मासूम बूंदों की फुहार

Mukesh Kumar Sinha खिलखिलाहट से परे रुआंसे व्यक्ति की शायद बन जाती है पहचान, उदासियों में जब ओस की बूंदों से छलक जाते हों आंसू तो एक ऊँगली पर लेकर उनको ये कहना, कितना उन्मत लगता है ना कि इस बूंद की कीमत तुम क्या जानो, लड़की! खिलखिलाते हुए जब भी तुमने कहा मेरी पहचान तुम से है बाबू मैंने बस उस समय तुम्हारे टूटे हुए दांतों के परे देखा… Continue reading