धार्मिक कथाएं व ग्रंथ, इतिहास व इतिहासकार

किसी भी धर्म की अधिकतर पौराणिक कथायें, उस धर्म के लोगों को स्थायी रूप से मानसिक गुलाम रूपी अनुगामी बनाने के लिए लिखी गईं हैं। ताकि धर्मों की अमानवीयता, ऋणात्मकता व शोषण वाले गहरे तत्वों पर कभी सवाल न खड़ा हो पाए।   यही कारण है कि पौराणिक कथायें, कथाओं में सत्य तथ्यों के अस्तित्व का भ्रामक अनुभव कराती हुई, मनुष्य सभ्यता के विकास का दावा करते हुए उसको अपनी… Continue reading

समाजवादी बिल्लियों का बड़ा परिवार और फ्रैंक हुजूर

सामाजिक यायावर जो गांवों के हैं उन्होंने अपने गावों में या अपने घरों में घरेलू बिल्लियां देखी होगीं। भारत में पाई जाने वाली घरेलू बिल्ली धारीदार व छीटदार खूबसूरत होती है। अपनी दादी, नानी, माता, बुआ, मौसी, बहन व पत्नी आदि को खाने का सामान बिल्लियों से बचाने की जुगत के साथ रखते देखा होगा। उनमें से बहुतों ने अपने घरों में अपनी दादी व नानी के द्वारा हाथ से… Continue reading

प्रतिक्रिया के कारण हो रही सामाजिक चेतनशीलता के लिए भाजपा, सहयोगी संगठन व भक्तगण धन्यवाद के पात्र हैं

सामाजिक यायावर समाज में बने बनाए ढर्रों, मान्यताओं, परंपराओं, धारणाओं आदि पर सवाल उठना किसी न किसी कारक के कारण शुरू होता है। उत्प्रेरक कारक न होने पर सड़ांध के स्तर का होने के बावजूद ढर्रे, मान्यताएं, धारणाएं आदि ढोई जाती रहतीं हैं। 2014 में भाजपा की केंद्र सरकार आने के बाद भाजपा, सहयोगी संगठनों व भक्तगणों के बयानों, व्यवहारों व क्रियाकलापों के कारण लोग प्रतिक्रिया स्वरुप सवाल खड़ा करने… Continue reading

मानव-निर्मित धर्म और बाबाओं का बाजार

“मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” साभार – पृष्ठ संख्या  242 से 245  मैंने कॉफी पीते मित्र से कहा कि सच्चे बाबाओं/गुरूओं/संतों को छोड़कर शेष बाबाओं के लिए  भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार है। मित्र : आपका मतलब भारत में कई प्रकार के बाबा होते हैं। नोमेड : जी, बाबाओं के कई चारित्रिक प्रकार है। जैसे गरीबों के बाबा, मध्यवर्ग के बाबा, उच्च-मध्यवर्ग के बाबा, उच्चवर्ग के बाबा, व्यापारियों के… Continue reading

हम, हमारी स्मार्टनेस बनाम भारत में प्रस्तावित रेडीमेड स्मार्ट सिटी – (भाग 01)

यह लेख-श्रंखला गंभीर, विचारशील, चिंतनशील व सामाजिक मुद्दों की धरातलीय हकीकत को समझने की दृष्टि रखने वाले लोगों के लिए है। भावनात्मक आवेग, धार्मिक/जातीय प्रतिक्रियाओं/आवेशों, राजनैतिक पूर्वाग्रहों व संरेखणों, अतथ्यात्मक/कुतर्क/वितर्क बहसबाजी करने वाले व वास्तविक विकास की समझ न रखने वाले महानुभावों के स्वाद के लिए इस लेख-श्रंखला में शायद ही कुछ हो। मेरा प्रयास सदैव यही रहता है कि मैं कोरी भावुकता, भावनात्मक आवेग, धार्मिक या जातीय उन्माद/प्रतिक्रिया, खोखले… Continue reading

स्त्री का शरीर व शरीर के अंग भड़काऊ नहीं होते, स्तन व योनि जैसे यौनांग भी नहीं

सामाजिक यायावर शुचिता के नाम पर, संस्कार के नाम पर, संस्कृति के नाम पर, शालीनता के नाम पर, सौंदर्य के नाम पर स्त्रियों के पहनावे आदि पर सवाल खड़े करना बहुत अधिक आम बात है। यहां तक कि बलात्कार, छेड़खानी व बदतमीजी आदि का ठीकरा भी स्त्री के पहनावे पर ही फोड़ दिया जाता है। बकवास, कुतर्क, मानसिक विकृति, वैचारिक विकृति व बेहूदगी के आवेश/आवेग में कहा कुछ भी जाए… Continue reading

दिल्ली जिंदा लाशों का मरता हुआ जहरीला शहर है

सामाजिक यायावर लगभग 11 वर्ष पूर्व सन् 2005 की बात है। मैं दिल्ली के बसंतकुंज इलाके में एक वैज्ञानिक मित्र के यहां अतिथि था। पास के बाजार में गया हुआ था। वहीं एक व्यापारी के यहां अचानक ही चर्चा शुरू हो गई, चर्चा को मोड़कर मैं पानी पर ले आया। मेरे अतिरिक्त चार-पांच लोग थे, सभी अमीर व पढ़े लिखे, करोड़ों का कारोबार करने वाले लोग।   इन सबका कहना… Continue reading

वर्तमान भारत में जाति का अंत करना ही असली समाजवाद

सामाजिक यायावर मेरे पिता के एक ब्राह्मण मित्र ने चमार जाति की लड़की से शादी की। पति पत्नी दोनो लड़ते झगड़ते व प्रेम करते हुए संतानों को पालते पोषते एक दूसरे के साथ आर्थिक विपन्नता के बावजूद जीवन जीते आ रहे हैं। मुझे कभी महसूस ही नहीं हुआ कि उनमें से एक ब्राह्मण व एक चमार है, जबकि मैं लगभग एक वर्ष तक उन्हीं की गाय का दूध उनके घर से… Continue reading

क्या सच में ही भारतीय समाज में कर्म को महान मान कर जिया जाता है ….

सामाजिक यायावर जब मैं बालक था तब मुझे रटाया गया कि कर्म ही पूजा है, कर्म ही प्रधान है, कर्म ही ईश्वर है। खूब किस्से कहानियां सुनाए गए, नैतिक शिक्षा में रटाया गया। जब स्वतंत्र चिंतन शुरू किया तो पाया कि भारतीय सामाजिक ढांचे में कर्म का तो कोई महत्व ही नही है, उल्टा कर्म तिरस्कारित है। सबसे महत्वपूर्ण तो जाति है। जो जाति जितना अधिक कर्मशील है वह उतना… Continue reading

बच्चे को स्वावलंबिता पैदा होने के दिन से सिखाई जाती है

              मैं सोफे पर पसरा पड़ा हुआ था, कहीं जाने का मन नहीं था, कुछ देर आराम करने का मन था। जोनाथन जो मेरी साली साहिबा के पुत्र हैं मेरे पास मेरा एक चप्पल लेकर आए फिर दूसरा लेकर आए। फिर मेरी उंगली पकड़ते हैं और बच्चों के खेलने के लिए बने पार्क में चलने के लिए खींचते हैं। एक डेढ़ वर्ष का शिशु… Continue reading