बाहर पढाई कर के हिन्दुस्तान वालो को लूटना ठीक नही है। मजा तो तब है जब हिन्दुस्तान में पढकर बाहर लूटो। भारत में तो एक जेएनयू है और एक बीएचयू है, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी और आठ दस है। बाकी बौचट लोग है। जेतना पैसा हमारे गोरखपुर जिला के गार्जियन दिल्ली में भेजते है लडको की पढाई के लिए उतने पैसे में जेएनयू का बाप गोरखपुर में तैयार किया जा सकता है।
बिहार से जितना पैसा दिल्ली में भेजा जाता है पढाई के नाम पर जिसमे की लडके गलीज पानी पी-पीकर और सडा हुवा खाना खा खाकर आईएएस की तैयारी करने को मजबूर है। बेचारे मैगी का टिकिया पानी में उबाल कर पूरा दोपहर काट देते है। उतना पैसा अगर बिहार में कालेज यूनिवर्सिटी में लगाया जाय तो दो ढाई सौ जेएनयू बिहार में बन जाएगा, जिसमे हारवार्ड से प्रोफेसर पढाने भी आयेंगे। जब आस्ट्रेलिया का खिलाडी पैसा पर यहाँ क्रिकेट खेल सकता है तब यहाँ ऑक्सफ़ोर्ड से मास्टर पढाने नही आ सकता।
पढो, हमको का करना है, हम तो गदहिया छाप ला कालेज से भी पढकर हिन्दुस्तान के सबसे बड़े अदालत में वकील है। क्युकी हम को मालूम था यह जेएनयू और फलाना ढीमाका बकवास है, असली काम की चीज अपना मन और अपनी किताब है वही साथी है। लेकिन ताज्जुब होता है जब देखते है पढाई करने लड़का लोग घर बार छोड़ कर इतना दूर आता है। अरे नाशपीटो तनिक इज्जत पानी का तो ख्याल करो। ऐसे नगर पढने क्या आना जहा आप कहकर लोग बुलाना भी नही जानते। बाते तुम तडाक से स्टार्ट होती है।
खैर तुमलोगों के बस का नही है। शिक्षा को खरीद लेना है चाहे जेएनयू में मिले चाहे कहीं। ईहे मेंटेलिटी से नालंदा बिश्वबिद्यालय का नाश हो गया, और एक दिन यही बीचारधारा सबका नाश करेगी। अभी भी चेत जाओ दिल्ली पैसा भेजना छोडो और अपने शहर में सब मिल जुलकर जेएनयू का बाप बनाइए। जहा से पैदावार निकले तो दुनिया में धूम मचाए। जेएनयू तो गया गुजरा बिद्यालय है जो आज तक ना मिर्जा ग़ालिब पैदा किया ना कबीर।
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