विवेक ‘नोमेड’
सामाजिक यायावर
हम भारतीय फेसबुक का अधिकतर प्रयोग खुद को मानसिक गुलाम बनाने व मानसिक गुलामी की गतिविधियों को करने में ही गुजारते हैं।
- जीवन की समझ, दृष्टि, सार्थकता आदि से दूर दूर तक कोई नाता नहीं।
- समाज की समझ, दृष्टि, सार्थकता आदि से दूर दूर तक कोई नाता नहीं।
- सामाजिक ईमानदारी व प्रतिबद्धता आदि से दूर दूर तक कोई नाता नहीं।
- समाज व मनुष्य के वास्तविक विकास व समाधान आदि से दूर दूर तक कोई नाता नहीं।
चूकि हमारे समाज में मौलिकता, दृष्टि व वैज्ञानिक दृष्टिकोण को कुंठित किया जाता है इसलिए हमारे समाज के सेलिब्रिटी लोग या तो अंधो में काने किसिम के होते हैं या नकलची होते हैं या प्रायोजित होते हैं। हम भारतीय ऐसे कुंठित लोगों को सेलिब्रिटी व अवतार बनाकर खुद को उनके जरखरीद गुलाम के रूप में उनकी वाहवाही व समर्थन आदि के लिए समर्पित कर उनकी कुंठा आदि को महानता व दिव्यता आदि के रूप में स्थापित व प्रतिष्ठित करने में अपनी जीवनी ऊर्जा का प्रयोग करने लगते हैं।
दरअसल हम भी उन्हीं की तरह खोखले, अमौलिक, दृष्टिहीन, अवैज्ञानिक मानसिकता के होते हैं, हम भी उन्हीं की तरह ग्लैमर भोगना चाहते हैं, इसलिए हम उनमें अपनी लिप्साओं का अक्श देखते हैं और खुद को उनका अघोषित मानसिक गुलाम बना देते हैं।
हम अपनी लिप्साओं व दमित इच्छाओं के आधार पर अपने लिए सेलिब्रिटी अवतार चुन लेते हैं, और उस अवतार का अक्श खुद को मानकर मन की गहराइयों में अपनी लिप्साओं व दमित इच्छाओं को जीने के सैडिज्म में जीने लगते हैं। हम सैडिज्म के इस नशे को तोड़ना नहीं चाहते हैं, इसलिए हम हर उस बात, तथ्य, चिंतन, विचार व व्यक्ति के प्रति हिंसक हो उठते हैं जो हमें इस सैडिज्म से बाहर निकालने का प्रयास करता है या हमारे सैडिज्म को तोड़ता है। दरअसल हम कुंठित सैडिस्ट हैं इसीलिए हम अपने लिए अवतार बनाते हैं और खुद ही खुद को उनका जरखरीद मानसिक गुलाम बनाते हैं।
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ये स्थितियां व गतियां मनुष्य, समाज व देश को बहुत पीछे ले जातीं हैं।
हम हंगामा चाहे जो करें,
हम ढोंग चाहे जो करें,
हम ख्याली पुलाव चाहे जो बनाएं,
हम जुमले चाहे जितने दें,
हम चाहे जितने झूठ के पुलंदे बनाएं,
हम नारे चाहे जितने लगाएं।
हम जब तक सैडिस्ट रहेंगें,
हम जब तक सैडिज्म में जीते रहेंगें,
हम, हमारा समाज, हमारा देश और अधिक कुंठित ही होता जाएगा, पीछे ही जाएगा।