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जी हाँ किसान जीन्स पहनता है, चश्मा लगाता है, मोटरसाइकिल भी चलाता है, बैल गाड़ी, ट्रैक्टर सहित सभी गाड़ियाँ चलाता है। दारू भी पीता है, ख़ूब नाचता, गाता भी है। किसान मजबूरीवश मज़दूर भी हो सकता है, रिक्शा, ताँगा भी चलाता मिल सकता है।
इस देश का किसान बिना ज़मीन का भी होता है और सैकड़ों बीघे का भी हो सकता है; साथ में जो मंत्री, विधायक बनकर सरकारी लूट से या खनिज आदि की डकैती डाल कर ज़मीन ख़रीदने के बाद भी किसान नहीं भी हो सकता है।
किसान ज्योतिष,बैद्य या कवि भी हो सकता है। वह कोई भी उत्पादक जो प्रकृति के साथ मन से जीता है और मानव के उपयोग लिए कुछ भी निर्माड करता है किसान है। दार्शनिक अल्लहड़ता और श्रम दोनो का समन्वय ही किसानी है। किसानी ही इसका धर्म है।
प्रकृति को हम सीधे पूजते है बिना किसी प्रतीक या बिचौलिया के, जैसे पेड़, नदी, गाय, पहाड़ आदि। जो हमारी चेतना के विकास के लिए जिये मरे हमारे आराध्य हैं जैसे राम, कृष्ण, गांधी आदि। हमारा कोई प्रतीक और बिचौलिया नहीं है। इस मर्म को जो जानता है वही इस देश को जानता है।
जो इसको जिये बिना, समझे बिना आयातित राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक सिद्धान्तों को या धार्मिक मान्यताओं को थोपना चाहता है वह स्वयं थक कर कुछ दिन में समाप्त हो जाता है या हमारे साथ घुल जाता है। अभी सब के सब आयातित और समाज विघटन के सिद्धांत( फूट डालो राज करो) पर आधारित राजनैतिक दल है। इसीलिए व्यक्तिवादी है और अल्पावधि में जनता नकार देती है।
किसानो की धरती से निकले राजनैतिक सिद्धांत एवं दल की अभी भी प्रतीक्षा है।