आज हम एक ऐसे परिदृश्य को दर्शाना चाहते हें जो प्रकृति द्वारा संरचित चित्रण के मूल रूप को परिवर्तित करता है। यह ग्राम धनोरा के असहाय निर्धन परिवार में जन्मे 1 बर्षीय बालक की कहानी है जिसका जन्म रात्रि के ऐसे नक्षत्र में हुआ जो उस पूरे परिवार की दिशा और दशा को विगाड़ देता है।
दोनों वक्त के भरण पोषण के लिए एक वक्त का खाना पैदा करने वाले व किसी दिन आधा पेट भरकर सो जाने वाले व्यक्ति दुर्गा प्रसाद अपने बेटे हिमांशु को लेकर बहुत उत्साहित थे और जब हिमांशू ने जन्म लिया तो उसके माता पिता उसको देख कर आश्चर्यचकित रह गए और मन ही मन भगवान से कहने लगे की किस जन्म का पाप किया था। आने जाने वालों की बधाई में भी एक उपहास, कभी कटाक्ष कभी भय सा दिख रहा था क्योंकि हिमांशु का होठ जन्म से कटा होने के कारण उसकी शक्ल विकृत दिखाई दे रही थी कोई इसको कुछ कह रहा था कोई कुछ, लेकिन था तो दुर्गाप्रसाद और उसकी पत्नी का अंश ही। सो बस मन मसोस कर रह गए।
बच्चा दो माह का हो गया और माता पिता उसको देख देखकर और भविष्य की सोचकर बहुत परेशान थे फिर एक दिन RBSK की टीम धनोरा आगनवाड़ी स्वास्थ्य परीक्षण करने पहुची टीम की डॉ स्वाति श्रीवास्तव और संगीता बच्चों का परीक्षण कर रहे थे टीम के दूसरे सदस्य डॉ गोविन्द श्रीवास्तव आगनवाड़ी और आशा से बात कर के पूछ रहे ऐसे कोई बच्चा जो जन्म जात बीमारी से ग्रसित हो, काफी समझाने के बाद आगनवाड़ी ने बताया एक बच्चा है ऐसी बीमारी का जो जन्म से कटे होंठ का है। बुलवाये जाने पर आगनवाड़ी दुर्गाप्रसाद को बुलाकर लाई और उसके साथ गांव के कई लोग आ गए।
टीम ने हिमांशू के कटे होठ की सर्जरी के बारे में बताना शुरू किया तो कई लोग हाँ कह रहे थे की सरकार की योजना तो ठीक है तो कई लोग वहीँ उसको गुमराह कर रहे थे कि वो ठीक है अपने आप सही हो जायगा टीम सभी की जिज्ञासा शांत करने की कोशिश कर रही थी वहीँ दुर्गाप्रसाद विचलित हो रहा था एक तरफ बच्चे का भविष्य दिख रहा था दूसरी तरफ वह अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में सोच रहा था बहुत सोचकर दुर्गाप्रसाद बोला हमारे बच्चे को कोई परेशानी तो नही होगी मैं बहुत गरीब आदमी हूँ टीम उसको पूरी सांत्वना और प्रक्रिया बताकर वापस आ गयी।
वापस आकर डॉ गोविन्द ने फोन पर जिला कार्यक्रम प्रबंधक श्री ऋषिराज और DEIC डॉ रामबाबू को बच्चे के विषय में जानकारी दी, डॉ गोविन्द पूर्ण विश्वास में थे क्योंकि जनपदीय प्रबंधन ऐसे कुछ केस और सर्जरी के लिए प्रयास रत थे और भागदौड़ में लगे थे। डॉ रामबाबू ने चिकित्सक से वार्ता कर निर्धारित तिथि पर बच्चे को चेकअप के लिए मेडिकल कॉलेज लाने के लिए कहा। बामौर से मेडिकल कॉलेज की दूरी लगभग 100 km देखते हुए जिला कार्यक्रम प्रबंधक द्वारा RBSK वाहन से ही दुर्गाप्रसाद को लाने की सलाह दी गयी क्योंकि चेकअप आदि में समय को देखते हुए कहीं दुर्गाप्रसाद निराश न हो जाये।
तय दिन पर सुबह 7 बजे ही दुर्गाप्रसाद बामौर स्वास्थ्य केंद्र पर आ गया था। मेडिकल कॉलेज झाँसी में डॉ को दिखाया और बार्ड में भर्ती करने को बोला हिमांशू को वार्ड में भर्ती कराया फिर अगले दिन उसकी जाँच टीम की सदस्यों डॉ स्वाति और डॉ नेहा दुबे ने भागदौड़ करके पूरी करवा दी। जाँच में बच्चे का हिमिग्लोबिन कम होने के कारण कुछ दिन के लिए रोक दिया डॉ ने सलाह दी हीमोग्लोबिन सामान्य आने पर ही आप्रेशन किया जगया कुछ दवा लेकर दुर्गाप्रसाद अपने बच्चे हिमांशू को लेकर वापस गाँव आ गया।
इस बीच टीम फोन पर ही फालोअप कर रही थी धीरे धीरे दुर्गाप्रसाद भी निराश होता जा रहा था उसको लग रहा था उसका काम कागज़ों तक ही सिमट कर रह गया। स्थिति को समझते हुए डॉ गोविन्द श्रीवास्तव सीधे फिर धनोरा गाँव पंहुचे तो बच्चे की माँ बोली आप ने साहब कहा था की उसका आप्रेशन हो जायगा लेकिन सिर्फ इतने दिन बस जांच करवाकर कुछ नहीं हुआ हम मेहनत मजदूरी वाले लोग रोज रोज कब तक चक्कर लगाते फिरे? फिर समझाया गया कि बच्चे में खून की कमी को देखते हुए अभी ऑपरेशन संभव नहीं है कुछ महीनो में सामान्य आने पर आपरेशन कर दिया जायगा बच्चे को अपने पास से ताकत की सीरप और अच्छी खिलाई पिलाई करने की सलाह देते हुए फिर से समझा बुझा कर डॉ गोविन्द वापस आ गए।
फिर कुछ महीने बाद बच्चे बामौर अस्पताल बुलाया और उसका हीमोग्लोबिन जांच बामौर अस्पताल में ही करा लिया अब उसका हीमोग्लोबिन सामान्य था जिसकी सूचना डॉ रामबाबू को दी गयी। इतने लंबे समय को देखते हुए स्माइल ट्रेन लखनऊ में बात की गयी सहमति मिलते ही अगले ही दिन डॉ गोविन्द श्रीवास्तव को कानपूर स्माइल ट्रेन में उसका ओप्रेशन कराने को कहा गया लेकिन परिस्थिति विकट हो चुकी थी दुर्गाप्रसाद गाँव वालो के कटाक्ष सुन सुन कर पक चुका था जो उसको रोज ताने दे रहे थे क्यों हुआ कुछ सरकारी काम?
टीम ने जैसे ही दुर्गाप्रसाद से चलने की बात कही वो बोला नही साहब एक बार गये थे खून कम था अबकी बार फिर डॉ मना कर दिया तो गांव वाले बहुत मज़ाक उड़ाएंगे। टीम के समझाने पर अंत में कानपूर स्माइल ट्रेन जाने को राजी हुआ।कानपुर स्माइल ट्रेन में डॉ को दिखाया और उसको भर्ती कराया और उसकी जाँच कराई सब सामान्य थी अगले दिन उसका ओप्रेशन था आखिरकार हिमांशु को ऑपरेशन के लिए OT में भेजा गया और कुछ घंटे बाद हिमांशू बार्ड में आ गया उसको देख कर उसकी माँ की आँखो में आँसू आ गए और दुर्गाप्रसाद के तो बोल ही नही निकल रहे थे वो तो बस पट्टी खोलकर अपने बच्चे का चेहरा जल्दी से जल्दी देखना चाह रहा था।
जब दुर्गाप्रसाद अपने बच्चे हिमांशू को लेकर गाँव धनोरा पहुच गया गांव के लोग हिमांशू को सब देखने आ गए। दुर्गाप्रसाद अपने बच्चे को लेकर बहुत खुश था सरकार की योजना और टीम की पहल की सराहना हो रही थी। अब कुछ महीने बीत जाने अब हिमांशू पहले जैसा नही रहा अब वो सामान्य बच्चों की तरह उसका होंठ हो चुका है हिमांशू की माँ कहती हैं साहब आप न होते हम तो अपने बच्चे का कुछ नही करवा पाते आप की वजह से हमारा बच्चा बाकी बच्चों की तरह दिखने लगा है। हमारी टीम काफी खुश है हमें अच्छा लग रहा है गाँव के लोगो ने सरकार द्वारा चल रही योजनाओ की सराहना कर रहे हैं।
हम अपने को गर्वान्वित महसूस करते हैं हम ऐसे एक अभिनव प्रयास के अंग है जो बच्चों के जीवन में खुशियाँ देता है और उनके माँ बाप के चेहरे पर मुस्कान!
About Author:
डॉ गोविन्द श्रीवास्तव
फिजियोथिरेपिस्ट RBSK
ब्लाक बामौर, झांसी
डॉ गोविंद झांसी के सबसे दूरस्थ ब्लॉक में काम करता है सबसे अच्छी बात यह है वही ब्लॉक में ही निवास भी करते हैं जबकि ज्यादातर लोग झांसी या जालौन जैसी जगह निवास करने इसलिए जाते है कि प्राइवेट प्रेक्टिस भी कर सकें जबकि गोविंद उसके काम को वहीं रुककर जी जान लगाकर काम करता है