मानसिक बलात्कार

Nishant Rana​Director and Sub-Editor, ​Ground Report India (Hindi) बच्चें को पैदा होने के दिन से भारतीय समाज में बच्चों के साथ उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करना शुरू कर देता है जाता है।जब बच्चे के किसी कार्य से माता-पिता शिक्षक आदि को यदि जरा भी तकलीफ या जरा भी जिम्मेदारी बढ़ी महसूस होती है केवल तब ही बच्चे से पूर्ण व्यक्ति होने के अंदाज में डांटा फटकारा जाता है। अन्यथा हर… Continue reading

संघ परिवार (RSS) पोषित आर्थिक नीतियों से देश में गहराता आर्थिक संकट — Dr Surendra Singh Bisht

Dr Surendra Singh Bisht​ ​सर्वप्रथम एक उद्घोषणायह लेख संघ परिवार की आलोचना करने के लिए नहीं लिखा है, बल्कि इस लेख का उद्देश्य समाज को चेताना है और संघ परिवार के विवेक को झकझोरना है। मोटे तौर पर इस विषय में दो लेख पिछले वर्ष लिख चुका हूँ, पर तब संघ परिवार को सीधे आरोपी के पिंजड़े में नहीं खड़ा किया था। वैसे संघ परिवार से जुड़े अनेक लोग लेखक… Continue reading

कविता का उद्भव

Dr Vijayanandराष्ट्रीय अध्यक्षभारतीय संस्कृति एवं साहित्य संस्थान,केंद्रीय विद्यापीठ मार्ग, प्रतिष्ठानपुर,प्रयागराज जब करुणा से बोझिल सूरज,उन्नत शिखरों पर चढ़ जाता। निर्दोषों की आंहों, लाशों में, चंदा भी जब न अड़ पाता।।भू पर अधर्म की अति होती,तब राम अवतरण लेते हैं।सीतायें तब जन्मा करती, जब पाप घड़ो में भरते हैं।।जब पर्णकुटियों की सीताएं,सोने का लालच करती।तब तब रावण आ जाता है, सीताएं तभी हरी जाती।।फिर रावण- राम युद्ध होता,राम कथा बन जाती है।पर कौंचवध की करुणा… Continue reading

दुभाषिया

Kumar Vikram वो दो घरों में नहींएक ही घर के दो कमरों में एक साथ रहता है या यूँ भी कह सकते हैं कि यदि माता व पिता दो अलग अलग भाषाएँ हैं तो बच्चा दुभाषिया है या दुभाषिया होना चाहिए वह सिरफ एक की भाषा नहीं बोल सकता अच्छा बच्चा अच्छा दुभाषिया ही होता हैवो लफ़्ज़ों की जड़ता छोड़ सकता हैवो बर्लिन की दीवार तोड़ सकता हैहलांकि वो दोनों… Continue reading

दिल्ली विश्वविधालय की छात्र राजनीति के चरित्र में आमूलचूल परिवर्तन होना चाहिए — Ramanand Sharma

Ramanand Sharma जाति से शुरू होकर जाति पर खत्म होने वाली राजनीति यानी डूसू दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संगठन, भारत में छात्र राजनीति को सबसे बड़ा मंच देने वाली संस्था है। जहां से अरुण जेटली विजय गोयल और न जाने कितने छात्र नेता निकलें जो आगे चलकर मुख्यधारा की राजनीति से जुड़े। भारत में छात्र राजनीति का इतिहास करीब 170 साल पुराना है, 1848 में दादाभाई नैरोजी जी ने ‘द स्टूडेंट… Continue reading

चारुस्मिता

​Rajeshwar Vashistha मैं किसी पेड़ की तरह उगना चाहता हूँ! मेरे पास मजबूत जड़ है, तना भी और पत्ते भी पर मुझे नहीं मालूम कि मैं पीपल बनूँ, नीम बनूँ, बुरूँस बनूँ या देवदार?बस मैं एक ऐसा जादुई पेड़ बनना चाहता हूँजिस पर चिड़िएँ, गिलहरियाँ, तितलिएँ और कोयल सब दिन-रात आएँ। चारुस्मिता ने कहा – सुनो पेड़, मुझे तुमसे प्रेम हो गया है। मेरे पास एक भरी-पूरी दुनिया है,खूबसूरत आँखें और… Continue reading

भारतीय समाज :- मान-सम्मान एवं स्वाभिमान

Nishant Rana​Director and Sub-Editor, ​Ground Report India (Hindi) भारतीय समाज को जाति व्यवस्था ने इतना दमित और प्रदूषित किया है कि यहां रहने वाला व्यक्ति स्त्री या पुरुष प्रेम स्वतंत्रता का कहकरा भी नहीं समझते। भारतीय समाज समाजिक संस्कारों में प्रेम और स्वतंत्रता जैसे भावों की निरंतरता में भ्रूण हत्या करता चलता है, चला आया है। जिस समाज में इन भावों का ही कोई स्थान नहीं होगा वहां का व्यक्ति न… Continue reading

विवशता के क्षणों में

​Rajeshwar ​Vashistha पिता चाहते थे जब वह शाम को थक हार कर घर लौटें मैं बिना सहारे अपने पावों पर चल करदरवाज़े तक आऊँ और वह मुझे गोद में उठा लें।पर बहुत दिनों तक ऐसा हो नहीं पाया। निराश पिता कुछ देर मुझे सहारा देकर चलातेमाँ की गोद में डालते और फिर मुँह-हाथ धोकर चौंके में भोजन के लिए बैठ जाते। पंखा झलते हुए दादी धीरे से कहती – धीरज रखो,… Continue reading

बदमाश डायरी — Gourang

Gourang “कौन हो तुम?””वही तो खुद से पूछ रही हूँ।””मतलब?” “मतलब! क्या मतलब?” “क्या क्या मतलब? शक्ल से तो मेंटल नहीं लगते, कपड़े भी तो दुरस्त ही हैं।””चलो, यही सवाल मैं तुमसे करती हूँ, कौन हो तुम?” “मैं! मैं शरत हूँ।” “तो महज एक नाम हो बस?” “क्या नाम? पढ़ा लिखा हूँ, नौकरी करता हूँ, अच्छा कमाता हूँ, इसी शहर का हूँ, यार दोस्त हैं, मौज मस्ती करता हूँ। इसी से तो पहचान है।” “बस इतनी… Continue reading

बच्चे चाहिए हमें — Nishant Rana

Nishant Rana​Director and Sub-Editor, ​Ground Report India (Hindi) बच्चें हम पैदा करते हैक्योंकि हमें करने होते है समाज में अपना पुरुषत्व साबित करने कोअपना स्त्रीत्व साबित करने कोबच्चे चाहिए होते है हमेंक्योकिं खोजते है अपनी मुक्तिपैदा हुए बच्चे से दिखता है बहुत कोमल नाजुक सा मस्तिष्क जिसमें बींध सके अपने सपनेनिकाल सके अपनी खीज, गुस्सा , झुंझलाहटेएक तो ऐसा हो जिस पर समझे अपना पूर्ण अधिकारजिसको सुधारा जा सके मारा जा सके जो… Continue reading