आग, बचाव व बच्चों का प्रशिक्षण — Vivek Umrao Glendenning

Vivek Umrao "सामाजिक यायावर"
​कैनबरा, आस्ट्रेलिया

​ऑस्ट्रेलिया में आग व बचाव सेवाएं कहा जाता है, बहुत महत्वपूर्ण व सम्मानित सेवा मानी जाती है। छोटे-छोटे बच्चों के लिए वर्ष में कई बार कार्यक्रम आयोजित होते हैं। छोटे-छोटे बच्चों जिनको ढंग से चलना व बोलना तक नहीं आता, उन बच्चों को भी आग व बचाव सेवाओं के वाहनों व यंत्रों से परिचित करवाया जाता है। पूरा का पूरा अत्याधुनिक वाहन बच्चों के हवाले कर दिया जाता है, बच्चे उसमें चढ़ सकते हैं, बटनें दबा सकते हैं, स्टियरिंग से खेल सकते हैं। खुद करते हुए अपनी जिज्ञासाएं शांत कर सकते हैं। बच्चों को इस सेवा से जुड़े खिलौने उपहार के रूप में दिए जाते हैं, ताकि बच्चे घर में भी सीख समझ सकें।

आग व बचाव सेवाओं  के लोग बहुत ही मिलनसार होते हैं, यदि आपातकाल में नहीं जा रहे हैं तो किसी बच्चे की रुचि होने पर वाहन में बैठाकर घुमाने जैसी क्रिया कोई बड़ी बात नहीं। यदि आग व बचाव सेवाओं का कोई वाहन जा रहा है, तो रास्ते में मिलते बच्चों से सेवाओं के लोगों द्वारा हाय हेलो बोलना, मुस्कुराना इत्यादि सामान्य बात है।

आग व बचाव सेवाएं बच्चों के लिए डरावनी नहीं है, न ही बच्चों की पकड़ व पहुंच से दूर। बच्चों के साथ विश्वास व सम्मान का रिश्ता कायम होता है, जो बड़े होने तक चलता रहता है।

​आग व बचाव सेवाओं के कई स्तर होते हैं, छोटी से लेकर बड़ी दुर्घटना से लड़ने व बचाव के लिए। यह सेवा केवल मनुष्य तक ही सीमित नहीं है, यह सेवा पेड़-पौधों, जंगल, जानवर, पक्षी सभी प्रकार के जीव-जंतुओं की सेवा व सुरक्षा के लिए है। यह सेवा कुत्ता बिल्ली इत्यादि को भी बचाती है। यह सेवा किसानों की फसलों व किसानों के पशुओं को भी बचाती है। आग हो, बाढ़ हो, तूफान हो या अन्य मामले, यह सेवा लोगों व जीव-जंतुओं को बचाने का प्रयास करती है, ईमानदारी व प्रोफेशनल तरीके से करती है।

​मेरा पुत्र आदि जब एक वर्ष का था तब वह फायर ब्रिगेड के अत्याधुनिक वाहन के अंदर घुसकर सबकुछ देख चुका था। चालक की कुर्सी पर बैठकर स्टियरिंग घुमा चुका था। स्कूलों में यहां तक कि छोटे-छोटे बच्चों को भी आग, आग का प्रयोग, सावधानी व बचाव के तरीके सिखाए जाते हैं।

मेरा पुत्र लगभग पौने तीन वर्ष का है। बिना भवन व ढांचे वाले जंगल-पहाड़ स्कूल जाता है। जंगली जीव-जंतुओं, पहाड़, जंगल, नदी-नालों में उछलते-कूदते हुए सीखता समझता है। हजारों एकड़ का जंगल है, पहाड़ है, जाहिर है जहरीले सांप, चीटियां, लिजर्ड इत्यादि भी होते हैं। इनसे डरने की बजाय इन जीवों के साथ तालमेल व उनको हानि पहुंचाए बिना स्वयं को सुरक्षित रखना सिखाया जाता है।

आजकल इस जंगल पहाड़ स्कूल में आदि व अन्य बच्चों को आग के बारे में सिखाया जा रहा है। कितने प्रकार से आग जलाई जा सकती है। धातुओं व पत्थरों के घर्षण, माचिस व अन्य तरीकों से आग जलाना सिखाया जाता है। आग जलाते समय चोट लगने पर क्या किया जाए, सिखाया जाता है। आग कैसे बुझाई जाए, सिखाया जाता है। कहां आग जलानी है, कहां नहीं जलानी है, यह सिखाया जाता है।

प्राकृतिक-संरक्षित जंगल में बच्चे आग की जानकारी प्राप्त करते हुए

​आदि धातुओं के घर्षण से आग जलाना सीखते हुए

बच्चे छोटे हैं, वे पूरी तरह से सीख नहीं पाते हैं, न ही याद कर पाते हैं। लेकिन उनका मस्तिष्क इन जानकारियों को ​संरक्षित तो करता ही है, स्टोर की गई इन जानकारियों का प्रयोग बच्चों के कुछ बड़े होने पर मस्तिष्क बेहतर तरीके से करता है, यदि सीखने सिखाने का क्रम चलता रहा।

ऑस्ट्रेलिया में कई प्रकार के जंगल होते हैं। एक श्रेणी प्राकृतिक संरक्षित जंगल की होती है, प्राकृतिक संरक्षित जंगलों में आग नहीं जलाई जा सकती है, जंगल में कुछ छोड़ कर आना व जंगल से कुछ लेकर आना प्रतिबंधित होता है। प्रतिबंध का मतलब यह नहीं कि प्रवेशद्वार पर पुलिस लगती है या जांच होती है। एक छोटा सा सूचनापट लगा देना ही पर्याप्त होता है।
आदि जिस जंगल-पहाड़ स्कूल में जाते हैं, वह प्राकृतिक संरक्षित जंगल है। वहां आग नहीं जला सकते तो बच्चों को घेरा बनाकर, लकड़ी रखकर काल्पनिक आग जलाने व काल्पनिक आग से जानकारी दी गई। अब अगले चरण में उनको ऐसे पार्क में ले जाया जाएगा जहां आग जलाने की सुविधा है। वहां बच्चे असल आग जलाना व सुरक्षा/सावधानी के साथ प्रयोग करना सीखेंगे।

मस्ती की मस्ती, सीखना का सीखना।

कोई भी व्यवस्था रातोंरात कानून बनाने से नहीं बनती है। समाज को जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, पीढ़ी दर पीढ़ी सीखने-सिखाने का काम बिना थके, बिना ऊबे करते रहना पड़ता है। अपने आप कुछ भी नहीं होता है। यदि समाज जागरूक नहीं, यदि समाज अपनी जिम्मेदारी नहीं महसूस करता उल्टे राजनैतिक/धार्मिक/आर्थिक सत्ताओं के हाथ में छोड़ देता है तो ऐसा समाज अपनी स्वतंत्रता, विकास व परिष्करण सबकुछ सत्ताओं के हाथों में गिरवी रख कर गुलाम बन जाता है।

यदि समाज व लोग जागरूक व जिम्मेदार हैं तो व्यवस्था की इतनी औकात हो ही नहीं सकती कि सीढ़ी छोटी पड़ जाए, बैराज के पानी निकालने वाले छेद खुले रह जाएं और समाज के बच्चे अकाल मृत्यु प्राप्त करते रहें।

Vivek Umrao Glendenning "Samajik Yayavar"

He is an Indian citizen & permanent resident of Australia and a scholar, an author, a social-policy critic, a frequent social wayfarer, a social entrepreneur and a journalist;He has been exploring, understanding and implementing the ideas of social-economy, participatory local governance, education, citizen-media, ground-journalism, rural-journalism, freedom of expression, bureaucratic accountability, tribal development, village development, reliefs & rehabilitation, village revival and other.

For Ground Report India editions, Vivek had been organising national or semi-national tours for exploring ground realities covering 5000 to 15000 kilometres in one or two months to establish Ground Report India, a constructive ground journalism platform with social accountability.

He has written a book “मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” on various social issues, development community practices, water, agriculture, his groundworks & efforts and conditioning of thoughts & mind. Reviewers say it is a practical book which answers “What” “Why” “How” practically for the development and social solution in India. 

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2 Responses to आग, बचाव व बच्चों का प्रशिक्षण — Vivek Umrao Glendenning

  1. Ravi ranjan says:

    आदरणीय विवेक भईया,
    बहुत बहुत आभार इतनी बेहतरीन जानकारी साझा करने के लिये।आप से बहुत सारी ऐसी जानकारी मिलती है जिसे किसी अन्य जगह से प्राप्त नही हो सकती,खासकर के मुझे।आपने अपना बेहतरीन अनुभव हमारे साथ साझा किया और हमे हमेशा नई नई जानकारियां देते रहते है,इसके लिये बहुत बहुत आभार।
    आशा है आपसे हमेशा यूँ ही जुड़े रहेंगे और कुछ न कुछ सीखते भी रहेंगे।

  2. ankit nayak says:

    धन्यबाद भाई साहब, यह बेहत रुचिकर लेख है |

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