भारत के राष्ट्रपति के नाम 4100 वां पत्र

सेवा में,

आदरणीय महामहिम भारतीय राष्ट्रपति जी,
चरणस्पर्श।

bihar-sitamarhi-tamhua-dilip-arunहम सही नहीं है। मगर आपकी सलामती की कामना करते हैं। हे राष्ट्रपति जी, पिछले ग्यारह (11) वर्षों से हर रोज आपके नाम हम पत्र लिख रहे हैं और यह हमारा 4100वां पत्र है। हर पत्र में मैंने लिखा है कि- “प्लीज हमें आपसे मिलने के लिए थोड़ा – सा वक्त दिया जाय तथा हमारे गाँव के उन गरीबों की सहायता की जाय जिनके परिवार के लोग बीमारी के कारण असमय मर चुके हैं।” मगर आज तक आपने हमें मिलने का वक्त नहीं दिया है।

लिहाजा, हम अपने दिल की दरिया में उठ रहे इस सवाल का जवाब ढूंढ रहे हैं कि क्या हिंदुस्तान की झोपड़ी में रहने वाले नागरिक तथा हिंदुस्तान के राष्ट्रपति का दिल अलग-अलग धड़कता है? अगर ‘हाँ,’ तो क्या हम सभी एक साथ जम्हूरियत की जमीन पे खड़े नहीं हैं? और अगर ‘नहीं ‘ तो फिर आज तक हमें आपसे मिलने का वक्त क्यूँ नहीं मिला है?

हे राजन, आप केवल दिल्ली स्थित रायसीना के सीने पे खड़े आलिशान और अज्जिमुस्सान राष्ट्रपति भवन के हिस्से नहीं हैं बल्कि आप 32 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले भारतवर्ष के हिस्से हैं। इस समूचे क्षेत्र में बसर करने वाले 125 करोड़ नागरिकों के जीवन मूल्यों के हिस्से हैं। लिहाजा, आप इस बात को समझें कि आप इस लाल हवेली के अंदर तख्तो – ताज पर बैठने वाले केवल मूरत नहीं है बल्कि आप हर भारतीय नागरिक का रक्षक हैं।

हे मेरे पिता तुल्य सम्राट, जिस तरह बालुओं के ढेंर में सर छुपाकर गिरते हुए आसमान के कहर से हम नहीं बच सकते हैं, ठीक उसी तरह आप अपनी व्यस्तता तथा प्रोटोकॉल की ओट में अपने संवैधानिक कर्तव्यों तथा लोकतान्त्रिक जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकते हैँ क्योंकि व्यस्तता तथा प्रोटोकॉल आपकी समस्या हो सकती है हमारी नहीं। हमारी समस्या तो भूख, गरीबी, बीमारी और अशिक्षा है। इसलिए आप प्रोटोकॉल की जंजीर में जकड़े अपने हाथ और पांव को खोलिए ताकि आप बाहर की वेदना भरी क्रंदन और पुकार को सुन सकें।

माफ़ कीजियेगा, हंगामा खड़ा करना हमारा मकसद नहीं है बल्कि हम परिवर्तन चाहते हैं क्योंकि मेरा मानना है कि हिंदुस्तान के हर नागरिक को यह अधिकार होनी चाहिए कि वह समानता की जमीन पर बैठकर अपने सम्राट से बातें कर सके और उसी समानता की जमीन पर बैठकर मैं आपसे बातें करना चाहता हूँ क्योंकि जब – जब भूख, बीमारी और आपकी अनदेखी से किसी नागरिक की मौत होती है तब- तब मेरे दिल की धड़कन की एक डोर टूट जाती है।

लिहाजा, आज हिन्द सल्तनत के सुल्तान से मैं यह प्रश्न कर रहा हूँ कि जब लोकतंत्र के तराजू पर हर नागरिक की कीमत बराबर होती है तो फिर मेरे साथ यह अन्याय क्यों हो रहा है? इतने पत्र लिखने के बावजूद मुझे मिलने का वक्त क्यों नहीं दिया जा रहा है? आखिर अपने सम्राट का दीदार करने के लिए मुझे अभी और कितने पत्र लिखने पड़ेंगे?

आपके जवाब के इंतजार में-

आपका विश्वासी
दिलीप अरुण “तेम्हुआवाला”
सीतामढ़ी (बिहार)
तेम्हुआ, 24.02.2016

Tamhua, Sitamarhi, Bihar, India

Tamhua, Sitamarhi,
Bihar, India

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