संयुक्त राष्ट्र संघ, चाइना की स्थाई सदस्यता/वीटो-पावर व पं० नेहरू

Vivek Umrao "सामाजिक यायावर"
​कैनबरा, आस्ट्रेलिया

संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को हुई। पांच स्थाई सदस्य थे - अमेरिका, रूस, फ्रांस, इंग्लैंड व रिपब्लिक ऑफ चाइना। अमेरिका व इंग्लैंड इत्यादि ने द्वितीय विश्व युद्ध में चाइना के सक्रिय सहयोग को ध्यान में रखते हुए रिपब्लिक ऑफ चाइना को संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थाई सदस्य बनवाया। चाइना संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थाई सदस्य संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय से है। मतलब यह चाइना संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थाई सदस्य मतलब वीटो वाला सदस्य सन् 1945 से है जब भारत आजाद भी नहीं हुआ था इंग्लैंड का ही हिस्सा हुआ करता था। पं० नेहरू का प्रधानमंत्री बनना तो बहुत दूर की कौड़ी थी उस समय। 

चाइना व संयुक्त राष्ट्र संघ के मुद्दे को समझने के लिए हमें रिपब्लिक ऑफ चाइना व पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के अंतर को समझना पड़ेगा।

1945 में जब संयुक्त राष्ठ्र संघ की स्थापना हुई तब चाइना को रिपब्लिक ऑफ चाइना कहा जाता था और चाइनीज नेशनलिस्ट पार्टी का शासन था। 1949 के लगभग जब माओ ने गृहयुद्ध में चीन में तख्तापलट किया और ताइवान इलाके को छोड़कर पूरे चाइना पर कब्जा कर लिया तब चाइना का नाम पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना कहा गया। ताइवान को रिपब्लिक ऑफ चाइना कहा गया।

चूंकि 1945 में जो देश स्थाई सदस्य बना था वह था रिपब्लिक ऑफ चाइना, न कि पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, इसलिए 1949 के बाद भी संयुक्त राष्ट्र संघ में रिपब्लिक ऑफ चाइना (1949 के बाद वाला ताइवान ही रहा)। 1949 में रूस द्वारा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) को सैन्य व अन्य सहयोग दिए जाने तथा आगे चल कर मंचूरिया को रिपब्लिक ऑफ चाइना को वापस करने की बजाय पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को दिलवाने इत्यादि जैसे कार्यों के लिए रिपब्लिक ऑफ चाइना (आज का ताइवान) संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस को कंडेम्न करना का प्रस्ताव लाया, और यह प्रस्ताव जीता भी। इतना ही नहीं रिपब्लिक ऑफ चाइना (आज का ताइवान) ने 1955 में मंगोलिया मसले पर वीटो का भी प्रयोग किया।

1960 के दशक में अल्बानिया ने संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव लाने शुरू किए कि संयुक्त राष्ट्र संघ से रिपब्लिक ऑफ चाइना को चाइना न माना जाए बल्कि पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को चाइना माना जाए, तथा रिपब्लिक ऑफ चाइना को संयुक्त राष्ट्र संघ से बाहर कर दिया जाए। 1961 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह प्रस्ताव पारित किया कि रिपब्लिक ऑफ चाइना व पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संदर्भ में बदलाव करने के लिए दो तिहाई मतों की जरूरत होगी। सन् 1969 तक संयुक्त राष्ट्र संघ के विएना कन्वेशन्स इत्यादि में भी रिपब्लिक ऑफ चाइना (आज का ताइवान) ही स्थाई व संस्थापक सदस्य के रूप में हस्ताक्षर करता रहा था। यहां यह ध्यान देने की बात है कि पं० नेहरू का देहांत 27 मई 1964 में ही चुका था।

1970 के आसपास दुनिया के विकसित व अन्य देशों ने पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (आज का चाइना) को रिकगनाइज करना शुरू किया। 1971 में भी संयुक्त राष्ट्र संघ में पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को संयुक्त राष्ट्र संघ में रिपब्लिक ऑफ चाइना की जगह स्थाई सदस्य मानने के कई प्रस्ताव खारिज हुए। यहां यह ध्यान देने की बात है कि पं० नेहरू का देहांत 27 मई 1964 को हो चुका था।

1971 वर्ष के अंतिम महीनों में संयुक्त राष्ट्र संघ में रिपब्लिक ऑफ चाइना की जगह पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मुख्य चाइना माना गया। इस तरह पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (आज का चाइना) को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मुख्य चाइना मानते ही वह स्वतः स्थाई सदस्य व वीटो पावर वाला देश बन गया।

जिस नुक्ते के कारण रिपब्लिक ऑफ चाइना (आज का ताइवान) 1945 से 1971 तक संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थाई व वीटो पावर वाला देश बना रहा। उसी नुक्ते के कारण पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मुख्य चाइना के बाद से रिपब्लिक ऑफ चाइना को संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता आज तक नहीं मिल पाई है। क्योंकि जैसे पहले रिपब्लिक ऑफ चाइना को मुख्य चीन माना जाता था तथा पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइन को उसका हिस्सा। उसी तरह 1971 के बाद से पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मुख्य चीन मानने के बाद से रिपब्लिक ऑफ चाइना (आज का ताइवान) को उसका हिस्सा माना जाता है।

चलते-चलते​

यदि रिपब्लिक ऑफ चाइना या पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मुख्य चाइना मानने के नुक्ते को अलग कर दिया जाए तो मुख्य चाइना संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय से ही स्थाई सदस्य व वीटो पावर का देश रहा है। 1945 में भारत आजाद तक नहीं हुआ था। 1971 के बहुत पहले ही पं० नेहरू का देहांत हो गया था।

पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मुख्य चाइना माने जाने का प्रस्ताव अल्बानिया लेकर आया था, इस तरह के प्रस्ताव कई बार लाए गए जो 1971 के अंत तक हमेशा अस्वीकृत होते रहे थे।

इसलिए पं० नेहरू ने चाइना को स्थाई सदस्य बनवाया या वीटो पावर दिलवाया, यह सब फालतू बकवास है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह की बकवास थरूर साहेब अपनी किसी किताब में करें या वर्तमान सरकार के नुमाइंदे।

Vivek Umrao Glendenning "Samajik Yayavar"

He is an Indian citizen & permanent resident of Australia and a scholar, an author, a social-policy critic, a frequent social wayfarer, a social entrepreneur and a journalist;He has been exploring, understanding and implementing the ideas of social-economy, participatory local governance, education, citizen-media, ground-journalism, rural-journalism, freedom of expression, bureaucratic accountability, tribal development, village development, reliefs & rehabilitation, village revival and other.

For Ground Report India editions, Vivek had been organising national or semi-national tours for exploring ground realities covering 5000 to 15000 kilometres in one or two months to establish Ground Report India, a constructive ground journalism platform with social accountability.

He has written a book “मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” on various social issues, development community practices, water, agriculture, his groundworks & efforts and conditioning of thoughts & mind. Reviewers say it is a practical book which answers “What” “Why” “How” practically for the development and social solution in India. 

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