Anand Kumar
ये कविता एक प्रयास है असमानता के दुनिया भर के कुछ उदाहरणों को साथ लेते हुए। इसे पढ़े तब कल्पना करें की कोई अश्वेत या दलित या महिला कुछ कहना चाह रहे हैं या जिन्होंने भी समानता के लिए कुछ किया या सोचा, उनकी सोच कैसी रही होगी, बदले की और किस तरह के बदले की।
कविता के तकनीकी पहलुओं में गड़बडियो के लिए माफ़ी चाहता हूँ, पहला प्रयास है। आशा है इसमें आपको बताये गये तीनो लोग, अश्वेत दलित व महिला मिल जायेंगे। कविता मे हुई भूल चूक के लिए माफ़ी।
हमारी दुनिया
तुम्हारी दुनिया में न मैं था न थे सपने मेरे
पीढ़ी दर पीढ़ी दफ़्न कर रहे थे तुम निशां मेरे
हक़, सम्मान और आवाज़ छीन चुके थे तुम
रोटी,पानी और ज़मीन भी बीन चुके थे तुम
अफ़्रीका से उठा बाज़ारों में बेचा
श्रम को मेरे तुमने खूब नोचा
गर्म तेल से नहला रहे थे
शहरों से भगा रहे थे
और इसी बीच
अपने ग्रंथों में भी
मेरे वजूद को अपनी दुनिया के लिए भद्दा बता रहे थे तुम।
घर में कैद किया
या छिपा के रख लिया
कमतर हुँ ये गाये जा रहे थे तुम
कमर तोड़ दी और आशा भी
पर छिपाने को परदे बहुत सुनहरे लगाये जा रहे थे तुम
बस यूँ कहुँ की जाने किस आदर्श पे चलके
न जाने किसकी दुनिया बसा रहे थे तुम।
पर मेरी दुनिया थोड़ी अय्याश और
तुम्हारे आदर्शों को ठेंगा दिखने वाली होगी
कैद न हो कोई
पीछे न रह जाये कोई
फिर कोई अपने घरों से उजाड़ा न जाये
प्रेम की हवा पे पहरा न लगाया जाये
धर्म के आगे कोई बहरा न हो जाये
कुछ ऐसी ही बातों की मटकी फिर न टूटे
इसकी गारन्टी देने वाली होगी
मेरी दुनिया थोड़ी अय्याश और
आदर्शों को ठेंगा दिखाने वाली होगी।
तुमने जो सब करने से रोका मुझे
जैसा मेरा वजूद सोचा तुमने
मैं तुमसे जी भरके बदला लूंगा
जैसा किया उसके उलट कर दूंगा।
अपने हक़ को तो तुमसे लड़ूंगा ही
तुम्हारे हक की भी बात करूँगा
बोलना भुलाया तुमने मेरा
मैं तुम्हारा बोलना न भूलने दूंगा
न रहना इस ग़लत फ़हमी में की सहूँगा अब
पर तुम्हे भी सहने नहीं दूंगा
मैं तुमसे जी भरके बदला लूंगा।
विज्ञानं साहित्य और कला के आगे किसी को आने नहीं दूंगा
खुद को सिखाऊंगा सीखूंगा गिरूंगा उठूंगा फिर से लिखूंगा
पर इस बार किसी को किसी का वजूद कमतर न लिखने दूंगा
अब इस दुनिया से जी भर के बदला लूंगा।
माना कुछ पुरानी बातें भी लिख दी है
सुधरे है हालात काफ़ी
पर ये भी सच है कि अभी चलना है और दूर और काफ़ी
तुम्हारी दुनिया में मैं न था
पर हमारी दुनिया मै ऐसा न होगा।

Anand Kumar
सरल शब्दों में गहरी बात, सुंदर
SHUKRIYA
बेहतरीन अभिव्यक्ति। शाबाश। आओ बहुत से पुल बनाएं और फिर पाट दे सभी दूरियां, असमानताएं।
गले लग के मिटा दे सभी रूढ़ियों, ग़मो और शिकवों को।
और हाँ क्षमा कर दो उन्हें जिन्होंने ये किया, ये तुम्हारे प्रगतिपथ पर कंकर बनने लायक भी नहीं।
Bhut bhut shukriya
शानदार , एक ऐसी कविता जो दलित समाज के इतिहास को बयाँ कर रही है और वर्तमान को भी समझ रही है । बहुत अच्छा लगा
बहुत ही सुंदर रचना और समाज की सच्चाई।
SHUKRIYA
Beautiful, honest expression!
Kadwi sacchai ,bht hi saral shbdo me… Bht khoob beta… Hm sb Milkar bnayenge hmari dunia,jahan hm sb honge… Aur han beta,hmare purwajon ki gltiyon k liye dil se maafi mangti hu, ..tumne thik kaha k kaafi kuch bdla h pr abhi b bht kuch bdlna baaki hai , jise hm sb milkar bdlenge…..
Shukriya didi . Apki bhawnaye bhut acchi h.
Bahut acha or such bayan kiya gya h…kavita K madhyam se….good Anand…..aise hi aage badhte rho….
Shukriya didi
बेहद उम्दा
Wow… What a vision you have! It’s just fantastic. Beautiful poem with a deep meaning.
Aap sabhi ka bhut bhut shukriya.
बहुत सुन्दर हमारे समाज की सच्चाई चन्द लफ्जों में बयान् कर दी।
Superb nice line
बेहतरीन भईया❣️
Bahut khoob bhayia…….. Bilkul sach baat likhi hai….aapne apni iss kavita mei….
सटीक कथन ,एक वैकल्पिक विद्रोही दुनिया की तस्वीर भी साथ साथ खींची गई है ,बेहतर ।
समाज की असंवैधानिकता को संवैधानिक शब्दों से जवाब बहुत खूबी से दिया गया है।
अनेक शुभकामनाएं
बराबरी,प्रेम,समानता और कितना कुछ है इस कविता में।
इतनी प्यारी कविता लिखने के लिए बधाई।
आनंद भाई आपने शानदार कविता लिखी है।जो था और जो वर्तमान में चल रहा है उसको जोरदार तरीके से अभिव्यक्त किया है।आप ऐसे ही सामाजिक चिंतन करते रहें।
Bahut Sundar….
बहुत शानदार।
बहोत ही सरल शब्दों में विश्लेषण
आप सभी का सराहना और आशीर्वाद देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
बहुत शानदार।हकीकत लिखी है आनन्द भाई आपने।