प्रेम

Mukesh Kumar Sinha

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1.
मुट्ठी भर अक्षर
लो उढ़ेल दिए पन्नो पर

टूटी फूटी ही सही, समझ लेना
लिखी गयी प्रेम कविता
सिर्फ तुम्हारे लिए !!

2.
प्रेम
वो निर्मल जल
जो सुखी नदी की रेत को हटाते ही
एकदम से जमा हो
कल-कल शीतल निर्मल !

प्रेमसिक्त मन गर्मी में भी
रखता है चाहत रेत हटाने की !

3.
मेरे हथेली में
है कटी फटी रेखाए
जीवन, भाग्य और प्रेम की
पर है एक खुशियों का द्वीप
ठीक बाएं कोने पर

तभी, उम्मीदें जवां हैं

4.
मेरी राख पर
जब भी पनपेगा गुलाब
तब ‘सिर्फ तुम’ समझ लेना
प्रेम के फूल !!

इन्तजार करूँगा सिंचित होने का
तुमने कहा तो था
सुर्ख गुलाब की पंखुड़ियों तोड़ना भाता है तुम्हे !

5.
प्रेमसिक्त संवेदनाओं को
घेर दिया मैंने चीन की दीवार से

पर कहाँ मानता दिल
वो तो पीसा की मीनार सा
झुक ही जाता है तुम्हारे प्रति
ठीक पंद्रह डिग्री के कोण पर ..

चलो ताजमहल के सामने वाली बेंच पर
खिंचवायें एक युगल तस्वीर !

6.
प्रेमसिक्त ललछौं भोर से
डूबते गुलाबी सूरज तक का
बीता हुआ समय
पाँव भारी कर गया उन्मुक्त जवां दिलों को

कोई नहीं,
अब रिश्ता उम्मीद से है !

 

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