Shayak Alok
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उस घर की दीवारों में दरारें थीं तो पिस्त्रा मोरी सूई और मोटे ऊन से उन दरारों को सिलने लगी .. रोज वह घर के जरुरी काम निपटाती .. पति को कलेवा दे काम करने भेजती और फिर दोपहर से शाम एक एक दरार को ढूंढती और उसे सिलने लगती .. दीवारों में नए दरार फिर उभर आते तो वह ऊन और वक़्त का अनुमान करती और फिर उन्हें सिलने में लग जाती .. रात को कभी चौंक के उठती तो दीया जलाती और महीन दरारों की महीन सिलाई शुरू कर देती ..
उसका पति उसे थका देने वाला प्यार कर रहा होता और वह छत की दरारों को देखती उन्हें सिलने का उपाय सोच रही होती ..
अलग अलग दरारों में अलग रंग ढंग के ऊन..
पिस्त्रा मोरी का पति खुश था .. उसे लगता एक एक दरारें मिट रही हैं .. उसे लगता उनके बीच की दूरियां भी मिट रही हैं ..
आजकल पिस्त्रा से संतुष्ट उसका पति पूछता कि बोलो कितना प्रेम है मुझसे तो तुरंत वह जवाब देती ‘उतना जितना प्रेम है मुझे मेरे दरारों के सिलने के काम से ‘ ..
वह फिर पूछता और पिस्त्रा फिर दरारों के रूपक में जवाब देती – ‘ इतना प्रेम जितनी गहरी वह नई दरार ‘ ..
काम से जल्दी लौटे पिस्त्रा के पति ने उस नई दरार की चिर्री से एक रोज देखा पिस्त्रा को उस ऊन वाले सौदागर के साथ ऊन का हिसाब किताब करते .. पिस्त्रा हंसती और नए ऊन का गोला उठाती फिर मोलभाव करती ..
पति को गुस्सा आया .. पिस्त्रा रोती चिल्लाती रही पर न सुना उसने .. सब दरारें उघाड़ दी और बडबडाता पैर पटकता चला गया ..
देर रात लौटा पिस्त्रा मोरी का पति तो दरारों भरी दीवारें गिर चुकी थी.. दीवारों के नीचे दबी पिस्त्रा मोरी के शरीर पर दरारें उभर आई थीं.. पिस्त्रा की मृत उँगलियों में रंगीन ऊन का घेरा था..