Tribhuvan
अली सरदार जाफ़री का एक शेर है: तेग़ मुंसिफ़ हो जहाँ दार-ओ-रसन हों शाहिद, बे-गुनह कौन है उस शहर में क़ातिल के सिवा। यानी जहां तेग़ यानी तलवार न्यायाधीश हो और जहां सूली और फ़ांसी गवाह हों, वहां पर क़ातिल ही बेगुनह हुआ करता है।
सलमान खान प्रकरण में जो दोषी है, वह तो सबकी चर्चाओं और सम्मान के केंद्र में है, लेकिन जो न्याय दिलाने वाले और सम्मान के पात्र लोग हैं, वे हाशिये पर हैं। हम आज अगर पतन और गिरावट की राह पर हैं तो इसीलिए कि अपराधी की शोभा यात्रा निकाली जा रही है और जिसकी शोभा यात्रा निकाली जानी चाहिए, उन्हें उजड्ड और पुरातनपंथी हास्यास्पद बनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है। इस प्रकरण में जो गवाह हैं और इस भ्रष्ट और गंदी व्यवस्था में भी पीछे नहीं हटे, वे बिश्नोई समुदाय से हैं और जांभोजी की शिक्षा के कारण ही वे निष्ठा के साथ खड़ रह सके। अगर ये निष्ठाएं नहीं होतीं तो सलमान कभी के इस प्रकरण से बाहर हो चुके होते।
इन हालात में मुझे बताइये कि हमारे मीडिया और विश्व हिंदू परिषद के जोधपुर वाले उन हिंसकभाव वाले लोगों में क्या फ़र्क़ है, जो निरपराध अफराजुल की नृशंस हत्या करने वाले शंभु की शोभा यात्रा निकाल रहे हैं। देश का पूरा मीडिया और आम लोग तो भी वही सब होने को मरे जा रहे हैं!
भगवान जांभोजी गुरुनानक जी से 18 साल पहले हुए थे। जांभाेजी का अनुयायी होने के लिए उसे 29 नियमों का मानना जरूरी है। दोनों संतों ने गुरुघरों का जो शिल्प अपनाया, उसमें एक अदभुत साम्य है। ये मसीत और मंदिर के बीच संतुलन कायम करते हैं। क्षमाशीलता को ऊपर मानते हैं। लेकिन प्राणी मात्र की रक्षा करना और हरे वृक्ष नहीं काटना दो ऐसे नियम हैं, जो बिश्नोई धर्म को बाकी सब धर्मों से अलग रखते हैं। हरे पेड़ों की रक्षा के लिए तो बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। इनमें 111 तो महिलाएं थीं।
बिश्ननोई समाज में भी मुस्लिम समाज की तरह मनुष्य को दफ़नाया जाता है, न कि जलाया जाता है। ऐसे बहुतेरे संप्रदाय हैं, जिनमें पार्थिव देह को जलाने के बजाय दफनाया जाता है। लेकिन बिश्नाई धर्म के प्रति बचपन से ही मेरा अाकर्षण इसलिए रहा है, क्योंकि यह धर्म जीवों के प्रति अपार प्रेम रखता है। किसी भी बिश्नोई बहुल गांव में जाएं तो वहां आपको कितने ही हरिण और मोर ऐसे मिलेंगे, मानो हम किसी अभयारण्य में आ गए हों। बिश्नोई जीव की रक्षा के प्रति इतने प्रतिबद्ध होते हैं कि जीव की हत्या करने वाले की हत्या तक करने में भी उन्हें संकोच नहीं होता। ऐसे भी उदाहरण देखे जाते हैं। यह देखकर तो अांखों में आंसू आ जाते हैं कि कई बार किसी हरिणी को कुत्ते या जंगली जानवर मार दें और उसके बच्चे भूखे हों तो बिश्नोई महिलाएं उन्हें अपने बच्चे की तरह अपने सीने से लगाकर दूध पिला देती हैं। यह अदभुत और अकल्पनीय है।
जिस युग में पर्वत, पहाड़, नदियां, झरने, वन संपदा और कुदरत के वारे वरदानों को इन्सान तबाह करने पर तुला है तब जांभाेजी भगवान की शिक्षाएं बहुत प्रासंगिक दिखाई देती हैं।