मासूम बूंदों की फुहार

Mukesh Kumar Sinha खिलखिलाहट से परे रुआंसे व्यक्ति की शायद बन जाती है पहचान, उदासियों में जब ओस की बूंदों से छलक जाते हों आंसू तो एक ऊँगली पर लेकर उनको ये कहना, कितना उन्मत लगता है ना कि इस बूंद की कीमत तुम क्या जानो, लड़की! खिलखिलाते हुए जब भी तुमने कहा मेरी पहचान तुम से है बाबू मैंने बस उस समय तुम्हारे टूटे हुए दांतों के परे देखा… Continue reading

छमिया

Mukesh Kumar Sinha “छमिया” ही तो कहते हैंमोहल्ले से निकलने वालेसड़क पर, जो ढाबा हैवहाँ पर चाय सुड़कतेनिठल्ले छोरे !जब भी वो निकलती हैजाती है सड़क के पारबरतन माँजनेकेदार बाबू के घर !!Mukesh Kumar Sinhaएक नवयुवती होने के नातेहिलती है उसकी कमरकभी कभी खिसकी होती हैउसकी फटी हुई चोलीदिख ही जाता है जिस्मजब होती है छोरों की नजरपर इसके अलावाकहाँ वो सोच पाते हैंभूखी है उसकी उदर !! आजकल “छमिया”” भीजानबूझ करमटका… Continue reading

अजीब सी लड़कियां

Mukesh Kumar Sinha[divider style=’full’] वो अजीब लड़की सिगरेट पीते हुए साँसे तेज अन्दर लेती थी चिहुँक कर आँखे बाहर आने लगती हैं पर खुद को संभालते हुए, खूब सारा धुंआ गोल छल्ले में बना कर उड़ा देती है ! ठुमक कर कहती है देखो कैसे मैंने उसे उड़ा दिया धुंए में, बेचारा न मेरा रहा, न जिंदगी रही उसकी ! फिर, नजरें बचा कर भीगती आँखों से कह देती उफ़,… Continue reading

सोलह आने सच

Mukesh Kumar Sinha झूठ-मूठ में कहा था तुमसे करता हूँ प्यार और फिर उस प्यार के दरिया में डूबता चला गया ‘सच में’ ! डूबते उतराते तब सोचने लगा किसने डुबोया कौन है ज़िम्मेदार? झूठ का चोगा पहनाने वाला गुनाहगार ? और वजह, इश्क़-मोहब्बत-प्यार ? हर दिन आँख बन्द होने से पहले खुद ही बदलता हूँ पोशाक दिलो दिमाग पे छाए झूठ के पुलिंदे को उतार अपनी स्वाभाविक सोंधी सुगंध… Continue reading

स्मृतियाँ

Mukesh Kumar Sinha थोडा बुझा सा मन और वैसा ही कुछ मौसम शून्य आसमान पर टिकी नजरें, और ठंडी हवा के झोंके के साथ जागी, उम्मीद बरसात की उम्मीद छमकते बूंदों की उम्मीद मन के जागने की !! होने लगी स्मृतियों की बरसात मन भी हो चुका बेपरवाह सुदूर कहीं ठंडी सिहरन वाली हवा सूखी-सूखी धूल धूसरित भूमि सौंधी खुश्बू बिखेरती पानी की बूंदे मन भी तो, होने लगा बेपरवाह… Continue reading

एक चुटकी मुस्कान

Mukesh Kumar Sinha होंठ के कोने से चिहुंकी थी हलकी सी मुस्कराहट आखिर दूर सामने जो वो चहकी, नजरें मिली, भर गयी उम्मीदें हाँ, उम्मीदें अंतस से लाती है हंसी !! माँ के आँचल में दबा, था अस्तव्यस्त छुटकू सा बालक, स्तनपान करता तभी आँचल के कोने से दिख गए पापा मुस्काया, होंठ छूटे और फिर खिलखिलाया आखिर जन्मदाता ही देते हैं पहली हंसी भरते हैं जीवन में किलकारियाँ !!… Continue reading

लड़के जो जीते है सिर्फ अपनो के लिए अपनों के सपने के साथ

Mukesh Kumar Sinha लड़कियों से जुड़ी बहुत बातें होती है कविताओं में लेकिन नहीं दिखते, हमें दर्द या परेशानियों को जज़्ब करते कुछ लड़के जो घर से दूर, बहुत दूर जीते हैं सिर्फ अपनों के लिए, अपनों के सपनों के साथ वो लड़के नहीं होते भागे हुए भगाए गए जरुर कहा जा सकता है उन्हें क्योंकि घर छोड़ने के अंतिम पलों तक वो सुबकते हैं, माँ का पल्लू पकड़ कर… Continue reading

चाय या दोस्ती की मिठास

ख़त्म हो चुके चाय के कप के तलों में बची कुछ बूँद चाय अब ऐसी ही मित्रता है कुछ बेहतरीन शख्सियतों की ‘मेरे लिए’ कभी ये दोस्ती की चाय का कप था लबालब, गर्मजोशी ऐसी, जैसे भाप उगलता कप हर पल सुगंध ऐसे जैसे चाय के साथ इलायची की अलबेली सुगन्ध मित्रता में रिश्ते का छौंक व जिंदादिली से भरपूर मिठास हर सिप को जिया है !! खैर ! कप… Continue reading

कुछ अभिव्यक्ति बहुत साधारण होती है, पर सच्ची होती है

[themify_hr color=”red”] मेरी हर कविता अपनी प्रसव पीड़ा झेलने के बाद सृजन के तद्पूरांत जब पन्ने पर हो चुकी होती है उकेरित यहाँ तक की कुछ पाठक वर्ग भी मिल चुके होते हैं फिर भी फुसफुसाती हुई कहती है फिर से सोचो यार क्या नहीं लगता तुम्हें है बदलाव की जरूरत !! कभी लगता है भाव है अधूरा कभी दर्द नहीं उभरता कभी प्यार नहीं खिल पाता, कभी तो शुरुआत… Continue reading

प्रेम

[themify_hr color=”red”] 1. मुट्ठी भर अक्षर लो उढ़ेल दिए पन्नो पर टूटी फूटी ही सही, समझ लेना लिखी गयी प्रेम कविता सिर्फ तुम्हारे लिए !! 2. प्रेम वो निर्मल जल जो सुखी नदी की रेत को हटाते ही एकदम से जमा हो कल-कल शीतल निर्मल ! प्रेमसिक्त मन गर्मी में भी रखता है चाहत रेत हटाने की ! 3. मेरे हथेली में है कटी फटी रेखाए जीवन, भाग्य और प्रेम… Continue reading