Alok Puranik
हर आइटम इस कदर आनलाइन हो गया है कि क्रांति से लेकर पिज्जा तक आप आनलाइन ले सकते हैं।
एक मित्र हैं एक लैपटाप के जरिये कई क्रांतियां संभाले रहते हैं। वक्त बदल गया है। क्रांति के लिए पुराना वक्त ज्यादा मुफीद था, जब कम से कम क्रांति आफलाइन ही होती थी। अब कार्ल मार्क्स कहते-दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ, तो एक सवाल तो यही आ सकता है कि क्या आनलाइन एक हो जाने भर से काम चल जायेगा ना। आनलाइन ग्रुप बना लेने भर से काम चल जाये, ऐसी क्रांति की भीषण डिमांड है। पहले आम और पर बंदे एक ही क्षेत्र में क्रांतिकारी होते थे, पर आनलाइन ने यह सुविधा दे दी है कि एक ही बंदा एक ही समय में बहुआयामी क्रांतियों में अपना योगदान दे सकता है।
एक दोस्त के मृत-पिताजी की फोटू को लाइक मिले, किसी ने रात को दारु पीते हुए इस फोटू को लाइक कर दिया, यानी शोक संवेदना की कार्रवाई हो गयी। लाइक यानी काम खत्म। पारदर्शिता का तकाजा है कि फेसबुक यह भी बताये साफ-साफ कोई बंदा शोक-संवेदित हो रहा है, तब वह कर क्या रहा है और वह हैं कहां। कोई अगर सन्नी लियोनी की फिल्म देखते हुए आनलाइन शोक-संवेदित हो रहा है, तो ऐसे संवेदित होने को शोक-संवेदना और सन्नी लियोनी दोनों के साथ ही अन्याय माना जाना चाहिए।
शोक दिखाने की बुनियादी तमीज यह है कि बंदा शोकशुदा दिखे भी। अभी एक केस मैंने देखा -एक बंदे ने फेसबुक मैसेज ठोंका-चेक्ड-इन स्टारबक्स, यानी कि भाई स्टारबक्स नामक ठिकाने पर काफी पीने को घुसा और वहीं से शोक-संवेदित हो गया। स्टारबक्स में काफी थोड़ी महंगी मिलती है, इसलिए बहुत सस्ते किस्म के लोग यह सबको बताने में घणा फख्र महसूस करते हैं कि हम स्टारबक्स में आये हैं। फेसबुक पर कई बार बंदा बताता है कि चेक्ड-इन इंदिरा गांधी एयरपोर्ट। अरे भाई कहीं जा रहे अपने काम से जा रहे हो, इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के जरिये जा रहे हो या बिल्लोचपुरा स्टेशन के जरिये जा रहे हो,बताने की क्या जरुरत। पर फेसबुक के जरिये यह बताना जरुरी है, एक कम-जानकार महिला ने मुझसे यहां तक पूछा कि अगर हम ऐसा नहीं बतायेंगे तो क्या हम पर फाइन हो सकता है।
फेसबुक यह भी विकल्प दे कि पता चल जाये कि कोई बंदा शोक-संवेदित हो रहा है, तब वह कर क्या रहा है। शोक-संवेदित एट बालाज डिस्को डांसिंग विद फ्रेंड्स, इस आशय के मैसेज भी फेसबुक पर दिखने लगें, तो पारदर्शिता पूरी हो जाये। शोक संवेदित एट मंडी हाऊस हैविंग समोसा विद फ्रेंड, यह मैसेज भी फेसबुक पर दिखे, तो सबको पता लग जाये कि कौन किस स्तर का शोक-संवेदित है।
हालांकि पता अब भी सबको सब होता है कि कौन किस स्तर का शोक-संवेदित है, बस फेसबुक इसे थोड़ा साफ तौर बता और दे, तो आत्म-नंगापन हम एकैदम साफ तौर पर देख पायेंगे।