जब से उत्तर प्रदेश के चुनाव में समाजवादी पार्टी की पराजय हुई है तब से अधिकतर समाजवादी फेसबुक में आंय बांय सांय बोले जा रहे हैं। कोई अखिलेश यादव को दोष देता है, कोई अवसरवादी युवाओं व नेताओं को दोष देता है, कोई चाटुकारों को दोष देता है। आरोप प्रत्यारोप का संगम चल रहा है। मैंने सोचा कि मैं भी विचारक के रूप में अपनी खरी-खरी बात रख दूं भले ही मैं समाजवादी पार्टी का सदस्य नहीं हूं। इसी बहाने समाजवादी पार्टी वाले समाजवादियों की सहिष्णुता व अभिव्यक्ति के स्वातंत्र्य वाले मूल्य पर उनकी आस्था व समझ का भी कुछ आकलन हो जाएगा।
आपको अटपटा लग रहा होगा कि मैं समाजवादी पार्टी वाले समाजवादी क्यों लिख रहा हूं। वह इसलिए कि जैसे भारतीय वामपंथी पार्टी का होने का मतलब वामपंथ की समझ या वामपंथी होना नहीं होता, जैसे बहुजन समाज पार्टी का होने का मतलब बहुजन होना या बहुजन के प्रति प्रतिबद्ध होना नहीं होता जैसे भारतीय जनता पार्टी का होने का मतलब हिंदूत्व की समझ रखने वाला या हिंदू होना नही होता बिलकुल वैसे ही समाजवादी पार्टी का होने का मतलब समाजवादी होना नहीं होता। लेकिन चूंकि ऐसा माना जाता है, प्रचलन में आ गया है इसलिए मैं समाजवादी पार्टी वाले समाजवादियों कह रहा हूं।
आप लोगों की प्रतिक्रियाओं से ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो आपको पराजय बर्दाश्त नहीं हो पा रही है। आपमें से बहुत लोग यह कहते हैं कि उन्होंने समाजवादी पार्टी की सरकार से कभी कुछ नहीं लिया। मेरा कहना है कि भले ही आपने पार्टी की सरकार से कुछ नहीं लिया हो लेकिन आपकी पार्टी की सरकार होना ही आपके अंदर मनोवैज्ञानिक आत्मविश्वास, प्रसन्नता व भावनात्मक आवेग आदि बनाए रखता है। इसलिए कौन कितना मलाई खाया, कौन कितना किसके चिपका रहा इत्यादि बातों का कोई विशेष मायने नहीं।
मायने यह रखता है कि जो नुक्ताचीनी आप अब निकाल रहे हैं वह नुक्ताचीनी आपने पार्टी के सरकार में पांच साल रहते हुए क्यों नहीं की। मान लिया जाए कि आपने की भी तो पूरी शिद्दत से लगातार क्यों नहीं की। अपने भीतर गहराई में झांकिए, यदि थोड़ी सी भी दृष्टि होगी तो उत्तर आपको मिल जाएगा।
मैं तो यही सुझाव दूंगा कि नुक्ताचीनी निकालना बंद कर दीजिए। जमीन पर उतरिए या जो जमीन पर उतरें हों उनके साथ बिना छल व धोखे व हिडेन-एजेंडे के साथ खड़े होइए बिना शर्त। यदि ऐसा न कर पाइए तो अपनी रोजी-रोटी पाइए, भविष्य में जब यदि कभी समाजवादी पार्टी की सरकार बनती है तो फिर समाजवादी बन लीजिएगा। इतना करने में आखिर मुश्किल क्या है, कठिनाई कहां है। बहुत सरल है।
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Akhilesh Yadav
आपमें से बहुत लोग सोशल मीडिया के माध्यम से अखिलेश यादव को यह बताने में लगे हैं कि उन्होंने किस पर विश्वास करके गलती किया, फलां किया ढिका किया वगैरह-वगैरह। दूर से आलोचना करना बहुत आसान है। लेकिन जब सत्ता हाथ में होती है तब लोगों व लोगों की मानसिकताओं को फिल्टर कर पाना बहुत ही मुश्किल होता है। यह भी तो संभव है कि यदि आप अखिलेश यादव से चिपके होते तो आपका भी चरित्र सत्ता ग्लैमर के कारण वैसा ही हो गया होता जैसा कि उन लोगों का हुआ जिनके चिपकने को आप आज नाजायज ठहरा रहे हैं।
चुनावी धींगामुस्ती में किसके क्या बयान थे, यह सब यदि छोड़कर ईमानदारी से बात की जाए तो यह मानना पड़ेगा कि अखिलेश यादव ने काम किया और काम करने का प्रयास किया। मैं समाजवादी पार्टी व उसके लोगों की बात नहीं कर रहा हूं। मैं सिर्फ और सिर्फ अखिलेश यादव की बात कर रहा हूं।
यदि नाजायज लोगों के चिपके होने के बावजूद अखिलेश यादव बेहतर सोच रख पाते हैं, बेहतर काम करने के लिए प्रयास कर पाते हैं। तो इसका मतलब यह है कि उन पर किसी के चिपके होने का कोई खास अंतर नहीं पड़ता। राजनैतिक त्रुटियां किससे नहीं होती हैं। सभी से होती हैं। राजनीति में हार जीत चलती रहती है। राजनीति में हारना या जीतना उतना महत्वपूर्ण नहीं होता जितना कि अपने नेता पर विश्वास रखना और हार में भी साथ खड़े रहना।
यदि आपको यह लगता है कि हार के जिन कारणों का विश्लेषण आप कर पा रहे हैं वह अखिलेश नहीं कर पाने में सक्षम नहीं हैं। तब अखिलेश यादव को अपने नेता के रूप में मानने का मतलब ही क्या रहा जाता है। जमीनी कार्यकर्ताओं के बारे में समझ धक्के खाने, धोखे खाने के बाद आती है। जो नेता अपनी हार के कारणों का विश्लेषण न कर पाए। जो नेता अपनी हार से सीख न ले पाए। यदि आपकी दृष्टि में अखिलेश यादव हार के कारणों का विश्लेषण कर पाने में, हार से सीख ले पाने में सक्षम नहीं तो आपके द्वारा उनको नेता के रूप में स्वीकारने का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
ऐसा भी नहीं है कि आप पूरे प्रदेश के हर एक गांव की जमीनी हकीकत से वाकिफ हैं। ऐसा भी नहीं है कि आपने जमीन में बहुत बड़े काम किए हैं, लोगों के लिए भीषण संघर्ष किए हैं, जिनके कारण आपमें विशिष्ट क्षमता आ गई है घर बैठे जमीनी कारणों व हकीकत को समझने का। आप सिर्फ तार्किक व आवेगात्मक कयास लगा रहे हैं जिसे आप हार के कारणों के विश्लेषण का नाम दे रहे हैं।
मूलभूत प्रश्न यह है कि आप अपने स्तर पर भरपूर ऊर्जा के साथ पांच वर्षों तक क्या करते रहे? आपने लोगों की मानसिकता अपने स्तर पर विकसित क्यों नहीं की। घर में बैठे-बैठे पोस्ट-अपडेट करने को जमीनी संघर्ष व योगदान मानने की उथली मानसिकता से तो आप बाहर निकल नहीं पा रहे हैं, किंतु अखिलेश यादव को बताना चाहते हैं कि वे क्या करें या न करें। यदि आपको विश्वास है कि अखिलेश यादव ने लोगों के लिए बेहतर काम करने का प्रयास किया तो उन पर विश्वास कीजिए। उनके साथ खड़े होइए। यदि आपको लगता है कि अखिलेश ने कोई काम नहीं किया, तो ऐसे नेता के पीछे समय व ऊर्जा बर्बाद करने का कोई औचित्य नहीं।
आप हार को इस रूप में भी तो देख सकते हैं कि अखिलेश को जमीनी हकीकत से रूबरू होने का अवसर मिलेगा। जमीनी कार्यकर्ताओं के प्रति उनकी दृष्टि व समझ अधिक स्पष्ट होगी। यदि आपको लगता है कि आप बेहतर हैं, आप अधिक सक्षम हैं तो आपको अपनी पार्टी की कमान संभालनी चाहिए। मेरी समझ में आपकी यह बात समझ न आ रही कि सत्ता में न रहने, लोगों के लिए जमीनी पर रहते हुए संघर्ष करने से इतनी बेचैनी क्यों?
आप तो भाजपा की तरह प्रयोगधर्मी व इच्छाशक्ति के धनी भी नहीं हैं कि आडवाणी जी को किनारे लगाकर मोदी जी को ले आवें। बिना किसी का चेहरा आगे किए हुए लहलहाते हुए सत्ता प्राप्त कर लें और आदित्यनाथ जी को मुख्यमंत्री बना दें और कोई चूं तक न करे उल्टे शान में रुदालियों व भांटों की तरह कसीदें पढ़ना शुरू कर दें।
भाजपा तो समाजवादी होने का दावा नहीं करती फिर भी उसके कार्यकर्ता बिना मुंह बिचकाए बिलकुल जमीन पर घिसटते हुए अपनी पार्टी का प्रचार करते हैं। समाजवादी पार्टी तो समाजवादियों की पार्टी है फिर कार्यकर्ताओं को जमीन पर घिसटते हुए पार्टी का प्रचार करने में क्या झिझक। सत्ता किसी भी पार्टी की हो, सत्ता से सटे हुए लोग कमोवेश वही होते हैं। इसलिए कौन सत्ता से कैसे सटा है, से नहीं, जमीनी प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की लगातार की मेहनत से पार्टियां सत्ता तक पहुंचती हैं।
खुलेमन से स्वीकारिए कि भाजपा ने मेहनत की, लोगों का माइंडसेट को अपने फेवर में करने में कामयाब रही। कारण चाहे जो भी रहे हों लेकिन लोगों को यह लगा कि समाजवादी यादवों की पार्टी है इसलिए अधिकतर पिछड़ी जातियां समाजवादी पार्टी से दूर हो गईं। इस जमीनी तथ्य का अखिलेश यादव से कुछ लोग कितना सटे रहे से कोई मतलब नहीं। हां यह आपकी व्यक्तिगत खुन्नस का विषय जरूर हो सकता है। वैसी ही खुन्नस जैसी कि पिछड़ी जातियां समाजवादी पार्टी के सत्ता पर आने से यादवों के व्यवहारों के कारण यादवों से रखने लगतीं हैं।
यदि हो सके तो अपने स्तर पर समाजवादी पार्टी को मजबूत कीजिए। हर जाति के लोगों का दिल जीतिए। समाज के लोगों को लगे कि समाजवादी पार्टी उनकी अपनी पार्टी है। अब वे जमाने लद गए जब आपने बिना वास्तविक जमीनी आधार वाले किसी बेहूदे आदमी को उठाकर पद दे दिया और सोच लिया कि अब उस आदमी की जाति के सारे लोग लहालहा कर आपके साथ खड़े हो जाएंगें।
भविष्य में विजय प्राप्त करना आसान नहीं। रगड़ना पड़ेगा खुद को, तपाना पड़ेगा खुद को, जमीन पर लोगों के बीच। वास्तविक जनाधार वाले नेताओं से डरिए नहीं, उनको साथ जोड़िए, तालमेल बनाइए, साझेदारी कीजिए, हिस्सेदारी दीजिए। हर स्तर पर साझा करना सीखिए, हर स्तर पर हिस्सेदारी देना सीखिए।
यदि आपको लगता है कि आप सही हैं लेकिन आपका नेता अक्षम है, दृष्टिहीन है, कान का कच्चा है तो बदल दीजिए अपने नेता को। किंतु यदि आपको लगता है कि आपका नेता गुणी है तो उस पर विश्वास कीजिए, नुक्ताचीनी की बजाय उसके निर्णयों के साथ खड़े रहिए इस विश्वास के साथ कि आपका नेता भी कारणों का विश्लेषण करने में कम से कम उतना सक्षम है जितना कि आप हैं।
चलते चलते एक बात बताना चाहता हूं, भाजपा आपके एजेंडे तय करती है। भाजपा जिस चुनावी रणनीति का प्रयोग आज करती है आप उस रणनीति का प्रयोग कल करते हैं जबकि भाजपा कल एक नई रणनीति के साथ चुनाव में अपना परचम लहरा रहा होती है। आपको भाजपा का अनुसरण करने की जरूरत नहीं, आपको भाजपा का प्रतिरोध करने की जरूरत नहीं, आपको भाजपा के एजेंडों के विरोध में अपने एजेंडे तय करने की जरूरत नहीं। ऐसा करके तो आप भाजपा को और अधिक मजबूत ही करते हैं।
आप अपने एजेंडे खुद तय कीजिए जो आम लोगों के अपने एजेंडे हों। आप सत्ता में आएं या न आएं लेकिन एजेंडे अपने रखिए। भाजपा चुपचाप 10 साल सत्ता से बाहर रहकर भी अपने एजेंडे में काम करती रहती और एक दिन अचानक पूरे देश में कब्जा कर लेती है।
धैर्य, रणनीति, जमीनी संगठन व प्रतिबद्ध कार्यकर्ता यह चार भाजपा के मूलभूत विजयी तत्व हैं। आप इन चारों में कमजोर हैं।
पार कैसे लगेगा यह सोचने की बजाय आप तो आपसे में ही छीछालेदर करने में लिप्त हैं। अब मर्जी आपकी, आप मुझे चाहे गरिया लें या मेरी बातों पर मनन कर लें। आपकी अपनी समझ, आपकी अपनी खुशी।
शुभकामनाओं सहित,
सामाजिक यायावर
जबर्दस्त लेख। काश कि वे भी पढ़ते जिसके लिए लिखा गया है।
सारगर्भित, सटीक बेबाक विश्लेषण और व्याख्या।