सामाजिक यायावर
समाज में बने बनाए ढर्रों, मान्यताओं, परंपराओं, धारणाओं आदि पर सवाल उठना किसी न किसी कारक के कारण शुरू होता है। उत्प्रेरक कारक न होने पर सड़ांध के स्तर का होने के बावजूद ढर्रे, मान्यताएं, धारणाएं आदि ढोई जाती रहतीं हैं।
2014 में भाजपा की केंद्र सरकार आने के बाद भाजपा, सहयोगी संगठनों व भक्तगणों के बयानों, व्यवहारों व क्रियाकलापों के कारण लोग प्रतिक्रिया स्वरुप सवाल खड़ा करने लगे हैं। धर्म व जाति के मकड़जाल के प्रति आम लोगों की धारणाएं व मान्यताएं ढहने लगी हैं। लोग धर्म व जाति पर सवाल खड़ा करने लगे हैं, बहस करने लगे हैं। भले ही यह प्रतिक्रियात्मक हो लेकिन यह चिंगारी का काम कर रही है।
इस चिंगारी में घी का काम टीवी, अखबार जैसा मीडिया व सोशल मीडिया महत्वपूर्ण किरदार निभा रहा है। टीवी व अखबार का मीडिया तो लार चुआते लालची व पालतू कुत्ते की तरह व्यवहार करने व खुद को किंग-मेकर मानने के नशे व अहंकार के कारण सरकार बनने के बाद भी अब भी चुनाव प्रचार में ही लगा हुआ है। इस मीडिया की हैसियत दरबार के भांट जैसी हो गई है। जिसे सत्ता की शान में गाना गाना ही है नहीं तो लतियाकर दरबार से बाहर फेंक दिया जाएगा।
भला हो 2G जैसे घोटालों का जिनके कारण आम आदमी के हाथों में सस्ते मोबाइल व सस्ता इंटरनेट पहुंच गया और लोगों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। टीवी व अखबार में कुछ आया, नेताओं/धर्मगुरुओं आदि किसी ने कोई बयान दिया, इधर लोगों ने अपनी अपनी समझ, सोच व स्वार्थ के अनुसार उस पर अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी।
टीवी में किसी कार्यक्रम के लिए तैयारी करनी पड़ती है। अखबार छापना पड़ता है। लेकिन सोशल मीडिया में सिर्फ कुछ बटनें दाबनी पड़तीं हैं और बात जंगल में आग की तरह फैलती है। सोशल मीडिया में लोग परस्पर विरोधी विचारों को पढ़ते, देखते, सुनते, समझते हैं। वै जैसे भी हैं वैसे ही खुद को व्यक्त कर लेते हैं।
सोशल मीडिया में जो ढोंगी है वह बहुत अधिक बड़ा ढोंग कर लेता है। जो झूठ बोलता है वह बहुत अधिक बड़ा झूठ बोल लेता है। जो मक्खनबाज है वह बहुत अधिक बड़ी मक्खनबाजी कर लेता है। जो अंदर से हिंसक है वह मानसिक हिंसा कर लेता है। जो जैसा है और जो करना चाहता है वह सोशल मीडिया का वैसे ही प्रयोग करता है। लोग अपने जैसों के साथ जुड़ते हैं। जो जैसा है उसको वैसे लोग मिल जाते हैं। उसकी बात वाहे ऋणात्मक हो या धनात्मक हो, बुरी हो या अच्छी हो, उसकी पहुंच का दायरा बहुत गुना बढ़ जाता है।
भले ही कितना हो हल्ला हो, उपहास उड़ाया जाए, बेढंगे तर्क दिए जाएं लेकिन अब लोगों के अंदर की धार्मिक व जातीय धारणाओं व मान्यताओं को ढहने से बचा पाना असंभव है। ज्यों ज्यों सोशल मीडिया का दायरा बढ़ता जाएगा त्यों त्यों लोग अपना दर्द व झेला हुआ यथार्थ आपस में साझा करना शुरू करेगा।
चूंकि आम समाज के लोग अपने जीवन में बहुत कुछ झेलते हैं यही कारण है कि प्रतिक्रिया सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत तेजी से फैलती है। झेला हुआ दर्द आपस में एक बांड बन जाता है। ज्यों ज्यों दबे कुचले व शोषित जातियों के लोग भी अधिक से अधिक इंटरनेट व सोशल मीडिया का प्रयोग करना सीखते जाएंगें। प्रतिक्रियात्मक बदलावों की आग बढ़ती जाएगी। इसके लिए धरना प्रदर्शन, कैंडल मार्च में लोगों की संख्या का होना या न होना महत्व नहीं रखता है। क्योंकि सारा खेल तो उसके मन के भीतर चल रहा उठापटक का है।
स्त्रियां मंदिरों के लिए आंदोलन करने लगीं हैं। दलित छात्र एकजुट होने लगा है। ऐसा दिख रहा है कि आगे आने वाले समय में दलित व पिछड़ा भी एकजुट हो सकता है।
भले ही यह प्रतिक्रियास्वरूप हो लेकिन दीवारें तो ढहने लगी हैं। सबसे जरूरी बात है धारणाएं व मान्यताएं टूटना, उन पर सवाल खड़ा होना। इतना शुरू हो जाए तो फिर बहुत कुछ अपने आप टूटने लगेगा। मैं इसको समाज के लिए लंबी दूरी के लिए बेहतर मानता हूं।
चलते-चलते
2014 के चुनावों में लोगों ने अपने जीवन में बदलाव के लिए सत्ता सौपी थी। आम लोगों को उनके जीवन में आमूलचूल बदलाव का बहुत बड़ा सपना भी दिखाया गया था। मैंने 2014 में चुनावों के बाद एक पोस्ट में लिखा था कि अब भाजपा को मीडिया का प्रयोग अगले लोकसभा चुनाव तक नहीं करना चाहिए। क्योंकि अब भाजपा की सरकार है और यदि मीडिया फिजूल में जबरन सरकार की प्रशंसा करेगा तो लोग नाराज होना शुरू हो जाएंगें क्योंकि लोग धरातल में रहते हैं। सरकार यदि कुछ अच्छा करती है तो उसका प्रभाव व असर लोगो को अपने जीवन में दिखता है। इसके लिए मीडिया के ढोल मजीरे की जरूरत नहीं होती है। लेकिन मीडिया के प्रयोग को लोगों का माइंडसेट बनाने के लिए ब्रह्मास्त्र मानने की गलती लगातार व बारबार दुहराई जा रही है। अन्य राजनैतिक दलों के लोग भी यही पद्धति प्रयोग करना शुरू कर चुके हैं। यह सब जो भी हो रहा है वह भारत के लोगों की चेतनशीलता के लिए बहुत ही लाभदायक है।
कोई बड़ी बात नहीं कि आगामी पांच दस वर्षों में ही भारत के लोग भारत की मुख्य मीडिया व वर्तमान राजनैतिक दलों, जातियों व धार्मिक मान्यताओं व धारणाओं को बिलकुल ही गिराकर ढहाना शुरू कर दें।
कुछ भी हो समाज में ऐसी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न करने के लिए भाजपा, सहयोगी संगठनों व भक्तों को जबरदस्त क्रेडिट जाता है।
सामाजिक यायावर
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