Kashyap Kishore Mishra
कारवां के साथ एक बेहद अमीर आदमी था, जिसके पास खूब दौलत थी, दुनिया जहाँ की कीमती चीजों का उसके पास अंबार था, उसके साथ पचपन ऊँटो का काफिला था । नौकरों की फौज थी । कारवां के साथ एक इंसान ऐसा भी था जो बिल्कुल अकेला था, उसकी बड़ी आम सी माली हालत मालूम होती थी । कारवाँ जब ठहरता वह किसी के साथ रोटी खा लेता कहीं भी सो लेता । हरदम मुस्कुराते रहता और सामने पड़ने वाले हर शख्स को सलाम करता चलता ।
अमीर आदमी को उसकी मुस्कुराहट और जब तब सलाम करना बेहद नागवार गुजरता । एक रात अमीर के सामने पड़ने पर उसनें सलाम करते यूँ ही पूछ लिया "आप कहाँ से हैं ?" अमीर को उससे बात करना अपनी हेठी लगी पर जवाब देना ही था तो अमीर नें बताया "मैं कूफा का सबसे बड़ा अमीर हूँ, मुझे यह बताने की जरूरत नहीं होती ना ही मुझे तुम्हारे बारे में जानने की दिलचस्पी है ।"
वह आदमी यह सुन सिर्फ़ मुस्कुराता रहा । कारवाँ के साथ चल रहे दरवेश ने यह देखा सुना और खामोश रहा ।
दो दिन भी न गुजरे थे कि एक दिन सहरा में तेज तूफान उठा । अमीर के सारे ऊँट इधर उधर भाग खड़े हुए और उनके साथ के खादिमों का भी कुछ पता न था, अमीर अपने ऊँट के साथ सहरा में भटक गया । कई रोज भटकते हुए उसने आधे होश आधी बेहोशी की हालत में उस आदमी को देखा । अमीर ने उसे आवाज़ दी और जैसे ही वह आदमी करीब आया अमीर बेहोश हो चला ।
उसकी बेहोशी टूटी तो वह अपने काफिले के साथ था, उस आदमी ने उसे उसके काफिले से मिला दिया पर उसके बाद उसको दूसरी जानिब जाना था सो वह अपनी रह चलता बना ।
अमीर बड़ा सोगवार था उसने बड़ी नाराजगी से अपने नौकर से कहा "तुझे उसे रोकना था, मैं उसे मालामाल कर देता।"
पास ही मौजूद दरवेश से रहा न गया और उसने कहा " तेरी जान उस अजनबी की रहमत है और तू तो किस कदर नालायक है कि जिसने तूझे जिंदगी बख्शी तू उसे एक शुक्रिया तक अदा कर सके इस लायक भी नहीं ।"