गांधी जी का "नील" आंदोलन की धरती बिहार थी। देश में अंग्रेजों की दासता को नकारनें का काम जिन मंगल पांडे जी नें किया था वे उत्तर प्रदेश के ही थे। एक महिला होकर भी अंग्रेजों से भीषण पंगा लेंनें वाली झांसी की रानी भी उत्तर प्रदेश की ही थीं।
इन दोनों राज्यों में लगभग हर जिले में ऐसे लोग मिल जायेंगें जिन्होनें समाज को शिक्षित करनें के लिये शिक्षा संस्थानों के लिये सैकड़ों/हजारों एकड़ जमीन एक झटके में बिना किसी लाग-लपेट के दान कर दी होगी।
मैं भूदान आंदोलन की बात नहीं कर रहा हूं। ऐसे बहुत उदाहरण हैं जो कि उस समय के हैं जबकि खुद विनोबा जी को नहीं पता था कि वे कभी भूदान-आंदोलन चलायेंगें 🙂 ।
काशीराम जी की बात को समझनें और आगे बढ़ानें वाला राज्य भी उत्तर प्रदेश ही था, जबकि काशीराम जी नें अपनें जीवन के बेहतरीन साल पंजाब जैसे राज्यों को दिये।
जयप्रकाश नारायण जी बिहार की धरती में अवतरित हुये थे।
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में एक से बढ़कर एक राजनैतिक व सामाजिक आंदोलन हुये हैं। लालू, मुलायम, काशीराम, मायावती, नितीश कुमार, कर्पूरी ठाकुर, चौधरी चरण सिंह आदि जैसे राजनेताओं का उदय और ऊंचाई पर बीसियों वर्षों के जमीनी संघर्षों को लगातार करते हुये पहुंचना … इन राज्यों के दबे-कुचले समाज की सामाजिक व राजनैतिक चेतना के ही कारण हो पाया। और ये सभी राजनैतिक प्रक्रियायें "सामाजिक व राजनैतिक परिवर्तन" ही रही हैं। और इस यथार्थ को किसी भी तर्क/वितर्क/कुतर्क से नकारा नहीं जा सकता है।
देश में आपातकाल लागू करवानें, हजारों लोगों को महीनों जेलों में सड़वानें और फिर आपातकाल को फेंक देनें जैसी अतिवादी राजनैतिक चेतना के सूत्रधार उत्तर प्रदेश व बिहार राज्य ही थे।
भारत में साम्यवाद को मजबूत आधार देनें का श्रेय उत्तर प्रदेश के ही जिले "कानपुर" को जाता है।
उत्तर प्रदेश व बिहार के समाज नें सामाजिक व राजनैतिक चेतना को भी प्राथमिकता दी बाकी अन्य राज्यों की तरह एनकेन प्रकारेण बाजारीकरण के कथित विकास के पीछे अंधे-भक्तों की तरह नहीं भागे।
सामाजिक व राजनैतिक चेतना के अतिवादी स्तर के कारण इन दोनों राज्यों में राजनीति करना और राजनैतिक सत्ता प्राप्त करना आसान नहीं है।
वैसे लोकतंत्र में राजनैतिक बकैती और बकलोली करनें का भी अपना अलग मजा है। किंतु हम तो आपको भारत में राजनैतिक चेतना के खिलाड़ी तब मानेंगें जब आप इन दो राज्यों में सम्मानजनक तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर कुछ उखा़ड़ पायें।
इन दो राज्यों नें अच्छों अच्छों को राजनीति करना सिखा दिया है, आपको भी सिखाया जायेगा बिना किसी भेदभाव और पूर्वाग्रह के। सीखनें के पहले एक बात समझ लीजियेगा कि यहां के गांवों में लगभग हर आदमी अपनें घर में चुनाव, राजनीति और राजनैतिक परिवर्तन नाम की बकरियां बिना रस्सी के ही छोड़े रखता है लेकिन क्या मजाल कि बकरियां घर की डेहरी पार कर जायें 🙂 ।
गांधी जी तो बता ही गये हैं कि बकरी का दूध मष्तिक के लिये बहुत लाभदायक होता है। 🙂
भारत के दक्षिण से कुछ ऊपर में स्थित एक राज्य के लोगों की तरह उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों नें गांधी के साथ उठनें बैठनें वालों के व्यक्तिगत नामों के व्यक्तिगत-पहचान-कारपोरेट्स तो नहीं बनाये हैं लेकिन राजनैतिक-चेतना की बकरियां पालना जरूर ही खूब बढ़िया से जानते हैं।
चलते चलते एक बात और- उत्तर प्रदेश और बिहार के गांव आज भी लोगों का स्वागत करते हैं और सामाजिक लोगों को प्रेम करते हैं और साथ खड़े होते हैं। शुरुआत विश्वास से करते हैं किंतु एक सीमा से बाहर सामाजिक-धोखों को नहीं स्वीकारते हैं। स्वागत करना आता है तो धता बताना भी आता है।
सादर प्रणाम
विवेक उ० ग्लेंडेनिंग "नोमेड"
एक गवांर जाहिल यायावर