Hafeez Kidwai
दूर एक हाथ कटा पड़ा था। उस हाथ का जिस्म अलग एक खम्भे से टेक लगाए पड़ा था। शायद औरत थी। करीब से देखा तो फुसफुसा रही थी और करीब गया तो फुसफुसाहट समझ आने लगी। एक हाथ से हाथ जोड़ते हुए वह कह रही है “मेरी बेटी से एक एक करके बलात्कार करो,एक साथ करोगे मर जाएगी। वह मर जाएगी,ए आदमियों इधर मुझपर आ जाओ, उसपर एक साथ मत टूटो, वह मर जाएगी।”
यह शब्द अगर किसी इंसान ने सुने होते तो उसके जिस्म की अकड़न शर्मिंदगी से खुद बखुद खत्म हो जाती। दूर उसकी आठ साल की बच्ची पड़ी थी। करीब जाकर देखने पर महसूस हुआ जो हमारे लिए आठ साल की बच्ची थी, वह अभी किसी वहशी झुँड के लिए औरत थी।
कभी उस औरत को देखता तो कभी उस बच्ची को, तो कभी जले हुए घर देखता तो कभी बारिश की तरह बिखरे पड़े ख़ून को।लड़की के होंट वहशियों की गन्दगी से छुप गए थे।रुमाल को गीला करके मैं उसके मुँह को साफ़ करता की आँसू फिर टपक कर उसका मुँह गीला कर देते। मैं बार बार साफ़ करता, वह बार बार गन्दा हो जाता। उसके जिस्म से उठती दूसरे झुण्ड की बदबू दिमाग में इस तरह चढ़ी की कल दोपहर की पी चाय एक झटके में मुँह से निकल गई।
किसी ने आकर मुझे उठाया,मैंने पलट कर सवालिया अंदाज़ में उसे देखा। उसने कहा दोस्त परेशान मत हो। दंगो में ऐसा ही होता है। भीड़ किसी को भी नही बख्शती। यह हमारा दुर्भाग्य है की हम इसमें फंस गए। दँगे हर एक को खत्म कर देते हैं।यही बहुत रहा की हम ज़िंदा बच तो गए।।।।।वह मुझ मुर्दे से बोले जा रहा था जैसे वह बोले जा रही थी। “मेरी बेटी से एक एक कर के बलात्कार करो, एक साथ मत करो, वह सह नही पाएगी, मर जाएगी”
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