क्या केवल अंबेडकर के चित्रों पर माल्यार्पण उनका सम्मान करना है? –Prof Ram Puniyani

Prof Ram Puniyani

गत 14 अप्रैल को पूरे देश में लगभग सभी राजनैतिक दलों और समूहों ने डॉ भीमराव अंबेडकर की 127वीं जयंती जोरशोर से मनाई। परन्तु इस मौके पर भाजपा का उत्साह तो देखते ही बनता था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंबेडकर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि कांग्रेस, अंबेडकर की विरोधी थी और उसने उन्हें कभी वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान सरकार ने जितना सम्मान अंबेडकर को दिया है, वैसा किसी और सरकार ने नहीं किया।

जहाँ तक अंबेडकर पर कब्जा करने के अभियान का सम्बन्ध है, भाजपा, कई स्तरों पर काम कर रही है। पहला, वह यह प्रचार कर रही है कि कांग्रेस, अंबेडकर के विरुद्ध थी और दूसरा, कि भाजपा उनके नाम पर भीम जैसे एप जारी कर और पार्टी  के नेता दलितों के साथ उनके घरों में भोजन कर उन्हें सम्मान दे रहे हैं। इन दिनों अंबेडकर को सम्मान देने की होड़ मची हुई है और इस मामले में भाजपा ने सभी को पीछे छोड़ दिया है। परन्तु क्या भाजपा की नीतियाँ सचमुच उन सिद्धांतों के अनुरूप हैं, जो अंबेडकर को प्रिय थे? सम्मान का क्या अर्थ है? क्या किसी महान व्यक्ति की प्रशंसा में गीत गाना उसका सम्मान है या उसके सामाजिक व राजनैतिक योगदान को मान्यता देना?

यह कहने में किसी को कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि जहाँ तक विश्वदृष्टि और विचारधारा का प्रश्न है, भाजपा और अंबेडकर में कोई समानता नहीं है। भाजपा दो जुबानों में बोलने में माहिर है। पार्टी के इस दावे में कोई दम नहीं है कि कांग्रेस ने अंबेडकर को सम्मान नहीं दिया। हम सब जानते हैं कि जाति प्रथा की बेड़ियों को काटने के अंबेडकर के संघर्ष से प्रभावित होकर ही महात्मा गांधी ने अपना अछूत प्रथा विरोधी अभियान चलाया था। यह अंबेडकर को सम्मान देने का सही और असली तरीका था। यद्यपि, अंबेडकर कांग्रेस के सदस्य नहीं थे, परंतु फिर भी, उन्हें नेहरू केबिनेट में शामिल किया गया और कानून जैसा महत्वपूर्ण विभाग सौंपा गया। कांग्रेस ने अंबेडकर के सरोकारों को गंभीरता से लिया और उन्हें संविधानसभा की मसविदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। नेहरू और कांग्रेस, दोनों सामाजिक सुधार के हामी थे और नेहरू के कहने पर ही अंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल तैयार किया था, जिसका भाजपा के पितृसंगठन आरएसएस ने जबरदस्त विरोध किया था।

भाजपा का अंबेडकर के प्रति दृष्टिकोण क्या था? सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि भाजपा, 1980 में अस्तित्व में आई। उसके पहले उसका पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ (1952) और उसका पितृसंगठन आरएसएस (1925), राजनीति में सक्रिय था। इन तीनों ही संगठनो की मूल विचारधारा हिन्दू राष्ट्रवाद की थी। सभी नाजुक मोड़ों पर आरएसएस ने विचारधारा के स्तर पर अंबेडकर का विरोध किया। जब भारतीय संविधान का मसविदा संविधानसभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया, उस समय आरएसएस के मुखपत्र ‘आर्गनाईजर‘ (30 नवंबर 1949) ने लिखा, ‘‘भारत के नए संविधान में सबसे बुरी बात यह है कि उसमें कुछ भी भारतीय नहीं है...उसमें भारत की प्राचीन संवैधानिक विधि का एक निशान तक नहीं है। ना ही उसमें प्राचीन भारतीय संस्थाओं, शब्दावली या भाषा के लिए कोई जगह है...उसमें प्राचीन भारत में हुए अनूठे संवैधानिक विकास की तनिक भी चर्चा नहीं है। मनु के नियम, स्पार्टा के लाईकरगस और फारस के सोलन के बहुत पहले लिखे गए थे। आज भी मनु के नियम, जिन्हें मनुस्मृति में प्रतिपादित किया गया है, पूरी दुनिया में प्रशंसा के पात्र हैं और भारत के हिन्दू, स्वतःस्फूर्त ढंग से उनका पालन करते हैं और उनके अनुरूप आचरण करते हैं। परंतु हमारे संवैधानिक पंडितों के लिए इस सबका कोई अर्थ ही नहीं है‘।

इसी तरह जब अंबेडकर ने संसद में हिन्दू कोड बिल प्रस्तुत किया, उसके बाद इन संगठनों ने उन पर अत्यंत कटु हमला बोल दिया। आरएसएस मुखिया एमएस गोलवलकर ने इस बिल की कड़ी आलोचना की। अगस्त 1949 में दिए गए एक भाषण में उन्होंने कहा कि अंबेडकर जिन सुधारों की बात कर रहे हैं ‘‘उनमें कुछ भी भारतीय नहीं है। भारत में विवाह और तलाक आदि से जुड़े मसले, अमरीकी या ब्रिटिश माडल के आधार पर नहीं सुलझाए जा सकते। हिन्दू संस्कृति और विधि के अनुसार, विवाह एक संस्कार है, जिसे मृत्यु भी नहीं बदल सकती। विवाह एक समझौता नहीं है, जिसे किसी भी समय तोड़ा जा सकता है‘‘। उन्होंने आगे कहा, ‘‘यह सही है कि देश के कुछ हिस्सों में हिन्दू समाज की नीची जातियों में तलाक का रिवाज है परंतु इस आचरण को ऐसा आदर्श नहीं माना जा सकता, जिसका पालन सभी को करना चाहिए‘‘ (आर्गनाईजर, सितंबर 6, 1949)।

भाजपा, एनडीए गठबंधन के सहारे सन् 1998 में सत्ता में आई। उस समय एनडीए सरकार की केबिनेट के एक महत्वपूर्ण सदस्य अरूण शौरी ने अंबेडकर की अत्यंत तीखी निंदा की थी।  वर्तमान सरकार के मंत्री यद्यपि अंबेडकर की मूर्तियों और चित्रों पर माला चढ़ाते नहीं थक रहे हैं परंतु एक केन्द्रीय मंत्री अनंतकृष्ण हेगड़े ने खुलेआम यह घोषणा की है कि भाजपा, संविधान को बदलना चाहती है। अंबेडकर, धर्मनिरपेक्षता और स्वतंत्रता के जबरदस्त पक्षधर थे परंतु उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि धर्मनिरपेक्षता स्वाधीन भारत का सबसे बड़ा झूठ है। भाजपा की रणनीति यही है कि वह एक ओर बाबासाहेब की शान में कसीदे काढ़ती रहे तो दूसरी ओर जाति और लैंगिक समानता के उनके सिद्धांतों को कमजोर करती रहे। बाबासाहेब के विचार क्या थे, यह इसी से स्पष्ट है कि उन्होंने उस मनुस्मृति का दहन किया था, जिस पर संघ परिवार घोर श्रद्धा रखता है।

अंबेडकर, जाति के उन्मूलन के हामी थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि जाति, सामाजिक न्याय की राह में एक बड़ा रोड़ा है। इसके विपरीत, आरएसएस,जातियों के बीच समरसता की बात करता है और यही कारण है कि उसने दलितों में काम करने के लिए सामाजिक समरसता मंच गठित किए हैं। जहां तक जाति के उन्मूलन का प्रश्न है, उस पर संघ परिवार मौन धारण किए हुए है।

भाजपा की राजनीति के केन्द्र में हैं भगवान राम। अगर भाजपा सचमुच अंबेडकर का सम्मान करती होती तो क्या वह भगवान राम को अपनी राजनीति का मुख्य प्रतीक बनाती? भाजपा ने भगवान राम के नाम का प्रयोग कर आम हिन्दुओं को गोलबंद करने का हर संभव प्रयास किया। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने अयोध्या में राम की एक विशाल प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की है। आजकल रामनवमी का त्यौहार बहुत उत्साह से मनाया जाने लगा है और इस दौरान हथियारबंद युवा जुलूस निकालते हैं। वे इस बात का विशेष ख्याल रखते हैं कि ये जुलूस मुसलमानों के इलाकों से जरूर गुजरें। अंबेडकर, राम के बारे में क्या सोचते थे? वे अपनी पुस्तक‘रिडल्स ऑफ़ हिन्दुइज्म‘ में राम की आलोचना करते हैं। वे कहते हैं कि राम ने शम्बूक को सिर्फ इसलिए मारा क्योंकि वह शुद्र होते हुए भी तपस्या कर रहा था। इसी तरह, राम ने पेड़ के पीछे छुपकर बाली की हत्या की। अंबेडकर, राम की सबसे कटु आलोचना इसलिए करते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी गर्भवती पत्नी को घर से निकाल दिया और सालों तक उसकी कोई खोजखबर नहीं ली।

अंबेडकर के चित्रों और उनकी मूर्तियों पर माल्यार्पण करके अंबेडकर को सम्मान नहीं दिया जा सकता। उन्हें सम्मान देने के लिए यह जरूरी है कि हम मनुस्मृति की उनकी आलोचना को स्वीकार करें, भारतीय संविधान के मूल्यों को सम्मान दें और समर्पित भाव से धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के लिए काम करें। भाजपा की नीतियों ने दलितों के विरूद्ध पूर्वाग्रह में वृद्धि की है और उनके खिलाफ हिंसा भी बढ़ी है। पिछले चार साल इसके गवाह हैं। गांधी, नेहरू और कांग्रेस, अंबेडकर से उनकी मत विभिन्नता के बावजूद अंबेडकर और उनके सरोकारों का सम्मान करते थे।  

(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

About Author

Prof Ram Puniyani Rtd

was teaching in IIT Mumbai till 2004 and now works for the preservation of democratic-secular values. He is associated with initiatives like the Centre for study of Society and SecularismAll India Secular Forum and has been part of various rights investigations and people’s tribunals which investigated the violation of rights of minorities. He is also the recipient of the Indira Gandhi National Integration Award 2006, the National Communal Harmony Award 2007 and the Mukundan C Menon Human Rights Ward 2015.

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One Response to क्या केवल अंबेडकर के चित्रों पर माल्यार्पण उनका सम्मान करना है? –Prof Ram Puniyani

  1. Vijendra Diwach says:

    शानदार लेख

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