एक दिन नदी में राख की तरह बह गया

Vimal Kumar

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एक दिन मैं और थोड़ा सा जी गया
एक दिन थोडा सा बारिश में भीग गया

एक दिन धूप निकल आयी मेरे आँगन में
एक दिन मैं मरने से भी बच गया

एक दिन मैं धुआं बन गया था
एक दिन तो कुआँ बन गया था
एक दिन में सुलगती रात था
एक दिन मैं दहकती आग था
एक दिन मैं जलने से बच गया

एक दिन बर्फ की तरह पिघलने लगा
एक दिन शाम की तरह ढलने लगा
एक दिन तुम्हारा हाथ पकड़
बच्चे की तरह चलने लगा
एक दिन इतनी तेज़ आंधी आयी कि सब कुछ उड़ा ले गयी

एक दिन मैं पते की तरह झरने से बच गया

एक दिन मैं किसी की आवाज़ था
एक दिन मैं बजता हुआकोई साज़ था
एक दिन एक छिपा हुआ एक राज़ था
कोई भेद खोले इस से पहले

एक दिन आईने के सामने अपना सच उस से कह गया

मरने की घड़ी थी मेरे सामने
किस क़र्ज़ में डूबा था इस तरह
एक दिन तुम्हे प्यार करते करते रह गया

एक दिन तो खूब जलसा हुआ अपने घर में
एक दिन एक किले की तरह ढह गया

एक दिन बहुत उम्मीद थी जिन्दगी से
एक दिन नदी में राख की तरह बह गया .

 

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