भंवर मेघवंशी
राजा –
मरवाता रहा सैनिक
प्रजा –
देती रही श्रद्धांजलियाँ
रह रह कर
उठता रहा ज्वार
राष्ट्रभक्ति का ..
चलती रही गोलियां
मरते रहे इन्सान
बहता रहा लहू
चीखते रहे चेनल्स
प्रजा
मनाती रही जश्न
शहीदों को चढ़ाती रही पुष्प
राजा
करता रहा राज
इसके अलावा वह
कर भी क्या सकता था बेचारा
युद्ध चलता रहा
सैनिक मरते रहे
राष्ट्र बहुत खुश था
जब युद्ध का उन्माद
फैल गया पूरे राष्ट्र में
तब राजा ने
राष्ट्र को संबोधित किया
राष्ट्र के नाम सन्देश दिया
राष्ट्र से की
अपने मन की बात
राष्ट्र के नाम पर खरीदे हथियार
राष्ट्र के नाम पर लड़ा चुनाव
राष्ट्र ही के नाम पर जीता भी
राजा बड़ा नेक था
और राष्ट्रभक्त भी
उसने सब कुछ
राष्ट्र के नाम पर किया
तब से राष्ट्र और राजा में
कोई फर्क ही नहीं बचा
राजा ही राष्ट्र हो गया
और राष्ट्र ही राजा
इस तरह अवतरित हुआ
" राष्ट्र राज्य ."
उसके बाद
फिर वहां
न चुनाव की जरुरत पड़ी
न लोकतंत्र की,
और न ही संविधान की
सारे झमेलों से
मुक्त हो गया राष्ट्र
इस तरह राष्ट्र के लिए
बहुत उपयोगी साबित हुआ युद्ध