धर्म रक्षा के नाम पर धार्मिक भीरूपन और मानसिक संकीर्णताएं

Apoorva Pratap Singh

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जब मैं पैदा हुई थी उससे कुछ समय पहले बाबरी तोड़ी गयी थी । राम एक नारा बन चुके थे । फिर भी घर के वातवरण के कारण मैं एक लंबे समय तक इस बात गर्व करती रही कि मेरे पास हजारों भगवान हैं फिर पता नहीं कैसे मेरे दिमाग में अपने आप आया कि राम इन सबके बॉस हैं । यकीनन माहौल से आया, 5-7 साल की उम्र से मुझे समझ आ गया कि मेरी पार्टी बीजेपी है ।
यह इसलिए बता रही हूँ कि घर में स्वस्थ माहौल होते हुए भी मस्तिष्क पर धर्माधारित राजनीति का कितना प्रभाव पड़ता है !

अब आगे चलते हैं,
मैंने एक पोस्ट लिखी थी जिसमें मैंने कहा कि राम के लिए पज़ेसिव होने की ज़रूरत नहीं है ! कई आरोप लगे मेरे ऊपर, किसी मूर्ख ने कहा कि “मैं लड़की नहीं होती तो वो मुझको मेरी ही भाषा में समझाते” वामपंथी से ले के शातिर तक कहा गया !

मैंने कहा कि हिन्दू धर्म जैसा कुछ भी नहीं बस यह हमको एक नाम देने की अवधारणा के अंतर्गत किया गया, ज्ञानियों को बहुत आपत्ति हुई ! अब यह पोस्ट इसलिए नहीं लिख रही हूं कि सफाई देनी है इसलिए लिख रही हूँ कि आप कुछ और नहीं सोच पा रहे हैं !

सबसे पहली बात यह कि हमारी कई लोकसंस्कृतियाँ हैं, जिनमें कोई किसी को मानता है तो कोई किसी को । जब आप शादी के समय अपने घरों में दीवार पर कपड़े से ढक के देवता बनाते हैं तो वो आपके पित्रों होते हैं । जो सबके अलग हैं । यही से हमारी शुरुआत होती है कि हमारे सबसे बड़े शुभ काम हमारे पूर्वजों के बिना अधूरे हैं । यही हमारा बेस था । हम मूलत चमत्कार में विश्वास न करने वाले लोग हैं । हम अपने घर तक के अलग अलग देव रखने वाले लोग!

हास्यास्पद है कि इसे हिंदुओं को ईश्वरविहीन करने कि साजिश बोल दिये लोग, मतलब बोलने से पहले सोचते भी है कि नहीं कि बस बोल देते हैं !
आप चमत्कार को ही ईश्वर मानने लगे हैं क्या ? माफ कीजिये आप खुद के पतन को आमन्त्रित
कर रहे हैं ।

हम इसीलिए अलग लोग हैं कि हमारी कोई किताब हमको नहीं सिखाती कि क्या करने से हिन्दू है और क्या कर देंगे तो नहीं रहेंगे । हिन्दू सिर्फ एक टर्मिनोलोजी है जो हमको बांधने को इस्तेमाल हुई । हम श्रुतियों द्वारा परंपरा निभाने वाले लोग हैं । हम नास्तिकता को जगह देने वाले लोग ! हम अपने ही भिन्न दर्शनों में वाद स्थापित कर भेद बताने वाले लोग ! क्या बन गए हैं ? भगवा गमछादधारी भीरु !
जब शिव के कंपटीशन में ब्रह्मा और विष्णु उतारे गए वहीं से बहुत कुछ बदल गया ।

हम राजा को भगवान मानने वाले लोग !
शैव यानि काशी और वैष्णव यानि अवध ! इनके जो भी राजा हुए उन्हें हमने साकार ईश्वर बना लिया ।

बाद में राजारविवर्मा ने अपनी कल्पना शक्ति अनुसार चित्र बनाए ।

हमें स्वतन्त्रता संग्राम में एकजुट करने के लिए तिलक ने गणेश पूजा पंडाल की शुरुआत की जिससे धर्म के आधार पर सही, लोग एक जगह एकजुट हों । तिलक के उस मंतव्य का परिस्थिति अनुसार जो कारण रहे वही आज हिन्दू कट्टरता के कारक की तरह गलत इस्तेमाल हो रहे हैं ।

राम का जिस चालाकी से राजनीतिकरण कर दिया गया और जनता खुश हो गयी वो दुखद है । आप तर्क देंगे कि हमें धर्म बचाने को एकनिष्ठ आस्था की आवश्यकता है और राम उस के ध्व्जवाहक । अगर एक ध्वज नहीं हुआ तो कोई भी मुसलमान-ईसाई बना दिया जाएगा ।

लेकिन धर्म है कहाँ आपका ? आस्था क्या होती है ? मूल क्या था आपका और आज आप क्या कर रहे हैं ? आप सत्यनारायन कथा के प्रचार मात्र को अपनी आस्था बनाए बैठे हैं ! उस कथा में कथा कहाँ है ? आप तो खुद ही अपनी मूल संस्कृति को क्षीण कर रहे हैं उसके बाद बक़ौल आपके आप संस्कृति भी बचाने की कोशिश करते हैं !!

आस्था के नाम पर मुहम्मद साहब गधे पर बैठ चाँद के टुकड़े कर देते हैं और यीशु जिंदा हो उठते हैं । उपनिषदों, अध्यात्म पर विश्वास करने वाले हम, अब ऐसी ही कई आस्थाएं पाले बैठे हैं ।

आपकी आस्था हर बार घायल हो जाती है जब भारत के किसी कोने में आपके मान्यता प्राप्त ईश्वर से उलट किसी को पूजा जाता है । जब बंगलोर में हिन्दी को साइन बोर्ड से हटाने की मांग आपको देश की संप्रभुता पर खतरा लगती है । मेरा प्रश्न इतना है कि पूरे देश की संप्रभुता आपके अनुसार क्यों तय होनी चाहिये ! जवाब बड़ा आसान है आपकी आस्था !!!

आस्था व्यक्तिगत हो तभी तक ठीक है लेकिन जब इस आस्था का इस्तेमाल संस्कृति के विरुद्ध ही हो तब ? यहाँ की लोक संस्कृतियों को आपकी ही आस्था कुचलने लगे इतनी चालाकी से कि खुद हलाल होने वाले को ही समझ न आए तब ?

मेरी आस्था इंसान को कुत्ता मानती हो और उसको पट्टे में बंद कर के रखना चाहे तो ? किसी की आस्था अनुसार सारा हिसाब महरला में अल्लाह करेंगे तो यहाँ अदालत बनाने का औचित्य ही क्या है ?

आप कहते हैं कि कोई भी एक भगवान न हुआ तो कोई भी कलमा पढ़ा के अल्लाह हु अकबर बुलवा के गोलियां चलवा देगा ! अब इसका उत्तर आपका ही प्रिय शब्द आस्था देगा ! क्या ऐसा ही कहीं लिखा हुआ है कि जब कोई एक ईश्वर को माने तभी वो बचेगा ? क्या यह आप नकल नहीं कर रहे ?

मेरे लिए आस्था जो सशंकित, भयभीत हो वो आस्था नही है । आपकी आस्था इतनी डरी हुई क्यूँ है ? क्या हम आज एक स्वतंत्र चेतना वाला समाज जिसकी शुरुआत हमारे संस्कृति पुरोधाओं ने की थी, उससे भटक नहीं गए । अगर आस्था इतनी बड़ी चीज़ है जो भटकने नहीं देती तो यह आस्था ‘स्वचेतना’ पर क्यूँ नहीं रखनी चाहिए ! स्वचेतना केवल नास्तिक हो जाना नही होता यह आस्तिकों में भी भरपूर होती है ।

जब आप कहते हैं कि षडयंत्र के तहत हमको इंफीरियोरिटी कॉम्प्लेक्स से भरा गया तो अब आप क्या कर रहे हैं सिवाय एक भयभीत समाज बनाने के । आपका पुनरुत्थान इतना सिमटा संकीर्ण क्यों है !

जब मैं कहती हूँ कि उपनिषद हर बात पर सवाल करते हैं तो आपको यह क्यों लगता है कि आपका ईश्वर और आस्था खतरे में है और मैं आपको मूर्ख कह रही हूँ !! जबकि मैंने तो कुछ कहा ही नहीं, आप इतने डरे हुए क्यू हैं !
आप खुद समझ लीजिये कि आप अपनी जड़ से दूर निकल आए हैं !

हम पर आक्रमण हुए, हम हारते रहे फिर भी हम बचे हुए हैं । आपके अनुसार हमारी धार्मिकता के कारण, पर जहां तक मैं देख पाती हूँ वहाँ तक हमारी आध्यात्मिक चेतना ने हमें बचाए रखा ।

उस चेतना का ह्रास आपकी यह पज़ेसिवनेस कर रही है, जो आपके ईश्वर के राजनीतिकरण से निकली है ! अनुयायी ही धर्म के संहारक होते हैं और भक्त ही ईश्वर के हत्यारे, आप इन्हीं में से कुछ है !

संस्कृति विशाल है धर्म मात्र उसका एक बिन्दु ! लेकिन आप उस बिन्दु को इतना बड़ा कर चुके हैं कि आप अपनी पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी को खुद ही वैचारिक रूप से पंगु बना रहे हैं, पश्चिम की नकल उसका ही एक हिस्सा !
आप स्वतंत्र है किसी को भी ईश्वर मानो, हमारी संस्कृति किसी को अल्लाह तक नहीं रोकती ! किन्तु आपकी आस्था कब फेसबुक पर किसी को गरिया दे इसलिए उसकी नाक में पगहैया बांध के रखिए !

सबसे अंतिम बात जब सुप्रीम कोर्ट अपने तमाम फैसलों में हिन्दू को धर्म नहीं शैली कहती है तो आपको कोई दिक्कत नहीं । जैसे हाल में एक फैसले में कहा था कि धर्म का इस्तेमाल चुनाव प्रचार में नहीं हो सकता लेकिन हिन्दू इसमें अपवाद है क्योंकि वो धर्म नहीं शैली है !! तब आपने हल्ला क्यों नहीं काटा कि यह हमको धर्म मानने से इंकार क्यों कर रहे हैं, हमारी आस्था से खेल रहे हैं !!! हमारी स्वनाम्धन्य हिन्दू पार्टी क्यों नहीं कहती कि हमारे ईश्वर खतरे में है अब !!

अंतिम बात यह कि मैंने किसी को मूर्ख नहीं कहा, भटका हुआ अब जा के कह रही हूँ कि आप इतने भटक गए हैं कि आपको सब कुछ खुद के खिलाफ साजिश दिखने लगी है। जबकि साज़िश आपकी खुद की रचाई हुई है।

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