
Mukesh Kr Sinha
[themify_hr color=”red”]
मेरी हर कविता
अपनी प्रसव पीड़ा झेलने के बाद
सृजन के तद्पूरांत
जब पन्ने पर हो चुकी होती है उकेरित
यहाँ तक की कुछ पाठक वर्ग भी
मिल चुके होते हैं
फिर भी फुसफुसाती हुई कहती है
फिर से सोचो यार
क्या नहीं लगता तुम्हें
है बदलाव की जरूरत !!
कभी लगता है भाव है अधूरा
कभी दर्द नहीं उभरता
कभी प्यार नहीं खिल पाता,
कभी तो शुरुआत ही लड़खड़ा जाती, तो
कभी अंत सही नहीं होता
शायद पुरजोर कोशिश के बावजूद
नहीं रख पाता अपनी बात व सोच
रह जाती है आधी अधूरी !!
चाहता हूँ कुछ ऐसा कौंधे
कि उभर पाये भाव, खिल पाये प्यार
दिखे खिलखिलाती जिंदगी, फूल पत्तियाँ
सजे व गूँथे हो हर शब्द
सृजित हो पाये एक पूर्ण व सुंदर कविता
चलो फिर कोशिश करेंगे कभी
आखिर उम्मीद और अभिलाषा जरूरी है
भविष्य के बेहतरी के लिए !!
शुक्रिया