स्पेस

Dhiraj Kumar

वहाँ कुछ भी नही होना था
ऐसा कुछ मानना भी था
और वहाँ कुछ था भी नही
ऐसा मान भी लिया गया

वहाँ मगर बहुत कुछ था
इतना ज्यादा कि 
पृथ्वी जैसी चीज का निशान ढूंढना
नामुमकिन !

वहाँ स्पेस था,टाइम था 
डार्क मैटर था ,डार्क एनर्जी था ....
और भी न जाने क्या क्या था ....

तज्जुब कि....
जो स्पेस-टाइम का 
चार विमाओं वाला फेब्रिक 
निरंतर फैल रहा था ......

और तो और.....
यह जो स्पेस-टाइम से बुना हुआ
जो फैब्रिक था 
उसमे ब्लैक होलों के टक्कर से
या जुड़वा न्यूट्रॉन तारों के
परस्पर घूर्णन से
तरंग भी उठता था 
बिल्कुल तलाब मे डाले गये 
कंकड़ से उठने वाले तरंग की तरह

वहाँ ....
पहले भी बहुत कुछ था
अब भी बहुत कुछ हो रहा है.....

किसी द्वारा कुछ मानने या
न मानने से क्या फर्क पड़ता है !
वहाँ अभी भी बहुत कुछ होना है 

Dhiraj Kumar

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One Response to स्पेस

  1. Krishan says:

    स्पेस

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