सामाजिक यायावर
घूमंतू यह नही कह सकता कि यह उसका सौभाग्य था या दुर्भाग्य था। किंतु उसको भूतकाल में कई ऐसे बहुत बड़े किसम वाले सामाजिक लोगों, उनके द्वारा संचालित संस्थाअों अौर उनके सबसे निचले दर्जे के कार्यकर्ताअों के साथ काम करने का बहुत मौका मिला है। क्या कहा अापने कि ये लोग बड़े कैसे हैं? बड़ी उम्दा किस्म की बात पूंछी अापने तो ये बड़े इसलिये माने जाते हैं क्योंकि इन लोगों के छींकने की, जुकाम होने पर कितनी नाक बही या अाज पाखाना एक बार में ठीक से नही उतरा तो दो या तीन बार जाना पड़ा ईत्यादि प्रकार की बेहतरीन किस्म की खबरें बड़े अक्षरों में मीडिया में अाती हैं। ये लोग बड़े लोग इसलिये भी होते हैं क्योंकि मीडिया को चलाने वाले लोग उनके अपने रिश्तेदार हैं या उनके साथ अभिजात्यीय संस्थानों के पढ़े हुये साथी लोग हैं जो कि भारतीय अाम समाज के संसाधनों में अपना प्रभुत्व बनाये रखना चाहते हैं या जिनको विदेशों से अनाप शनाप फंड अाता है या जिनके पास इस प्रकार के अार्थिक अौर अभिजात्यीय वर्ग के लोगों के साथ संबंध रूपी मानवीय संसाधन हैं कि वे विभिन्न प्रकार के विदेशी अौर देशी पुरस्कारों को पाने की सेटिंग बैठा सकें या किसी विदेशी संस्थान के पढ़े हैं।
ये बड़े लोग अधिकांश ऊर्जा अौर उपलब्ध सामाजिक संसाधन अौर सामाजिक विश्वास का प्रयोग मीडिया प्रबंधन में लगाते हैं इससे बहुत बड़ा फायदा यह होता है कि समाज को इनके वास्तविक कामों के मूल्यांकन की जरूरत महसूस नही होती क्योकि मीडिया के द्वारा समाज को यह महसूस कराया जाता है कि ये लोग खूब काम कर रहे हैं। ये लोग हमारे अंदर की विदेशी गुलाम मानसिकता को भी भुनाने के बड़े एक्सपर्ट हैं, अब विदेश के लोग अौर संस्थायें भारत के दूर दराज के क्षेत्रों में तो जा नही सकते हैं इसलिये वे लोग भी इन्ही लोगों की सूचनाअों अौर इनके मीडिया प्रबंधन के द्वारा संचालित की जा रही सूचनाअों पर ही निर्भर होते हैं।
इनमें से कुछ लोग तो अब इस प्रकार के खेल खेल कर इतने अधिक उस्ताद हो चुके हैं कि ये लोग अपने प्रति समाज की अास्था बनाये रखने के लिये झूठी कहानियां बनाने, सतही मुद्दों कों अति गम्भीर मुद्दे बनाने, जमीनी सामाजिक कार्यकर्ताअों का मनोबल तोड़ने अौर उन पर घटिया मनगड़ंत अारोप लगाने जैसी घटिया हरकतों को भी करते रहने से जरा भी नहीं हिचकिचाते हैं। ये लोग सुर्खियों में बने रहने के लिये कुछ ना कुछ प्रायोजित करते हैं। तो घूमंतू ने सोचा कि क्यों ना इन्हीं में से कुछेक उस्तादों की उस्तादियों पर बोलने वाले पिटारे में कुछ लिख मारा जाये।