गाँव – स्मृतियों की पोटली — Mukesh Kumar Sinha

Mukesh Kumar Sinha

पहुंचा हूँ गाँव अपने....
जाने कितनी भूली बिसरी सुधियों की पोटली सहेजता..
अब ज़रा सा आगे ही रुकेगी बस 
और, दूर दिखाई दे रहा है वो ढलान 
चौक कहते थे सब ग्रामवासी
कूद के बस से उतरा और निगाहें खोजने लगीं 
वो खपरैल जिसमें चलता था 
"चित्रगुप्त पुस्तकालय" 
कहाँ गया वो .?

कहाँ गयी वो लाईब्रेरी 
जिसने हमें मानवता का पहला पाठ पढ़ाया 
हमें मानव से इंसान बनाया था
बचपन के ढेरों अजब-गजब पल
खुशियां-दर्द-शोक, हार-जीत
सहेजा था इसके खंभे की ओट से झांकते हुए
धूम धूम धड़ाम धड़ाम 
यादों के लश्कर दिमाग़ में अंधेरा कर गये
फिर स्मृति की मशाल लिये लौटा वही 
जहाँ जीया था मैंने, मेरा बचपन
इन दिनों 'मनरेगा' ने बदल दी रंग रूपरेखा 
नहीं दिखी वो अपनी पुरानी लाइब्रेरी!

यहीं तो पढ़ी थी प्रेमचंद की गोदान
कैसी टीस से भर गया था बालमन
और वो, राजन इकबाल सीरीज के बाल उपन्यास 
अहा कैसे ढल जाते थे हम भी उन पात्रों में
यहीं चोरी से पढ़े थे इब्ने सफ़ी और 
सुरेन्द्र मोहन पाठक के जासूसी, थ्रिलर नावेल
फिर खुद में फीलिंग आती शरलॉक होम्स की
की थी गांव की लड़कियों की जासूसी
ये लोकप्रिय उपान्यास
लुगदी साहित्य कहलाता है इन दिनों

हाँ, एक रूमानी बात बताऊँ तो
वहीँ सीखी, रानी को अपना बनाना
हर दिन घंटो कैरम पर फिसलती उंगलियां
और क्वीन मेरी हो, सबसे पहले
इसकी होती जद्दोजहद ! 
क्या क्या जतन करते थे उसे पाने के लिये
क्या करेगा उस शिद्दत से कोई आज का आशिक़ 
अपनी माशूक़ के लिये उस दर्ज़े की मशक़्कत
वही होती थी टारगेट 
यहीं खेल-खेल में चमकी थी
क्वीन सी एक प्यारी सी लड़की
फ्रॉक व लहराते बालों में

हाँ इसके सामने हुआ करती थी
हमारी परचून की दूकान
जहां संतरे की गोली की मिठास...
वो हाज़में की चटकारा देती गोलियां
या लाल मिर्च से रंगी दाल मोठ
सब हासिल था चवन्नी में
दस पैसे की जीरा-मरीच 
या अठन्नी का सरसो तेल भी बेचा
छोटे छोटे हाथों से 
यहीं पर जाना था भूख दर्द देती है
और नमक की बोरी रहती थी बाहर पड़ी
वैसे ही
जैसे उनदिनों आंसुओं से बनता हो नमक

स्कूल से लौट कर या जाने से पहले
वजह बेवजह 
जब भी *मैया* का अचरा नहीं मिला तो
उदासियों के आंसुओं को सहेजा था 
इसके भुसभुसे से दीवाल में 
एक दो तीन अल्हड़ फ्रॉक वाली लड़कियों को
निहारा भी, छिप कर यहाँ

और बताना भूल गया
यही है वो जगह जहां बसंत पंचमी झूमती
वीणावादिनी की मधुर तान अलापती
वो प्रसाद को ललचाती हमारी जिव्हायें
क्या भूलें क्या सुनायें
खेत-गाछी-टाल-नदी
जाते आते लोग
गाय-भैंस-बकरियां सूअर की संवेदनाएं भी
देखते हुए वहीँ घंटों बतियाते अपने से
कितनी हलचल... कैसा कोलाहल
तितली के पीछे भागते, जुगनू पकड़ते
तब किसे पता था क्या होती है हमिंग बर्ड

नम आँखों से बस् सोच रहे
जाने कहाँ खो गया बचपन हमारा
खुश्क है दम
आँख है नम.
काश.!!!
लौट आये
बचपन की
वो बयार पुरनम......।

आखिर इसी पुस्तकालय ने कहा था कभी
तू सच में बच्चा है !
सोचता हूँ, फिर ढूंढूं वहीँ बचपन !
एक प्रतिध्वनि कौंधी कहीं अंदर
कि
क्या सच्ची स्मृतियां कविता नहीं हो सकती !

Mukesh Kumar Sinha

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67 Responses to गाँव – स्मृतियों की पोटली — Mukesh Kumar Sinha

  1. मुकेश कुमार सिन्हा says:

    शुक्रिया सर, मेरी कविताओं के लिए आपका स्नेह, मेरे लिए थाती है !
    धन्यवाद

    • सुमन शर्मा says:

      बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति।यही आपकी विशेषता है कि जीवन के किसी भी पहलू पर जीवंत चित्र प्रस्तुत करते हैं।बधाई कविता के लिए मुकेश जी

      • मुकेश कुमार सिन्हा says:

        Shukriya suman, हमें खुशी है कि मित्र ने हमारे लिखे को पसन्द किया।

  2. Sweta sinha says:

    मधुर स्मृतियों से गूँथी भावपूर्ण कविता लिखे है सर..। कुछ स्मृतियाँ संतरी टॉफी की तरह जीवन में स्वाद घोलती रहती हैं।

  3. Sandhya jain says:

    कितना सुंदर…. आंखों के सामने जैसे हमने भी जी ली आपकी स्मृतियाँ मुझे अपना ननिहाल याद आ जाता है जब भी आपकी गाँव की यादों को पढ़ती हूँ ।

  4. बहुत सुंदर says:

    बहुत सुंदर

  5. Vijaya Dhurve says:

    सुखद स्मृतियों की सुंदर पोटली…. अनुपम रचनाएँ

  6. Abha Khare says:

    सुंदर यादों की पोटली
    गांव-घर के ज़र्रे-ज़र्रे में बिखरी तमाम स्मृतियों को बहुत ख़ूबसूरती से संजोया गया है कविता में। बधाई आपको सर।

    • मुकेश कुमार सिन्हा says:

      आपकी प्रतिक्रिया पा कर खुशी हुई, शुक्रिया !!

  7. भावना says:

    बहुत बढिया

  8. Divya says:

    मुकेश जी, आपकी यह कविता स्मृतियों के लश्कर से भरी हुयी है… पढ़ कर ऐसा लगा जैसे अपने गाँव लौट आया हूँ | कविता की हरेक पंक्ति आपकी ‘लाल फ्रॉक वाली लडकी’ की तरह सामने नज़र आयी- भावों के मेघ में खेलते हुवे |

    “… और नमक की बोरी रहती थी बाहर पड़ी
    वैसे ही
    जैसे उनदिनों आंसुओं से बनता हो नमक…”

    ऐसी पंक्तियाँ तो बस आप ही लिख सकते हैं – मार्मिक, मारक, भावुक, बिस्फोटक…. सब कुछ एक साथ |
    आप को ढेरों शुभकामनाएं और पाठकों को भी बधाइयाँ – ऐसी कमाल की रचना पढ़ने को मिले तो कौन भला निहाल न हो… !

    • Mukesh Kumar Sinha says:

      दिव्य आपने इतनी वैल्यू दी, शुक्रिया ।

  9. Pratima says:

    स्मृतियों में बसी बातों का बहुत सुंदर कहन

  10. Vijendra Diwach says:

    बहुत सुंदर रचना आपकी ।आपकी रचना ने बचपन वले दिन याद करा दिए।बीते हुए लम्हों की कसक हमेशा साथ रहती ही है ।

    • मुकेश कुमार सिन्हा says:

      धन्यवाद विजेंद्र जी, आपके स्नेह को पाकर ख़ुश हूँ

  11. Meena Sood says:

    जो हृदय से निकले, कविता वही तो है। बहुत सुँदर मुकेश जी!

    • मुकेश कुमार सिन्हा says:

      शुक्रिया मीना जी, धन्यवाद

  12. Sarita M sail says:

    गाँव की स्मृतीयों को याद करती बहुत ही मार्मिक रचना

  13. Sangeetap pandey says:

    बेहतरीन रचना। वाकई स्मृतियों की पोटली खोलने वाली रचना।

  14. Ranjeet Kumar says:

    क्या बात है मुकेश भाई! बचपन का लशकर याद दिला दिया। बहुत बढिया।

  15. Daisy Jaiswal says:

    स्मृतियों का पिटारा बहुत सुंदर

  16. Kalpana Roy says:

    Potali khuli aur hum bhutkalme dhamse gire.!

  17. Amita srivastava says:

    सच्ची स्मृतियाँ बिल्कुल हो सकती है कविता ..और हुई भी ..सुखद स्मृतियों से गुंथी एक खूबसूरत पोटली …आपके शब्द चित्रकाव्य के समान दृश्य आँखे के सामने गुजरते से महसूस होते हैं..बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको मुकेश जी

    • मुकेश कुमार सिन्हा says:

      खुश हुआ अमिता, तुमने कमेन्ट किया ……

  18. anilanjana says:

    आँखों की नमी से दिल के सुकून तक
    यादें बोलती हैं अपना मौन तोड़ कर

    स्मृतियों की अकूत समृद्धि को शब्दों में बाँध साझा करने का ईश्वरप्रदत्त हुनर है तुम में ,माँ शारदा की अकूत कृपा. तुम्हारी सहजता औरसरलता से भीगे
    उद्द्गारों पर सदा ही बनी रहे यही शुभाशीष .

  19. सच्ची स्मृतियाँ ही काल जयी कविता होती हैं,आपने पूरी फिल्म दिखा दी बचपन के दिनों वाली वाह, शानदार! सरल हिंदी में इतना सरस संयोजन । जन जन से जुड़ी कविताएं श्रेष्ठ कविताएँ ! सादर प्रणाम।

  20. Nanda pandey says:

    शब्द कम पड़ जाते हैं ऐसी कविताओं के लिए शुभकामनाएं मित्र

    • मुकेश कुमार सिन्हा says:

      शुक्रिया नंदा, आपके स्नेह के लिए धन्यवाद

  21. Sunil Kumar says:

    बहुत अच्छा लिखा है, शब्द बहुत गहराई से चुने गए है और पढ़ते पढ़ते दृश्य को जीवंत कर रहे है

  22. अरुण चन्द्र रॉय says:

    अच्छी कविता मुकेश जी . ग्रामीण परिवेश की संवेदनाओं को समय के साथ देखने की कोशिश की है आपने . शुभकामनाएं

    • मुकेश कुमार सिन्हा says:

      अरुण जी, आपके कमेंट्स मुझे हर बार बेहद खुशी देते हैं, शुक्रिया

  23. Shalini gupta says:

    Kitabon se achcha koi dost nahi insaan ka ..ye frock wali ladki sab jagah hoti hai kya ..cute hai ..badhiya likhte ho aap ..dimple words par gehra matlab

  24. जोशी says:

    बढ़िया है

  25. Chandra Shekhar srivastava says:

    गांव का जीवन यात्रा है आप की लेखनी ने यादों को ताजा कर दी है।

  26. shivdeo says:

    You write very differently, and it touches the heart! Congratulations Mukesh

  27. Ganesh says:

    Congrats sir, I usually read your poetry.its so intellectual. I wish you to give us such wonderful poetry and other readable content.
    I wish that you always give us such a beautiful poetry again and again.
    Good luck for your future assignments.

  28. अर्चना राज says:

    हम सबके बचपन को सहलाती मीठी कविता जो अक्सर स्मृतियों को नम कर देती है… बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं इस कविता के लिए मुकेश जी।

    • मुकेश कुमार सिन्हा says:

      अर्चना जी, तहे दिल से शुक्रिया

  29. Avnish Gupta says:

    I like your poem blog very much. I admire for your writing skills as poet. it has a real to the masses. I wish and recommend for award. Best Wishes

  30. अंजु says:

    रचनात्मकता और सृजनात्मकता नित नये आकाश छुए । ग्रामीण परिवेश पर लिखी गई उत्कृष्ट कविता ! शुभकामनायेँ

  31. Lata Ruchi Ojha says:

    अक्सर स्मृतियाँ ही कविताओं के रूप में उतार आती हैं पन्नों पर। जाने कितने रंग रूप भावों से से भरी होती हैं ये शब्दों में उकेरी स्मृतियाँ। होती हैं न.. ये भी कविता ।

    कितनी सहजता से अपने साथ घूम लाये हमको भी उन्ही बचपन की गलियों में। प्रसाद के लिए ललचाई जिव्हा और खट्टी मीठी गोलियों का वो चटकारा ..आहा… अद्भुत!
    बधाई मुकेश जी

    • मुकेश कुमार सिन्हा says:

      Ruchi, तुमने तो इतने खूबसूरत कमेंट से कविता की वैल्यू ही बढ़ा दी थैंक्स।

  32. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मुकेश जी.
    आपकी इस रचना ने ग्रामीण और क़स्बाई जीवन के बड़े ही मार्मिक चित्र उभारे हैं, जीवंत शब्दचित्र को उकेरने की कला में आप दक्ष हैं ऐसा आपकी यह रचना ख़ुद बयां करती है |
    बधाई
    सादर

  33. Priya vachhani says:

    बहुत सुंदर यादों की पोटली

  34. आमिर मलिक says:

    बहुत सुंदर प्रस्तुतिकरण । बचपन के पल याद आ गए । उन्ही शब्दो , उन्ही घटनाओं को पढ़ कर दुबारा वही पहुंच गया । शुभकामनाएं ।

  35. युवराज says:

    ग्रामीण पृष्ठभूमि को स्मृति में देखते हुए सुंदर ढंग से लिखा गया है।

  36. Rekha Sharma says:

    Behad sadhi hui evm saral rachna .. Aapko hardik badhaiyan evm shubh Kamnayen Mukesh .. aise hi achha aur man bhavan likhte rahen

  37. मिथिलेश says:

    लौटना हर समय प्यारा होता है। सुंदर रचना ।

  38. अंजु चौधरी says:

    धीरे धीरे बेहतरीन होते जा रही कवितायें , बहुत सुंदर और भावपूर्ण

  39. KAILASH CHAND JOSHI says:

    What a fabulous poem, congratulations

  40. Sandhya Jain says:

    मुकेश जी, आपकी पुरानी पाठक रही हो, करीबन सभी कवितायें पढ़ी है, और मुझे सारी बेहतरीन लगती हैं
    ये सर्वश्रेस्ठ है

  41. आरती तिवारी says:

    अपने गाँव घूमा दिये तुम , ऐसे ही तुम्हारे शब्दो से हम बिहार की यात्रा करते रहेंगे , बढ़िया कविता

  42. Ganesh Kumar Sah says:

    Well done Mukesh, a very touchy poem, one of the best creation by your pen

  43. नीलु पूरी says:

    खूबसूरत कविता, दिल को छू गई मुकेश
    आप लिखते रहिए, हम पढ़ते रहेंगे

  44. आकांक्षा बर्नवाल says:

    बहुत अच्छी बन पड़ी है कविता
    पढ़ते हुए जीवंत सा लगा

  45. विम्मी मल्होत्रा says:

    सुखद अनुभव ही सच्ची कविता को पंक्तिबद्ध करता है।
    और ये हुनर सिर्फ आप में है।