राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या मोदी जी के विरोध के मायने लोकतांत्रिक होना जरूरी नहीं

Vivek "सामाजिक यायावर"

सन् 2014 के लोकसभा चुनावों के लगभग दो वर्षों पहले से लोकतंत्र की गूढ़ समझ रखने वाला लोकतांत्रिक व्यक्ति हो पाना बहुत ही अधिक सरल हो गया है। मोदी जी का विरोध कीजिए, गाली दीजिए या व्हाट्सअप फेसबुक ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर ऐसे संदेशों को कापी पेस्ट फारवर्ड कीजिए। इतना करते ही व्यक्ति लोकतांत्रिक हो जाता है।

यह बिलकुल वैसा ही है जैसे मोदी जी का समर्थन करते ही व्यक्ति राष्ट्रप्रेमी, हिंदुत्व की असल समझ रखने वाला व कर्मठ हो जाता है।

इन चरित्रों में अंतर क्या है यह समझ के बाहर है क्योंकि ऊपरी पैकिंग भले ही अलग रंग की हो लेकिन चरित्र तो बिलकुल एक ही है। चरित्र समान होने के कारण क्या फर्क पड़ता है कि मोदी जी के विरोधी हैं या समर्थक हैं क्योंकि पोषित तो समान सामाजिक मूल्य ही किए जा रहे हैं। इन समान चरित्रों में भी अंतर उन लोगों को दिख सकता है जिन्हें यह लगता है कि किसी लोकतांत्रिक देश में किस पार्टी की सरकार है, इस बात से उस देश व समाज के चरित्र का निर्माण होता है।

यदि ऐसा होता तो किसी लोकतांत्रिक देश में कभी किसी दूसरी पार्टी की सरकार आनी ही नहीं चाहिए। यदि ऐसा होता तो भारत में हमेशा कांग्रेस की ही सरकार देश व प्रत्येक राज्य में लगातार ही बनती रहती। यदि ऐसा होता तो उत्तर प्रदेश में मायावती जी की सरकार आने के बाद उन्हीं की बनी रहनी चाहिए थी। यदि ऐसा तो अखिलेश यादव जी की सरकार बनी रहनी चाहिए थी। यदि ऐसा होता तो बिहार में 15 वर्षों तक सरकार रहने के बाद लालू प्रसाद यादव जी की सरकार बनी रहनी चाहिए थी, क्योंकि उनको तो उनके भक्तों/समर्थकों द्वारा सामाजिक न्याय का मसीहा भी कहा जाता है।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि सच यही है कि किसी लोकतांत्रिक देश में सरकारें उस देश व समाज के लोगों की सोच समझ व चरित्र का प्रतिबिंब होतीं हैं। भारतीय समाज, परिवार, नौकरशाही व सरकारों का चरित्र मूल में अलोकतांत्रिक व सामंती है। समाज की इकाई के व्यक्ति के रूप में हमारे जीवन में झूठ, ढोंग व दोहरापन इत्यादि ही हमारे वास्तविक चरित्र हैं। समाज ही नहीं परिवार की इकाई के रूप में भी हम कमोबेश इसी चरित्र के हैं। हमें व्यक्ति, परिवार व समाज के रूप में अपने चरित्र को बदलने की मूलभूत जरूरत है। हमारा ऐसा करना ही वास्तविक क्रांति/परिवर्तन है। वास्तव में यही कर पाना ही क्रांति है। बिना ऐसा किए, रोज सरकारों को बदलते रहिए, रोज सरकारों को दोष दीजिए, रोज सरकारों को गाली दीजिए, रोज क्रांति गढ़िए अपनी पीठ ठोकिए अपने अंदर अहंकार को जीते रहिए। लेकिन ऊपरी पैकिंग के रंगों के अलावा कुछ नहीं बदलेगा।

चलते-चलते:

यदि मोदी जी से किसी पार्टी का होने की बजाय देश के लोगों का प्रधानमंत्री होने की अपेक्षा की जाती है जबकि देश का प्रधानमंत्री किसी न किसी पार्टी का प्रतिनिधित्व तो करता ही है वरना कोई प्रधानमंत्री ही नहीं बन सकता। जो लोग जो मोदी जी से देश का प्रधानमंत्री होने की अपेक्षा करते हैं। वही लोग देश के पूर्व राष्ट्रपति माननीय प्रणव मुखर्जी जी के द्वारा एक स्वयंसेवी संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आमंत्रण को स्वीकार किए जाने का पानी पी-पी कर विरोध करते हैं। जबकि भारत के संविधान के अनुसार देश का राष्ट्रपति किसी भी पार्टी का प्रतिनिधित्व नहीं करता। मतलब यह कि हम मोदी जी से तो देश का प्रधानमंत्री होने की अपेक्षा करते हैं लेकिन प्रणव मुखर्जी जी को देश का राष्ट्रपति होने के कारण बुरा भला कहते हैं। गजब का ढोंग व दोगलापन हममें कूट-कूट कर भरा है।

राहुल गाँधी जी को मैं लोकतांत्रिक समझ वाला राजनेता मानता आया हूँ, इस मुद्दे पर उनके व्यवहार ने उनके प्रति मेरी मान्यता को पुष्ट ही किया है। उनको धन्यवाद। संघ द्वारा भारत के पूर्व राष्ट्रपति को आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद। माननीय प्रणव मुखर्जी जी द्वारा आमंत्रण को स्वीकार करने के लिए धन्यवाद। यह घटना एक लोकतांत्रिक घटना थी।

Vivek Umrao Glendenning "Samajik Yayavar"

He is an Indian citizen & permanent resident of Australia and a scholar, an author, a social-policy critic, a frequent social wayfarer, a social entrepreneur and a journalist;He has been exploring, understanding and implementing the ideas of social-economy, participatory local governance, education, citizen-media, ground-journalism, rural-journalism, freedom of expression, bureaucratic accountability, tribal development, village development, reliefs & rehabilitation, village revival and other.

For Ground Report India editions, Vivek had been organising national or semi-national tours for exploring ground realities covering 5000 to 15000 kilometres in one or two months to establish Ground Report India, a constructive ground journalism platform with social accountability.

He has written a book “मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर” on various social issues, development community practices, water, agriculture, his groundworks & efforts and conditioning of thoughts & mind. Reviewers say it is a practical book which answers “What” “Why” “How” practically for the development and social solution in India. 

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2 Responses to राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या मोदी जी के विरोध के मायने लोकतांत्रिक होना जरूरी नहीं

  1. वन्दना दवे says:

    सही कहा आपने की हम हकीकत में हर जगह अलोकतांत्रिक हैं। घर, दफ्तर, सरकार हर तरफ।
    साथ ही संघ में प्रणव मुखर्जी को बुलाया जाना और वहाँ जाकर उनका राष्ट्र को लेेकर सही व्याख्या करना एक ऐतिहासिक लोकतांत्रिक घटना का होना है।

  2. Vijendra Diwach says:

    शानदार लेख

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