जामुन का भूत

Shayak Alok [themify_hr color=”red”] यह अजब कहानी है. कोई दलित मरा है तो उस दलित के मर कर भूत हो जाने की कहानी उसी वर्ग की तरफ से (कानी बुढ़िया) फैलाई गई है. (प्रतिरोध ने मिथक रच लिया है क्योंकि मिथक अंधाधुंध समर्थन के लिए मनोवैज्ञानिक काम करता है). और अब यह भूत सत्ता के सब प्रतीकों पर हमला कर रहा है. पहले उसने किसी प्रतीक में आर्थिक शोषण तंत्र… Continue reading

गुरमेहर कौर सी युवाओं के पास चार में से एक चुनने का विकल्प है

Shayak Alok [themify_hr color=”red”] कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (माओवादी) का गठन पीपुल्स वार और एमसीसीआई को मिलाकर हुआ. ये दोनों नोटोरियस संगठन रहे हैं. ये प्रेरणा माओ से लेते हैं जो मानव सभ्यता का सबसे बड़ा हत्यारा हुआ. माओ इतना बड़ा हत्यारा हुआ कि आप मान लीजिए कि हिटलर, स्टालिन, मोदी और ट्रम्प जैसे लोग अपनी स्थापित योग्यता पर उसके दरबान तक नहीं रखें जाएं. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (माओवादी)… Continue reading

तारेक फ़तह और चुप्पी के बारे में

Shayak Alok [themify_hr color=”red”] किसी ने पूछा मुझसे कभी कि तारेक फ़तह के बारे में आपकी क्या राय है तो मैंने कहा था कि वे कुछ बातें बहुत अच्छी कहते हैं लेकिन थोड़े लाउड हैं. लाउड इस आशय में कि वे चौथी जमात के मुस्लिम धर्मावलंबियों को आठवीं जमात का पाठ्यक्रम पढ़ाना चाहते हैं. भारतीय या पाकिस्तानी समाज अभी इतना अधिक लिबरल होने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं… Continue reading

बासी पुर्जे

Shayak Alok [themify_hr color=”red”] अपनी कविताओं के लिए अजूबे बिम्ब ढूंढती उस लड़की से मैंने एक दिन कहा कि देहराग में डूबा एक प्रेम-सना बिम्ब मेरी ओर भी भी उछाल दो तो उसने कहा कि मेरी जंघाओं के संधिस्थल पर तुम अपना मस्तक रखो और मैं तुम्हें जन्म दूंगी .. *** उसने कविताओं को एक क्षण को विराम कहा और मेरी आँखों में अपनी आँखें उतारते हुए पूछा- और तुम्हारे… Continue reading

मृत उँगलियों में रंगीन ऊन का घेरा

Shayak Alok [themify_hr color=”red”] उस घर की दीवारों में दरारें थीं तो पिस्त्रा मोरी सूई और मोटे ऊन से उन दरारों को सिलने लगी .. रोज वह घर के जरुरी काम निपटाती .. पति को कलेवा दे काम करने भेजती और फिर दोपहर से शाम एक एक दरार को ढूंढती और उसे सिलने लगती .. दीवारों में नए दरार फिर उभर आते तो वह ऊन और वक़्त का अनुमान करती… Continue reading

आशय कि मैं भी लीक पर पाया गया

पढ़ते पढ़ते ही मैंने पाया कि मेरे प्रिय कई लेखक वगैरह अपने समकालीन दूसरे लेखकों-समीक्षकों-इतर साहित्यिकों को लेकर एक पूर्वग्रह-आक्रामक भाव में भी रहते हैं. कई बार वे मुखर उन्हें कोसते पीटते भी नजर आते हैं. मैंने पाया कि यह लक्षण मुझमें भी है. आशय कि मैं भी लीक पर पाया गया. 1. समीक्षाओं आलोचनाओं से नहीं न ही अफवाहों से उस झूठ से भी नहीं जो तुम्हारे चेहरे को… Continue reading