही!
देती हू ------- कर नही!
आदि से हू -----अमर नही!
नारी हू -----------नर नही!
बिन मेरे गुजर बसर नही!
इस पहेली का अर्थ है
बदली
आइये बदली पर प्रकाश डाले:
नित्य कहॉ से आती बदली,
नित्य कहॉ जाती है बदली!
अपना रङ्ग जमाती बदली,
सबको नाच नचाती है बदली!
झटपट रङ्ग बदल देती बदली,
सफेद से लाल काली हो जाती है बदली!
तुरन्त आकाश से हट जाती बदली,
कभी आकाश पर छाई रहती है बदली!
जङ्गल देख धीरे धीरे चलती बदली,
रूखी धरती दोड़ खूब लगाती है बदली!
सीधी कभी ना चलती बदली,
गोल गोल घूमती रहती है बदली!
पर्वत पर छा जाती बदली,
अपना रङ्ग दिखाती है बदली!
चन्दा सूरज छुपाती बदली,
कभी खूद छुप जाती है बदली!
हवा को पलट देती बदली,
कभी हवा के सङ्ग चल देती है बदली!
ओष को रोक देती बदली,
ओले खूब गिराती है बदली!
प्रात: तूषार गिराती बदली,
जल खूब बरसाती है बदली!
गरज गरज कर चलती बदली,
बिजली खूब चमकाती है बदली!
इन्द्रधनुष रच देती बदली,
मयूर को नाच नचाती है बदली!
धारवा छोड़ देती बदली,
मूसलाधार जल बरसाती है बदली!
बेजान झरनो मे जान डालती बदली,
धरती पर स्वर्ग बनाती है बदली!
गरजती तो बॉस उगाती बदली,
चमकती तो आम के फूल जलाती है बदली!
ठण्ड खूब गिराती बदली,
गर्मी भी गिराती है बदली!
सिमट सिमट कर सिमट जाती बदली,
छोटी से बड़ी हो जाती है बदली!
बूदबूद कर जल बरसाती बदली,
फूर फूर से भी काम चला लैती है बदली,
सागर से गुजर जाती बदली,
खारे पानी को मीठा बना देती है बदली!
घट घट कर घट जाती बदली,
आकाश से हट जाती है बदली!
कहॉ से जल लाती बदली,
कोन जाने जल कैसे बरसाती है बदली!
धरती पर हरियाली करती बदली,
हरे रङ्ग को हर लेती है बदली!
सागर की पनिहारी बदली,
गगन की पटराणी है बदली!
पल मे LOC पार करती बदली,
बिन पासपोर्ट देश विदेश घूमती है बदली!
बिना जङ्गल पानी नही बरसाती है बदली,
बिन पेड़ धरती से प्यार नही करती है बदली!
कोइ कहे सागर से पानी लाती बदली,
कोइ कहे पर्वत पर सो जाती है बदली!
कहे राजपूत बदलीबदली फिरती बदली,
क्योआपने जङ्गल काटे ऐसा कहती है बदली!
कटे जङ्गल देख तड़प तड़प कर भागती बदली,
कही सूखा,कही ज्यादाजल बरसातीहै बदली!
ज्यादा कम के चक्कर मे खुद फट जाती बदली,
सारा का सारा जल एक स्थान पर डाल देतीहै बदली!
पेड लगाओ सीचो संभालो ऐसा कहती बदली,
कभी धार चलाना नही समझाती है बदली!
नाच नाच कर पैडृ मुझे नचाता बतलाती बदली ,
होगा जङ्गल होगा मङ्गल पुकारती है बदली!
मेडक को आजाद करती बदली,
पपीहे को पानी पिलाती है बदली!जब जब बरसन लगती बदली,
दिन रात बरसती रहती है बदली!
बडै बडे बॉध तोड़ देती बदली,
बाढ़ नदियो मे लाती है बदली!
सब कुछ बहा देती बदली,
जब जब घनघोर बरसती है!
अलग अलग दल मे रहती है बदली,
बरसने पर एक हो जाती है बदली!
जग मै सबसे बडी दाता बदली,
जग की जीवन जननी है बदली!
घणा जल है सागर मै बताती बदली,
बिन जङ्गल जल कैसे बरसायै सोचती है बदली!
सागर से मिलकर आई कालीकाली बदली,
अथाह जल भर कर लाई , नही बरसाती है बदली
अल्प विराम (क्षमा करना)
बदली हमे क्या कहती है?
नाच नाच कर पेड बादल को नचाने वाला है,
तवासी जलती धरती पर पेड ही जल बरसाने वाला है!
सागर वही है, पानी वही है, बादल वही है, हवा वही है, फिर सूखा क्यो पडृ जाता है ?
बस जङ्गल नही है?
बादल जङ्गल की रानी,
सागर से लाती है पानी!
बिन जङ्गल कैसे बरसाये पानी!!
सूखा ऐसे पड जाता है?
कारी बदरी घिरघिर आई,
अथाह जल भर कर लाई!
बिन जङ्गल होगयी पराई!!
सूखा---------------*
हमने जङ्गल काटने की ठानी,
सो बादल नही बरसाती है पानी!
बादल करती है मनमानी!!
सूखा-------------*
हमने हाथो से हर लिया मङ्गल,
काट दिया देखो सब जङ्गल!
अब घर घर होता देखो दङ्गल!!
सूखा बार बार पड जाता है
सूखा----'---------
बिन जङ्गल बादल भटकाई,
कही सूखा कही बरसाई!
भटकत भटकत बादल फटजाई!
देखो नयी मूसीबत आई
सूखा जबजब पड जाता है---
जङ्गल कटा तो सब कुछ जल गया???
छाछ मिली----'दु:ख जल गया!
दूध मिला-----मुख जल गया!
माचीस मिली---दिया जल गया!
सहेली मिली----पिया जल गया!
चाय मिली------तन जल गया!
नजर मिली----मन जल गया!
पक्षी मिला----विमान जल गया!
कूर्सी मिली----ईमान जल गया!
हवामिली--पसीना अपने आप जल गया!
नोकरी छुटी--'हसीनो का बाप जल गया!
ज्यादा करन्ट मिला---t----b जल गयी!
जेब खाली हुई---b---b'--जव गयी!
धुम्रपान किया---बहुत कूछ जल गया!
और
जङ्गल काटा---तो---'सब कुछ जल गया!
Hukum Singh Rajput
Hukum Singh Rajput, around 85 years, is a farmer, a poet, an inventor and an innovative community scientist. He is a part of a group of farmers who changed the entire face of their local communities.
वाह रे बदली आज तेरा रंग भी देखा,
चलने का नायाब ढंग भी देखा ,
देखा फसलो के लिए तेरी अगुआई को,
थोड़ा तो समझा तू भी वही है यायावर भाई को,
चल आज तो बता क्यों इतना इतराती है
है कही ठुमकती और कहि दौड़ लगती है
कैसे है तू निर्दयी जो सूखा देख न पाती है
देख तू जंगलो को भारत की दुल्हन बन जाती है।
अब इतना इतराना भी तू छोड दे ,
कश कमर और आ कभी आवेग दे,
करते है जो तुझे धूमिल उन्हें मरोड़ दे,
तू तो कर कुछ रहम सरकारों जैसे हम गरीबो को न छोड दे।
तू ही बता हमने क्या बीगाड़ा है तेरा,
कास तू जाती से ब्राह्मण होती ,
फिर गजब का कमाल कर पाती,
अम्बानी को बेरोजगारी का मज़ा चखाती,
अरे अरे सुन अपना दुखड़ा रोने वाला,
काश अपना तू जंगल-पेड़ बचाया होता,
आज सच मे गांधी जैसा तू खोटा न होता,
पढ़लिख सत्ता में आ जंगल अब खुद बसा
अरे याद कर उस नन्ही चिड़िया को ,
जो अपना घोंसला आन्धी में गवाति है ,
तेरे जैसे न कभी वो दुखड़ा रोती है ,
एक एक तिनका फिर ढोती है….एक एक तिनका फिर ढोती है……..
बहुत सुन्दर कविता
कमाल की लेखनी और वह भी इस उम्र मे वास्तव मे बदली का वास्तविक चित्रण आपके द्वारा किया गया बधाई के पात्र है। आपको इस हेतु संस्था की ओर से साधुवाद।
बहुत बड़ीया..
माता जी की कृपा बनी रहे.
Very nyc poem
Very nice poem
Behad acchi kavita …badal aur jungle ki kahani btlati lines bhut acchi.
Great poem.
Darbar is genius. God gifted Talent. I salute him
He still active in doing various activities in the field of irrigation and other social activities
बहुत शानदार कविता बाबासा आपकी।
Darbar aapka javab nahi.
Badli ke bare me itna pehli bar padha.
Bahut hi mast kvita hai sir
Very nice poem
Very nice poem
He is really great man but maintains low profile.
I have personally seen his research work.
Great enthusiasm at this age.
शानदार कविता है बासाब प्रणाम आपका मनोहर सिह गौतम
बदली वो बदली है जो आज तक नही बदली
उसको देख देख बुढ़ा गयी है पीढ़ी अगली
इस बदली ने देखे है जीवन मे कई ज्वार भाटे
कई सुकोमलो के पथ से चुने है कांटे
आज भी इस बदली में भावनाओ का नेह भरा है
प्रेम प्यार और संबंधों के ताने बाने से ही अंतर्मन भरा है. ….
शरद व्यास(बैंक ऑफ इंडिया)
Good one
अति सुंदर
शानदार कविता
अति उत्तम कविता
शानदार कविता…!!
So good
The poem Badli written by senior citizen in the age of 87 year is very heart touching & appeal to comman gentry l appreciate the work &hope ever success.
I like the poem BADLI it is live show of nature.
Bahut badiya
बहुत ही सुन्दर कविता है
Heard taching
Splendid poem
Very nice …. importance of trees in our environment
Very nice poem
Good
Very nice lines towards our nature…